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अब इतिहास बन गया बायोस्कोप

रांची में पहली बार बायोस्कोप की स्थापना 1924 में हुई थे। तब से आज तक सिनेमा ने काफी प्रगति कर ली है। अब मल्टीप्लेक्स का जमाना है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 08:02 AM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 08:02 AM (IST)
अब इतिहास बन गया बायोस्कोप
अब इतिहास बन गया बायोस्कोप

रांची : तीन मई, 1913 को जब बंबई के कोरोनेशन सिनेमा हॉल में राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित हुई तो सिनेमा को रांची पहुंचने में एक दशक लग गए। रांची में छगनलाल सरावगी ने पहली बार 1924 में 'रांची बायोस्कोप' की स्थापना की। कई साल बाद रांची के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट और बांग्ला अभिनेता कमल कृष्ण विश्वास ने बायोस्कोप को खरीद लिया और उसका नाम रखा 'माया महल'। माया महल को भी रांची का प्रतिष्ठित व्यवसायी घराना बुधिया परिवार ने खरीद लिया और एसएन गांगुली को लीज पर दे दिया। एसएन गांगुली ने माया महल का नाम बदल कर रूपाश्री कर दिया। यह लंबे समय तक अपने नाम के साथ रहा। उस समय रांची के एक और प्रतिष्ठित व्यवसायी गुल मुहम्मद ने रूपाश्री से दो कदम आगे एक सिनेमा हॉल की स्थापना की। नाम रखा, गुल सिनेमा। इसमें भी मूक फिल्में दिखाई जाती थीं। गुल मोहम्मद पेशावर के रहने वाले पठान थे। बाद में इस सिनेमा हॉल को रतनलाल सूरजमल के परिवार ने खरीद लिया। इसी जगह पर सज-धजकर रतन टाकीज का 1937 में उद्घाटन हुआ। इस सिनेमा हॉल को भी एसएन गांगुली को लीज पर दे दिया गया। 1937 में जब रतन टाकीज का उद्घाटन हुआ तो सवाक फिल्में आने लगीं। इस टाकीज में पहली फिल्म 'अछूत कन्या' दिखाई गई। जाने-माने लेखक डा. श्रवणकुमार गोस्वामी कहते हैं कि इस फिल्म को देखने के लिए काफी संख्या में दर्शक आए थे।

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यूनियन क्लब के सदस्यों ने शुरू करवाया प्रेक्षागृह

इसी दौरान 1864 से स्थापित यूनियन क्लब एंड लाइब्रेरी के सदस्यों ने एक प्रेक्षागृह का निर्माण करवाया। क्लब की परिचालन समिति ने उस प्रेक्षागृह को गांगुली एंड याकूब कंपनी को फिल्म प्रदर्शन के लिए 1946 में लीज पर दे दिया। हॉल का नाम रखा प्लाजा, जो आज भी नई तकनीक के साथ चल रहा है। दो-दिन साल बाद याकूब कंपनी से अलग हो गए। इस तरह एसएन गांगुली रांची में तीन सिनेमा हॉल के मालिक बन गए।

बुधिया परिवार ने शुरू की विष्णु टॉकीज

दो साल बाद 1948 में बुधिया परिवार ने विष्णु टाकीज की स्थापना की। इसमें पहली फिल्म डोली दिखाई गई। एसएन गांगुली का और भी व्यवसाय था। सामाजिक गतिविधियों में भी वे भाग लेते रहते थे। इसे देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें राय बहादुर का खिताब दिया था। रायबहादुर के पुत्र हेमेन गांगुली को बिहार का डिस्ट्रीब्यूटर बनाया गया। हेमेन ने प्रतिष्ठान का नाम रखा, रूपाश्री पिक्चर रिलीज। हेमेन की बाद में राजकपूर से काफी घनिष्ठता हो गई और राजकपूर की सभी फिल्मों के एकमात्र वितरक हो गए। असम, पं बंगाल, उड़ीसा में इनका एकाधिकार स्थापित हो गया।

बहरहाल, सिनेमा का धंधा खूब चल पड़ा। रांची की आबादी भी बढ़ती गई और उस हिसाब से सिनेमा हॉल भी।

सबसे बड़ी थी संध्या टॉकीज

1972 में पुरुलिया रोड में 1200 सीटों वाले सिनेमा हॉल संध्या टाकीज की स्थापना हुई। डॉ.राम रंजन सेन कहते हैं कि इस हॉल में पहली फिल्म सीता और गीता दिखाई गई। दो साल बाद 1974 में मेन रोड में सुजाता और गैरिसन, 1975 में उपहार, 1977 में वसुंधरा, 1982 में मीनाक्षी सिनेमा हॉल खुला। बदलते समय और नई तकनीक के कारण इनमें से अधिकांश सिनेमा हॉल आज बंद हो गए।

रांची का पहला मल्टीप्लेक्स बना आइलेक्स

2007 में रांची में पहला मल्टीप्लेक्स आईलेक्स बना। इसके बाद कई और मल्टीप्लेक्स रांची में बने। पुराने जमाने के सुजाता व मीनाक्षी, प्लाजा ही आज जीवित हैं। बाकी जगहों पर बड़े-बड़े भवन या तो खड़े हो गए या खड़े हो रहे हैं।


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