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छापेमारी से पहले मच रहा शोर, वाट्सएप ग्रुप के फूल से नहीं फूट रहा भ्रष्ट अधिकारियों का भांडा

Corruption. जिलों में डीसी से छापेमारी के लिए मजिस्ट्रेट की मांग करते ही खबर लीक हो जाती है और एसीबी को खाली हाथ लौटना पड़ता है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 12:50 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 12:50 PM (IST)
छापेमारी से पहले मच रहा शोर, वाट्सएप ग्रुप के फूल से नहीं फूट रहा भ्रष्ट अधिकारियों का भांडा
छापेमारी से पहले मच रहा शोर, वाट्सएप ग्रुप के फूल से नहीं फूट रहा भ्रष्ट अधिकारियों का भांडा

रांची, दिलीप कुमार। झारखंड  प्रशासनिक सेवा संघ (झासा) के विरोध के बाद से रिश्वत लेते एक भी सीओ-बीडीओ का पकड़ा नहीं जाना, भले ही एसीबी की विफलता है, लेकिन इसके पीछे के कारण कई और भी हैैं। किसी बीडीओ-सीओ के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर एसीबी छापा अब भी मारती है, लेकिन वे पकड़े नहीं जाते। इसके पीछे कारणों की पड़ताल में एसीबी की टीम जब जुटी तो सनसनीखेज खुलासा हुआ? कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

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सूत्रों की मानें तो भ्रष्ट अफसर को वाट्सएप ग्रुप का एक 'फूल' बचा लेता है। वह 'फूल' इस बात का संकेत होता है कि आज एसीबी छापा मारने वाली है। फूल का मैसेज चलते ही वाट्सएप ग्रुप से जुड़े अफसर अलर्ट हो जाते हैं और एसीबी का ट्रैप विफल हो जाता है। इसकी जानकारी जब एसीबी के तत्कालीन एडीजी मुरारी लाल मीणा को मिली तो उन्होंने सरकार को एक पत्र लिखा कि छापेमारी के लिए संबंधित जिले के डीसी से मजिस्ट्रेट मांगने की बाध्यता खत्म की जाए। उन्होंने आशंका जताई थी कि जैसे ही मजिस्ट्रेट की डिमांड की जाती है, सबको पता चल जाता है और एसीबी का ट्रैप विफल हो जाता है।

झासा के विरोध के बाद ही छापेमारी में मजिस्ट्रेट रखना हुआ है अनिवार्य : बीते साल 14 नवंबर को हजारीबाग के सीओ को पांच हजार रुपये रिश्वत लेते एसीबी ने पकड़ा था, जिसके बाद ही झारखंड प्रशासनिक सेवा संघ (झासा) ने विरोध कर दिया था। कई दिनों तक आंदोलन होता रहा। इसके बाद सरकार के स्तर पर इसकी समीक्षा हुई थी, जिसके बाद यह तय हुआ था कि किसी भी छापेमारी में एसीबी को संबंधित जिले से दंडाधिकारी लेकर जाना है। अब ट्रैप के लिए स्थानीय जिले के मजिस्ट्रेट एसीबी के साथ जाते हैं।

पूर्व एडीजी ने सरकार को लिखी थी चिट्ठी : एसीबी के पूर्व एडीजी मुरारी लाल मीणा ने भ्रष्टाचार के संदिग्ध सीओ-बीडीओ की गिरफ्तारी नहीं होने पर समीक्षा की तो पता चला कि छापेमारी के पूर्व ही उन्हें भनक लग जाती है। इसके बाद पूर्व एडीजी मुरारी लाल मीणा ने सरकार को पत्र लिखकर यह आग्रह किया कि छापेमारी में मजिस्ट्रेट तो रखा जाए, लेकिन संबंधित जिले के डीसी से लेने की बाध्यता खत्म की जाए। मजिस्ट्रेट के रूप में कभी डॉक्टर, कभी टीचर या कभी किसी और विभाग के अधिकारी को रखने की अनुमति दी जाए, ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध छापेमारी में सफलता हाथ लग सके। यह प्रस्ताव अभी सरकार के स्तर पर लंबित है।


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