पत्थलगड़ी के वर्तमान स्वरूप को रोकें ग्राम प्रधान: राज्यपाल
राज्यपाल ने खूंटी में अपेक्षा के अनुरूप विकास नहीं होने की बात स्वीकार करते हुए इसपर तेजी से काम करने का भरोसा दिलाया।
राज्य ब्यूरो, रांची। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू खूंटी में पत्थलगड़ी के दुरुपयोग और इसे लेकर उत्पन्न विवाद के समाधान के लिए मंगलवार को स्वयं आगे आई। उन्होंने राजभवन के बिरसा मंडप में आयोजित 'विचार मंच' कार्यक्रम में अनुसूचित क्षेत्रों के महत्वपूर्ण अंग माने जानेवाले पड़हा राजा, मानकी मुंडा, ग्राम प्रधान आदि से सीधे रूबरू होकर उनकी राय ली। उन्होंने खूंटी के सभी छह प्रखंडों से पांच-पांच ग्राम प्रधानों को बारी-बारी से सुना। ग्राम प्रधानों को सुनने के बाद उन्होंने स्पष्ट रूप से उनसे बाहरी तत्वों से दूर रहने का आह्वान किया। साथ ही, पत्थलगड़ी के वर्तमान स्वरूप पर भी रोक लगाने की अपील की।
राज्यपाल ने खूंटी में अपेक्षा के अनुरूप विकास नहीं होने की बात स्वीकार करते हुए इसपर तेजी से काम करने का भरोसा दिलाया। सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यो की जानकारी भी दी। साथ ही ग्राम प्रधानों से सरकार को विकास कार्यो में सहयोग करने का आह्वान किया। यह भी चेताया कि यदि वे सरकारी योजनाओं का बहिष्कार करेंगे तो विकास से और भी दूर होते जाएंगे। राज्यपाल ने अनुसूचित क्षेत्रों में शासन व्यवस्था अधिक सुचारू रूप से संचालित करने के उद्देश्य से इस विचार गोष्ठी का आयोजन कराया था।
इस क्रम में अधिसंख्य ग्राम प्रधानों ने पांचवीं अनुसूची के सारे प्रावधानों का सख्ती से लागू करने की मांग की। खासकर उन प्रावधानों को जिनमें सारी प्रशासनिक शक्तियां ग्राम सभाओं में निहित की गई हैं। कहा, उनका अधिकार उन्हें हर हाल में मिले। ग्राम प्रधानों ने पेसा कानून को भी अविलंब लागू करने की मांग की। कई ग्राम प्रधानों ने तो यहां तक कह दिया कि पांचवीं अनुसूची के प्रावधान और पेसा कानून लागू नहीं होने के कारण ही खूंटी में पत्थलगड़ी की समस्या है।
विकास से कोसों दूर है खूंटी
अधिसंख्य ग्राम प्रधानों ने खूंटी के गांवों में विकास नहीं होने को भी पत्थलगड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना था कि खूंटी विकास से कोसों दूर है। वहां न तो सड़क है न ही पीने को पानी। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में वहां कुछ भी नहीं हुआ है। योजनाओं में बिचौलिए हावी है।
जहां पानी नहीं वहां बनाया डोभा
कई ग्राम प्रधानों का कहना था कि उन पर सरकार योजनाएं थोपती है। ग्रामीणों को क्या चाहिए, इसे जानने का सरकार प्रयास नहीं करती। बजट तैयार करने में जनता से राय सिर्फ कागजों पर ली जाती है। इसमें पार्टियों के लोग ही अपनी बात रखते हैं। कुछ ग्राम प्रधानों ने डोभा का उदाहरण देते हुए कहा कि यह भी थोपा गया है। जहां पानी ही नहीं है वहां डोभा बना दिया गया है।
कानून का करें सख्ती से पालन
राज्यपाल ने ग्राम प्रधानों के जरिए खूंटी के लोगों से कानून के सख्ती से पालन करने की भी नसीहत दी। कहा, कोई भी कार्य संवैधानिक दायरे में ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान के परे उन्हें कोई भी कार्य स्वीकार्य नहीं होगा। सभी को अपने मौलिक अधिकारों और कर्त्तव्यों को जानते हुए जिम्मेदार नागरिक बनने का प्रयास करना चाहिए।
नशा से दूर रहें ग्रामीण
राज्यपाल ने ग्राम प्रधानों को ग्रामीणों को नशा से दूर रहने के लिए अपील करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि नशापान से भी आदिवासियों को काफी नुकसान हो रहा है। बाहरी तत्व उन्हें बरगला रहे हैं। उन्होंने लोगों से शांतिमय जीवन जीने की भी अपील की।
बच्चों को भेजें स्कूल
राज्यपाल ने खूंटी के ग्रामीणों से बच्चों को हर हाल में अपने बच्चों को स्कूल भेजने की भी नसीहत दी। कहा कि वे किसी के बहकावे में आकर बच्चों को शिक्षा से वंचित कर उनका भविष्य बर्बाद न करें। क्योंकि जो लोग उन्हें बरगला रहे हैं उनलोगों के बच्चे बड़े-बड़े निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। वे अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं और आपके बच्चे न पढ़े इसलिए स्कूल जाने से रोक रहे हैं।
