रिम्स में पहली बार लैप्रोस्कोपिक पाइलोप्लास्टी सर्जरी कर बचायी बच्ची की जान
अनुज तिवारीरांची रिम्स में पहली बार लैप्रोस्कोपिक पाइलोप्लास्टी सर्जरी कर हजारीबाग की न
अनुज तिवारी,रांची :
रिम्स में पहली बार लैप्रोस्कोपिक पाइलोप्लास्टी सर्जरी कर हजारीबाग की नौ वर्षीय बच्ची डाली कुमारी की जान यूरोलॉजी के डाक्टरों ने बचाई। इस सर्जरी में खास बात यह रही कि बिना चीर-फाड़ के पांच घंटे तक जटिल सर्जरी की गई, पूरी सर्जरी लेप्रोस्कोपिक विधि से की गई। सर्जरी करने वाले यूरोलाजी विभाग के एचओडी डा अरशद जमाल ने बताया कि मरीज को जन्म से ही किडनी की बीमारी थी। इसमें किडनी में रुकावट आ जाती है और मूत्र विसर्जन में समस्या आती है। अगर इसमें और देर होती तो किडनी के खराब हो सकती थी। लैप्रोस्कोपिक पाइलोप्लास्टी एक सर्जरी करने का एक तरीका है जहां मूत्रवाहिनी (ट्यूब जो गुर्दे से मूत्राशय तक मूत्र को बहाती है) उसे सर्जरी कर गुर्दे से जोड़ा जाता है। इस बच्ची के मामले में मूत्रवाहिनी सही से काम नहीं कर रही थी। इस कारण सूजन बढ़ गई थी। सूजन की वजह से पेट काफी फूल गया था। बच्ची के परिजनों ने बताया कि पांच माह से पेट में सूजन की शिकायत थी। इसे लेकर कई अस्पतालों के चक्कर लगाए गए। लेकिन सभी जगहों पर सर्जरी महंगी होने के कारण रिम्स में पहुंचे। लेकिन गुरुवार को सर्जरी के बाद बच्ची की तबीयत काफी अच्छी है और उसे जल्द ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। चुनौतीपूर्ण थी सर्जरी : सर्जरी करने वाले डाक्टरों की टीम ने बताया कि यह केस काफी चुनौतीपूर्ण था। सूजन का आकार बड़ा था। इस तरह के मामले में ओपन सर्जरी करना जरूरी होता है लेकिन बच्ची की उम्र देखकर डाक्टरों ने लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। इसके बाद बच्ची का ऑपरेशन किया गया। अभी बच्ची को जेनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। ऑपरेशन करने वालों की टीम में डा अरशद जमाल, डा राणा प्रताप सिंह, डा विजेंद्र और डा मार्शल शामिल थे। डा जमाल ने बताया कि जब यह बच्ची उनके पास आई थी तो उसका पेट इतना बड़ा था कि वो ठीक से सांस भी नहीं ले पा रही थी। उसकी जांच करने के बाद सर्जरी की तैयारी की गई और उसे पूरा किया गया। उन्होंने बताया कि आमतौर पर इस तरह की सर्जरी पर निजी अस्पतालों में दो लाख रुपये तक का खर्च आता है। लेकिन रिम्स में इस सर्जरी में कोई पैसा मरीज को नहीं देना पड़ा।