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बेबी कॉर्न की खेती से किसान हो रहे समृद्ध, फास्ट फूड व व्यंजन बनाने में होता है इस्तेमाल

Jharkhand Dishes News. राज्य सरकार मक्का उपज के लिए किसानों की मदद कर रही है। फसल कटने के बाद पौधे का हरे चारे के रूप में इस्तेमाल होता है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 12:27 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 12:37 PM (IST)
बेबी कॉर्न की खेती से किसान हो रहे समृद्ध, फास्ट फूड व व्यंजन बनाने में होता है इस्तेमाल
बेबी कॉर्न की खेती से किसान हो रहे समृद्ध, फास्ट फूड व व्यंजन बनाने में होता है इस्तेमाल

खास बातें

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  •  01 साल में कर सकते हैं 4.5 से पांच लाख तक की कमाई
  • 03 से चार बार किसान साल में कर सकते हैं खेती
  •  50-60 दिनों में तैयार हो जाती है बेबी कॉर्न की फसल
  • 01 हेक्टेयर की खेती में 16 से 20 क्विंटल तैयार होती है फसल  
  • 200 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है प्रमाणित बीज
  • 06 से 10 हजार रुपये तक का खर्च आ आता है कीटनाशक व दवा पर 

रांची, जासं। पिछले कुछ सालों में राज्य में बेबी कॉर्न की मांग काफी बढ़ गई है। फास्ट फूड से लेकर बड़े होटल और रेस्टोरेंट में कई ऐसे व्यंजन बनाए जाते हैं, जिसमे बेबी कॉर्न का इस्तेमाल होता है। आइसीएमआर और बीएयू के द्वारा चलाई जा रही एक परियोजना के शोध में पाया गया कि रांची और आसपास के इलाके में बेबी कॉर्न की उपजाने के लिए जलवायु और मिट्टी दोनों उपयुक्त हैं।

हालांकि इसके लिए सिंचाई की व्यवस्था किसानों को अच्छे से करने की जरूरत है। राज्य सरकार के द्वारा मक्का उपज के लिए भी किसानों की मदद की जा रही है। इसके साथ ही कई बड़ी कंपनियां सीधे किसानों से इनकी उपज खरीदने के लिए करार कर रही हैं। इससे किसानों का बेबी कॉर्न की खेती में रूझान बढ़ा है। अनगड़ा, ओरमांझी, चान्हो, नगड़ी आदि के कई प्रगतिशील किसान बड़े प्रक्षेत्र में बेबी कॉर्न का खेती कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री टपक सिंचाई योजना से मिल रही मदद

बेबी कॉर्न की खेती में टपक सिंचाई से काफी अच्छी उपज होती है। इसके साथ ही पानी का उपयोग भी सही तरीके से हो पाता है। केंद्र सरकार के द्वारा किसानों को खेती में मदद करने के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं में प्रधानमंत्री टपक सिंचाई योजना काफी मददगार साबित हुई है।

कई किसानों को योजनाओं का मिला है लाभ

जिला कृषि विकास पदाधिकारी अशोक कुमार यादव बताते हैं कि रांची और आसपास के इलाके में कई किसानों को योजना का लाभ दिया गया है। इससे वो बेबी कॉर्न की खेती पूरे साल कर रहे हैं। एक हेक्टेयर में बेबी कॉर्न की खेती से किसान कम से कम 4.5 से पांच लाख तक की सालाना आय आराम से कर सकते हैं।

आर्थिक उन्नति के लिए जरूरी है व्यावसायिक खेती

बिरसा कृषि विवि की कृषि वैज्ञानिक डॉ. मणिगोपा चक्रवर्ती बताती हैं कि किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिए उन्हें व्यावसायिक खेती से जोडऩे की जरूरत है। किसानों को ऐसी फसल उपजाने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है, जिससे पैसे सीधे उन तक आए। बेबी कॉर्न ऐसी ही एक फसल है। एक हेक्टेयर कृषि भूमि में बेबी कॉर्न पैदा करने के लिए लगभग 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रमाणित बीज 200 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है।

इसके अलावा बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक व अन्य लागत पर छह से 10 हजार रुपये का खर्च आ जाता है। इसका अर्थ है कि किसान 50-60 दिनों में तैयार होने वाली इस फसल की कम से कम चार बार खेती एक साल में कर सकते हैं। एक हेक्टेयर बेबी कॉर्न की फसल से लगभग 16 से 20 क्विंटल तैयार होती है। हाल के दिनों रिलायंस फ्रेश, बिग बाजार के साथ कई बड़ी कंपनियां किसानों के उत्पाद खरीदने के लिए आगे आईं हैं।

क्या कहते हैं किसान

मेरे इलाके के किसान ज्यादातर धान की खेती पर आश्रित रहते थे। मैंने जब पहली बार बेबी कॉर्न लगाया तो बाजार में अच्छी कीमत मिली। मैं अपने खेत में एमएच-4 प्रभेद का इस्तेमाल करता हूं। मेरा माल लोकल बाजार में ही खप जाता था। पिछले तीन सालों में मेरी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। पिछले एक साल से मैं एक बड़ी कंपनी के माध्यम से अपना माल दिल्ली और बेंगलुरू भेज रहा हूं। फसल कट जाने के बाद पौधे को हरा चारा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके भी अच्छे पैसे मिल जाते हैं। -मनोज महतो, गांव- करंजी, चान्हो।

बेबी कॉर्न की खेती से मेरे साथ कई किसानों को लाभ हुआ। पारंपरिक खेती करते थे तो कर्ज में डूूबे थे। लेकिन अब रांची के बड़े बाजारों के साथ मेरा माल उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बाजारों तक जा रहा है। फसल टूटने से पहले ही व्यापारी या कंपनी अपनी बुकिंग करा देती है। फसल की क्वालिटी और साइज के हिसाब से पैसे मिल जाते हैं। दो महीने की फसल है साल में कम से कम तीन बार तो आसानी से उपजा लेता हूं। इसके बाद जब समय मिलता है तो बाकी कोई दूसरी फसल भी खेत में लगा देता हूं। -शनि उरांव, ग्राम- बेयासी, चान्हो।


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