ये बातें भी उठीं
-जनजातीय परामर्शदातृ समिति की नियमावली भी अभी तक गठित नहीं हो पाई है।
-राज्य में अभी तक पेसा कानून भी लागू नहीं हो पाया है।
-राज्य में सरना कोड लागू हो।
रांची, जेएनएन। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने आज पत्थलगड़ी पर ग्राम प्रधानों से रायशुमारी की। उन्होंने कहा कि बाहरी तत्वों से दूर रहें, पत्थलगड़ी के वर्तमान स्वरूप को रोकें। इस मौके पर ग्राम प्रधानों ने कहा कि पांचवीं अनुसूची के सारे प्रावधान लागू करें, खूंटी विकास से कोसों दूर है। पत्थलगड़ी को लेकर ग्राम प्रधान एकमत नहीं हैं। पिछले कई महीनों से राजधानी रांची से सटे गांव व खूंटी समेत अन्य जिलों में ग्रामीणों ने प्रशासन को चुनौती देते हुए पत्थलगड़ी की है। सरकार के प्रति पत्थलगड़ी अभियान में नारे लगते हैं। इसे लेकर राज्यपाल ने ग्राम प्रधानों व मानकी मुंडा की बैठक बुलाई थी।
खूंटी में पत्थलगड़ी के दुरुपयोग को लेकर उत्पन्न विवाद के समाधान के लिए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू खुद आगे आईं। उन्होंने इसे लेकर राजभवन में ‘विचार मंच’ कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया है। इसमें उन्होंने अनुसूचित क्षेत्रों के महत्वपूर्ण अंग माने जाने वाले पड़हा राजा, मानकी मुंडा, ग्राम प्रधान आदि से सीधी वार्ता एवं विमर्श किया। यह कार्यक्रम मंगलवार को राजभवन के बिरसा मंडप में हुआ। अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन को लेकर आयोजित वार्ता में शामिल होने खूंटी के ग्राम प्रधान भी राजभवन पहुंचे।
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने अनुसूचित क्षेत्रों में शासन-व्यवस्था अधिक सूचारू रूप से संचालित करने के उद्देश्य से अनुसूचित क्षेत्रों के महत्वपूर्ण अंग पड़हा राजा, मानकी मुण्डा, ग्राम प्रधान इत्यादि से सीधी वार्ता एवं विमर्श को लेकर बैठक की।
राज्यपाल ने अनुसूचित क्षेत्रों में शासन व्यवस्था अधिक सुचारू रूप से संचालित करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया है। इसमें भाग लेने के लिए खूंटी जिले के उपायुक्त समेत डीडीसी, प्रखंड विकास पदाधिकारियों, अंचलाधिकारियों समेत सभी पदाधिकारियों को बुलाया गया था।
जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) के सदस्य रतन तिर्की ने भी राज्यपाल से मिलकर पत्थलगड़ी के विवाद के समाधान के लिए पड़हा राजा, मानकी मुंडा, ग्राम प्रधानों की बैठक बुलाने का सुझाव दिया था।
राज्यपाल को प्राप्त हैं विशेष शक्तियां :
संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों के लिए राज्यपाल को महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हैं। राज्यपाल को इन क्षेत्रों में शासन-व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए नियम बनाने का भी अधिकार है। लेकिन यह नियम जनजातीय परामर्शदातृ समिति के परामर्श के बाद ही बनाया जा सकता है। ऐसा नियम बनाते समय कोई राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से संसद या विधानमंडल के कानूनों एवं नियमों में संशोधन भी कर सकता है।
राज्यपाल अपनी शक्तियों का करें उपयोगः प्रेमचंद मुमरू
आदिवासी नेता प्रेमचंद मुमरू ने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से पांचवीं अनुसूची के तहत प्रदत्त अपनी असीम शक्तियों के उपयोग करने की मांग की है। उन्होंने प्रेस बयान जारी कर कहा है कि झारखंड में अबतक राज्यपाल इस शक्तियों के उपयोग को लेकर उदासीन रहे हैं। जनजातीय परामर्शदातृ समिति की नियमावली भी अभी तक गठित नहीं हो पाई है। राज्य में पेसा कानून भी लागू नहीं हो पाया है। पंचायतों को स्वायत्तता नहीं मिल सकी है। अनुसूचित क्षेत्र के कानूनों का स्वयं सरकार ही उल्लंघन करती है।