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दुमका को सिल्क सिटी के रूप में पहचान दिलाएगी हेमंत सरकार, रेशम के धागों से आत्‍मनिर्भर बन रहीं संताल की महिलाएं

Women Empowerment in Jharkhand राज्य सरकार के प्रयास से झारखंड को रेशम के क्षेत्र में खोयी पहचान मिल रही है। रेशम के धागों को पिरो कर संताल की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रहीं हैं। महिलाएं दुमका को सिल्क सिटी के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 04 Feb 2021 08:05 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2021 08:17 PM (IST)
संताल की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रहीं हैं।

रांची, राज्य ब्यूरो। दुमका की रूबी कुमारी रेशम के धागों को आकार देने में माहिर और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। रूबी दिव्यांग होने के बावजूद कभी निराश नहीं हुई और संघर्ष के बूते सफलता की कहानी लिखी। राज्य सरकार ने भी 27 वर्षीय रूबी के हौसले को सराहते हुए उसका चयन मयूराक्षी सिल्क उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र, दुमका में धागाकरण और बुनाई के लिए किया। देखते ही देखते रूबी ने सोहराय, कोहबर, जादुपटिया जैसी हस्तकला को रेशम के वस्त्रों में सधे हाथों से उकेरना शुरू कर दिया।

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रूबी जैसी दुमका की कई आदिवासी युवतियां और महिलाएं अब झारखंड की लोक कलाओं को रेशम के घागों में उकेर कर अपने हुनर को पहचान दे रही हैं। सरकार का साथ मिला तो देशभर के रेशम उत्पादन में 80 प्रतिशत हिस्सेदारी रखनेवाले झारखंड और 50 प्रतिशत रेशम उत्पादन करने वाले संताल परगना की महिलाओं के दिन भी बहुरने लगे हैं। यहां की महिलाएं दुमका को सिल्क सिटी के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं।

बता दें कि संताल परगना में तसर कोकुन का उत्पादन ज्यादा होने के बावजूद बिहार के भागलपुर जिले को सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है, जबकि दुमका के ही कच्चे माल से यह ख्याति भागलपुर को मिली है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहां के लोग केवल तसर कोकून उत्पादन से जुड़े थे, जबकि कोकून उत्पादन के अलावा भी इस क्षेत्र में धागाकरण, वस्त्र बुनाई और ड्राइंग तथा प्रिंटिंग कर और अधिक रोजगार तथा आय हासिल की जा सकती थी। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने रणनीति तैयार की ताकि रेशम के क्षेत्र में दुमका को अलग पहचान मिले और यहां की गरीब महिलाओं को नियमित आय से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जा सके।

400 महिलाओं को दिया जा चुका प्रशिक्षण

मयूराक्षी सिल्क उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र में शुरू में लगभग 400 महिलाओं को सिल्क उत्पादन के विभिन्न कार्यों का अलग-अलग प्रशिक्षण दिया गया। आज लगभग 500 महिलाओं को विभिन्न माध्यमों से धागाकरण, बुनाई, हस्तकला इत्यादि का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जबकि पूरे झारखंड में एक लाख 65 हजार परिवार रेशम उत्पादन से जुड़े हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 से राज्य से 60 युवाओं का चयन कर रेशम पालन, रेशम बुनाई एवं रेशम-छपाई में एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

सीएम ने दिया सिल्क उत्पादन बढ़ाने का आदेश

दुमका प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मयूराक्षी सिल्क उत्पाद का अवलोकन किया था। इस क्रम में उन्होंने जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि सिल्क के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव संसाधन सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाए, जिससे यहां के लोगों को अधिक रोजगार मिले।


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