झारखंड में सरकारी मेडिकल काॅलेज तोड़ रहे दम, निजी संस्थानों की बहार
झारखंड के तीन मेडिकल कालेज-अस्पतालों में नेशनल मेडिकल काउंसिल ने नामांकन पर रोक लगा रखी है। झारखंड सरकार इन कालेजों की स्थिति सुधारने की कवायद में जुटी है। क्या सरकार की पहल रंग लाएगी यह देखने वाली बात होगी।
रांची, जासं। झारखंड में जहां एक तरफ सरकारी मेडिकल कालेज दम तोड़ रहे हैं, वहीं प्राइवेट मेडिकल कालेज खोलने की कवायद तेज हो गई है। दरअसल, झारखंड सरकार की उदासीनता के कारण ऐसी नौबत आ रही है। सरकार के पास अपने कालेजों की सेहत सुधारने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं है। सरकारी मेडिकल कालेजों में इस समय बुनियादी संसाधनों का घोर अभाव है। नेशनल मेडिकल काउंसिल ने झारखंड में तीन मेडिकल कालेजों में नामांकन पर रोक लगा रखी है।
इनमें हजारीबाग स्थित मेदिनीराय मेडिकल कालेज सह अस्पताल, हजारीबाग के ही शेख भिखारी मेडिकल कालेज सह अस्पताल और दुमका स्थित फूलो-झानो मेडिकल कालेज-अस्पताल शामिल हैं। इन तीनों मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस पाठयक्रम में क्रमश: सौ-सौ सीटों पर शैक्षणिक सत्र 2019- 2020 में दाखिला हुआ था। लेकिन यहां बुनियादी सुविधाएं नहीं होने के कारण इस बार नेशनल मेडिकल काउंसिल ने दाखिले पर प्रतिबंध लगा रखा है।
मेडिकल की पढ़ाई करने वाले झारखंड के छात्र इससे काफी दुखी हैं। सियासी दलों ने भी इसे मुद्दा बनाते हुए कई बार सरकार की आलोचना की है। फजीहत होत देख राज्य सरकार भी इधर बीच थोड़ी सक्रियता दिखा रही है। गुरुवार को राज्य के मुख्य सचिव राजधानी रांची में देर शाम बैठक करने जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात करेंगे कि इन तीनों मेडिकल कालेजों को कैसे बचाया जाए।
यहां फैकल्टी और लैब आदि आदि की कैसे व्यवस्था की जाए। देखने वाली बात यह होगी कि इस बैठक में क्या निकल कर आता है। राज्य सरकार क्या कदम उठाने की घोषणा करती है। राज्य सरकार इन कालेजों के बुनियादी विकास के लिए कहां से संसाधन जुटाती है। यदि इन तीनों मेडिकल कालेजों को नहीं बचाया गया तो झारखंड सरकार की भविष्य में खूब बदनामी हो सकती है।
सियासी पार्टियां इसे मुद्दा बनाकर राज्य सरकार को घेर सकती हैं। उधर, इस बीच टाटा-मणिपाल के संयुक्त प्रयास से पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर शहर के बारीडीह में एक मेडिकल कालेज सह अस्पताल खोलने की घोषणा जमीन पर उतरने लगी है। इसी सत्र से यहां दाखिला भी शुरू होने जा रहा है। प्रबंधन ने राज्य के निवासी छात्रों के लिए डेढ़ सौ में 25 सीटें आरक्षित करने की घोषणा भी कर दी है।
लेकिन यहां दाखिला लेने वाले छात्रों को संस्थान द्वारा तय पूरी फीस जमा करनी होगी। राज्य सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि संस्थान ने सरकार से कोई मदद नहीं ली है, इसलिए संस्थान खुद तय की गई फीस वसूली के लिए स्वतंत्र है। सरकार फीस में छूट आदि के लिए दबाव नहीं डाल सकती है। खैर, इस नए मेडिकल कालेज के खुल जाने से पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में दो मेडिकल कालेज हो जाएंगे।
एक सरकारी यानी महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज सह अस्पताल और दूसरा निजी टाटा-मणिपाल मेडिकल कालेज सह अस्पताल। चिंता की बात यह भी है कि सरकारी महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज सह अस्पताल की स्थिति भी ठीक नहीं है। यहां भी बुनियादी संसाधनों का टोटा है।