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Inspirational Story: उठने, गिरने और फिर उठने की कहानी है 'गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर'; आप भी जानें

RIMS Ranchi Jharkhand News डॉ. दिव्‍या सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हुईं थी। गर्दन से नीचे पूरे शरीर को पैरालिसिस मार गया था। छह महीने अस्तपाल में रही। ठीक होने के बाद रिम्स में दोबारा मेडिकल ऑफिसर के रूप में ज्वाइन किया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 07 Aug 2021 12:10 PM (IST)Updated: Sat, 07 Aug 2021 01:26 PM (IST)
Inspirational Story: उठने, गिरने और फिर उठने की कहानी है 'गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर'; आप भी जानें
RIMS Ranchi, Jharkhand News रिम्‍स में कार्यरत डॉ. दिव्‍या।

रांची, जासं। 'विंग्स ऑफ फायर' आपने पढ़ी होगी। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की ऑटोबायोग्राफी। हर बाधा को पार कर सपनों को हासिल करने की कोशिश। ये सपने पूरे भी होते हैं। पर क्या हो, जब सपने चूर हो जाएं। पंख उड़ने को हों और टूट जाएं। हर ओर निराशा और अंधेरा हो। ऐसे मुश्किल समय से उबरना और हर बाधा को पार कर अपने हौसलों के दम पर उड़ान भरना, सही मायनों में सच्ची कामयाबी है। ऐसे ही संघर्ष और जिजीविषा की कहानी है 'गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर।'

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व्हाइट फॉल्कन पब्लिशिंग से प्रकाशित यह पुस्तक रिम्स रांची में पीडियाट्रिक्स विभाग में कार्यरत मेडिकल ऑफिसर डाॅ. दिव्या सिंह की ऑटोबायोग्राफी है। सपनों की उड़ान हौसला तय करता है, यह परिभाषित करती है उनके जीवन की कथा, जिससे मुश्किलें भी अब मुस्कराकर उन्हें सलाम करती है। पुस्तक सात सेक्शन में है। हर सेक्शन डाॅ. दिव्या के उठने, गिरने और फिर उठने की कहानी है। बड़ी संजीदगी से डाॅ. दिव्या ने अपने दर्द, अपनी पीड़ा को सामने रखा है।

यह भी बताया है कि कैसे मुश्किल वक्त में जब अपनों का साथ मिला तो सारी बाधाओं को पार कर सकीं। पुस्तक के दूसरे चैप्टर द डाउनफॉल में डाॅ. दिव्या ने बताया है कि वह डीएम नियोनेटोलॉजी की परीक्षा के लिए तैयारी कर रहीं थीं। 15 दिसंबर 2013 को परीक्षा दी। प्लान बना कि आगरा चला जाए ताजमहल देखने के लिए। उन्हें क्या पता था कि एक बड़ी दुर्घटना उनका इंतजार कर रही है। 16 दिसंबर 2013 की तारीख वह नहीं भूल सकतीं। उनकी कार बस से टकरा गई। दुर्घटना में वह बुरी तरह घायल हुईं। खून से लथपथ, अचेत।

उन्हें किसने अस्पताल पहुंचाया, कब होश आया, पता नहीं। उनका स्पाइनल कॉर्ड क्षतिग्रस्त हो गया था। उन्‍हें कार्डियोप्‍लेगिया हो गया था। यानी गर्दन के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा था। इस पूरे हिस्से को पैरालिसिस मार गया। छह महीने तक वह अस्पताल में रहीं। अस्पताल में जिन दुख-तकलीफों को उन्‍होंने झेला, उसे पुस्तक में बयांं किया है। आखिर में लंबे इलाज के बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुईं और अपने शहर रांची पहुंची। रांची में सीनियर रेसीडेंट डाॅक्टर के रूप में उन्होंने दोबारा काम शुरू किया। फिलहाल वे रिम्स में पेडियाट्रिक्स विभाग में मेडिकल ऑफिसर हैं।

पिता और भाई स्तंभ की तरह खड़े रहे

डाॅ. दिव्या बताती हैं कि इन वर्षों में पिता एम सिंह और भाई मन्नू स्तंंभ की तरह खड़े रहे। पिता हमेशा मोटिवेट करते रहे। उनके मोटिवेशन से ही मैं इस दुख से बाहर आ सकी। कहती हैं कि टेलीकाॅम इंजीनियर भाई मन्नू दोस्त की तरह है। डाॅ. दिव्या सिंह ने एनआरएसएमसीएच कोलकाता से एमबीबीएस किया है। रिम्स रांची से पीडियाट्रिक्स में एमडी की है।


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