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Vijay Diwas: जंगलों में दलदल, कीचड़ व पानी में रहकर शत्रुओं से कर रहा था मुकाबला

Vijay Diwas 1971 में भारत के सैनिकों ने अपने साहस से पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। सूबेदार कैप्टन टीके त्रिपाठी आज भी वो दिन याद कर गर्व महसूस करते हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 16 Dec 2019 08:18 AM (IST)Updated: Mon, 16 Dec 2019 10:23 AM (IST)
Vijay Diwas: जंगलों में दलदल, कीचड़ व पानी में रहकर शत्रुओं से कर रहा था मुकाबला
Vijay Diwas: जंगलों में दलदल, कीचड़ व पानी में रहकर शत्रुओं से कर रहा था मुकाबला

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। Vijay Diwas देशभर में आज विजय दिवस मनाया जा रहा है। सन् 1971 में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत की इस ऐतिहासिक जीत को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में वीरता का लोहा मनवाने वाले कई सैनिक आज भी वह दिन नहीं भूलते जब भारत के सैनिकों ने अपने अदम्य साहस तथा अनूठे रणनीतिक कौशल की बदौलत 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

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इस युद्ध में सूबेदार के पद पर तैनात कैप्टन टीके त्रिपाठी बताते हैं कि उस दिन को याद कर आज भी गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। कहा, चांदसारी में उनकी पोस्टिंग थी। वहां से गुवाहाटी के लामडिंग और वहां से उन्हें उत्तरी लखीमपुर भेजा गया था। वहां जंगलों में दलदल, कीचड़, पानी के बीच रहकर शत्रुओं से मुकाबला कर रहे थे। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, भारत तीन दिसंबर को इस युद्ध में शामिल हुआ था। उससे पहले बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी सेना युद्ध लड़ रही थी। वह कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में आज तक किसी देश के सैनिकों ने आत्मसमर्पण नहीं किया है।

उस समय अत्याधुनिक हथियार नहीं थे

केएन त्रिपाठी के साथ ही लड़े कैप्टन के एन गुप्ता बेहद बूढ़े हो चुके हैं। हालांकि वह उस दिन को आज तक नहीं भूले हैं, जब पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। वह कहते हैं कि उस दौर में आज की तरह अत्याधुनिक हथियार भी नहीं थे बावजूद हम पूरी बहादुरी के साथ लड़े थे।

युद्ध के आखिरी दिनों में हुई थी पोस्टिंग

लांस नायक सूबेदार आरबी तिवारी आज भी वह उस दिन को याद कर गर्व से भर जाते हैं। वह बताते हैं कि वह उस दौरान की काफी चीजें भूल चुके हैं लेकिन इतना उन्हें याद है कि उस वक्त उनकी पोस्टिंग युद्ध के आखिरी दिनों में हुई थी। वह उस दौरान साथियों संग ढाका पहुंच चुके थे, जब उनके वायरलेस सेट पर भारत विजय की खबर आयी थी। सैनिकों का उत्साह चरम पर था। वह कहते हैं कि मैं उस दिन को कभी नहीं भूलना चाहता।


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