जीएसटी में सेंधमारी, 350 करोड़ का फर्जीवाड़ा
जमशेदपुर, रांची, धनबाद, बोकारो और देवघर में अब तक 19 मामलों का हुआ खुलासा।
आनंद मिश्र, रांची : पारदर्शी और पुख्ता मानी जानी वाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कर प्रणाली में राज्य के कुछ चतुर कारोबारियों ने सेंध लगाते हुए सरकार को बड़ा झटका दिया है। वाणिज्यकर विभाग की हालिया जांच में अब तक कुल 19 फर्जीवाड़े के मामले सामने आए हैं जिससे सरकार को सीधे तौर पर लगभग 350 करोड़ रुपये की चपत लगी है। इस तरह का फर्जीवाड़ा करने वाली 12 कंपनियों पर अब तक प्राथमिकी दर्ज की गई है। इन कंपनियों ने 168 करोड़ रुपये से अधिक के टैक्स की हेराफेरी की है। अन्य मामलों में जल्द कार्रवाई की बात कही जा रही है।
जमशेदपुर, रांची, धनबाद, बोकारो और देवघर में जीएसटी फर्जीवाड़े के तकरीबन एक जैसे मामले सामने आए हैं। सभी मामलों में फर्जी कंपनियों का गठन किया गया और उनसे कच्चे माल की आपूर्ति दर्शाने के साथ-साथ दिखाया गया कि उन्हें टैक्स अदा किया गया। जबकि ऐसा कोई भी टैक्स नहीं दिया गया। दिए गए फर्जी टैक्स को तैयार माल की आपूर्ति के वक्त समायोजित कर इनपुट टैक्स क्रेडिट लिया गया।
फर्जी कंपनी के नाम पर करोड़ों रुपये का ट्राजेक्शन (खरीद-बिक्री) कागज पर दिखाकर आइटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) का दावा पेश कर उसका उपभोग कर लिया गया। यह सीधे-सीधे टैक्स की चोरी का मामला बनता है। मामला समाने आने के बाद अब एक-एक कर ऐसे फर्जी कारोबारियों के खाते खंगाले जा रहे हैं और उन पर मामला दर्ज किया जा रहा है। वाणिज्यकर विभाग के अधिकारी इस फर्जीवाड़े से हैरत में हैं और मानते हैं कि यह मामला जितना दिख रहा है उससे कहीं अधिक बड़ा है। हालांकि जांच प्रभावित न हो इसलिए वे किसी भी तरह की जानकारी साझा करने से परहेज कर रहे हैं।
डेटा के लिए जीएसटीएन पर निर्भर है राज्य सरकार :
राज्य के कारोबारियों ने कितने का लेन देन किया और इस एवज में सरकार को कितना टैक्स अदा किया इस डेटा के लिए राज्य सरकार को केंद्र की एजेंसी जीएसटीएन पर निर्भर रहना पड़ता है। दरअसल, जीएसटी लागू होने से पूर्व राज्यों को यह विकल्प दिया गया था कि वे मॉडल-1 में जाना पसंद करेंगे या मॉडल-2 में।
मॉडल-1 के तहत उन्हें अपना साफ्टवेयर डेवलप करना था और उसे सेंट्रल सर्वर से जोड़ना था जबकि मॉडल-2 के तहत आने वाले राज्य केंद्र द्वारा मुहैया कराए गए साफ्टवेयर का उपयोग करते हैं। झारखंड मॉडल-2 में आता है और इसके डेटा का ब्योरा जीएसटीएन रखता है।
कैसे हुआ खुलासा :
केंद्रीय और राज्य सरकार के करदाताओं को आइटी संबंधी सेवाएं मुहैया कराने वाली एजेंसी माल एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) ने राज्य सरकार को जुलाई से दिसंबर-17 के बीच बड़ा कारोबार करने वाले व्यवसायियों के आंकड़े गड़बड़ी के आशंका के साथ मुहैया कराए। वाणिज्यकर विभाग ने पूरे मामले की पड़ताल शुरू की।
इनमें ऐसे मामलों को टटोलना शुरू किया गया जिसमें कारोबारियों ने भारी भरकम इनपुट टैक्स क्रेडिट समायोजित किया। इन कंपनियों की पड़ताल की गई तो बड़े पैमाने पर फर्जी लेन-देन का पता चला। जांच आगे बढ़ी तो कंपनियां फर्जी निकली, पते और मोबाइल नंबर तक फर्जी पाए गए।
क्या है इनपुट टैक्स क्रेडिट :
किसी सामान के इस्तेमाल होने के पहले के टैक्स को इनपुट टैक्स कहा जाएगा और आगे के स्तर के लिए ये क्रेडिट का काम करेगा। यानी पिछला टैक्स घटा जाएगा। और जो आगे मिल रहा है वो इनपुट टैक्स क्रेडिट होगा। सीधे शब्दों में समझे तो किसी उत्पाद को तैयार करने के लिए खरीदे गए कच्चे माल पर टैक्स चुकाया जाता है। माल तैयार होने के बाद उसे बेचने पर उस कर को समायोजित किया जाता है। इसे इनपुट टैक्स क्रेडिट कहा जाता है।
इन कंपनियों पर दर्ज हुई प्राथमिकी :
कंपनी फर्जीवाड़ा (करोड़ रुपये में)
कंचन एलाय एंड स्टील, जुगसलाई : 14 करोड़
कृष्णा इंटरप्राइजेज, बिरसानगर 37.16 करोड़
म¨हद्रा ट्रेडर्स, वर्मामाइंस : 1.05 करोड़
शांकभरी मेटालिक्स एंड एलाय, जुगसलाई : 5.73 करोड़
पीके ट्रेडर्स, टेल्को : 7.32 करोड़
पूर्वा इंटरप्राइजेज, गोधर : 3.74 करोड़
भूतनाथ इंटरप्राइजेज, बरवाअड्डा : 32.52 करोड़
विगनेश इंटरप्राइजेज, गोविंदपुर : 7.89 करोड़
सिद्धि विनायक मेटल एंड सॉल्ट प्राइवेट लिमिटेड, बोकारो : 6.50 करोड़
रेणु इंटरप्राइजेज, बोकारो : 3.20 करोड़
साहा इंटरप्राइजेज, देवघर : 24.46 करोड़
ओम ट्रेडिंग कंपनी, देवघर : 24.45 करोड़