झारखंड में काम नहीं आया भाजपा का तिकड़म, नेताओं के चेहरे भी हो गए बेनकाब, पढ़िए- राजेश ठाकुर का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
Rajesh Thakur Exclusive Interview झारखंड में राजनीतिक घमासान के बीच इस समय कांग्रेस सुर्खियों में है। हेमंत सोरेन सरकार कितने दिनों तक चलेगी? मंत्रिमंडल का विस्तार होगा क्या? कांग्रेस में बार बार बगावत क्यों? जैसे सवालों का जवाब पढ़ने के लिए पेश है कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर का इंटरव्यू।
झारखंड में कांग्रेस के लिए यह मुश्किल की घड़ी है। दल के ही एक विधायक की शिकायत पर तीन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। इस प्रकरण को राज्य में कांग्रेस के सहयोग से चल रही झामुमोनीत गठबंधन सरकार के लिए भी खतरे की घंटी माना जा रहा है। इस परिस्थिति में प्रदेश कांग्रेस ने कड़ा रुख अपनाते हुए अपने विधायकों को निलंबित करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। यह फैसला एक सख्त कदम था, जिससे तत्काल दल में बगावत की प्रक्रिया ही नहीं थमी, बल्कि यह संदेश गया कि प्रदेश नेतृत्व कड़े फैसले लेने में सक्षम है। इसी माह राज्य में पार्टी का नेतृत्व संभालते हुए एक वर्ष पूरा करने वाले राजेश ठाकुर यह दावा करते हैं कि विधायक पूरी तरह एकजुट हैं और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही सरकार को किसी प्रकार का खतरा नहीं है। संगठन से लेकर सरकार की चुनौतियां, हेमंत मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावनाओं से लेकर राज्य में कांग्रेस की भावी रणनीति पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर से दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रमुख प्रदीप सिंह ने खास बातचीत की।
कांग्रेस के तीन विधायक नकदी के साथ कोलकाता में पकड़े गए। एक विधायक की शिकायत पर ही प्राथमिकी दर्ज हुई। इससे दल के भीतर ही संदेह का वातावरण बन रहा है।
देखिए, संदेह की बात नहीं है। सच्चाई यह है कि साजिश के तहत कई लोगों को इस शक के दायरे में लाने का प्रयास किया जा रहा है, किंतु पार्टी में सभी विधायकों की गतिविधियां रहती है और समय-समय पर विधायकों के साथ चर्चा कर मैं स्वयं उनकी समस्याओं का समाधान करता रहा हूं। इसके बाद भी घटना हुई तो निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि हमें अपने विधायकों को समझना होगा।
आखिरकार ऐसी नौबत ही क्यों आती है? बार-बार बगावत की बातें सामने आती है। क्या इससे गलत संदेश नहीं जाता है?
पूरे देश में भाजपा अपना कुचक्र स्थापित कर चुकी है। लगातार गैर भाजपा शासित राज्य को अस्थिर करने का प्रयास किया जाता है। यह भी सही है कि कई राज्यों में भाजपा को सफलता मिली। झारखंड में उसके नेताओं के तमाम तिकड़मी प्रयासों के बावजूद यहां कोई असर नहीं पड़ा और देखिए इसमें सबसे बड़ी बात यह सामने आ गई कि भाजपा का चेहरा बेनकाब हो गया।
क्या आपको लगता है कि अभी भी कुछ विधायक मौके की ताक में हैं। वे पार्टी छोड़ सकते हैं?
केवल दूसरे लोगों के कहने या अफवाह फैलाने से हम किसी को शक की निगाह से नहीं देखते। लगातार लोगों से बातचीत और समन्वय बनाने की कोशिश करते हैं। अगर किसी प्रकार की आपत्ति आती है तो उसे समझकर समाधान करने का भी प्रयास करते हैं।
लेकिन इस प्रकार के रुख से तो दलीय अनुशासन कायम रखने में परेशानी आएगी? इसका कैसे समाधान करेंगे?
यह काफी महत्वपूर्ण है। हमारे प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय इसे काफी अहम मानते हैं। अनुशासन किसी भी संगठन के लिए सर्वाधिक अहम है। अनुशासनहीनता चाहे कोई भी करे, यह क्षम्य नहीं है। ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए। इससे संगठन को क्षति पहुंचती है। सबसे पहले नेतृत्वकर्ता को ही अनुशासन समझना होगा, तभी संगठन के पदाधिकारी और निचले स्तर पर कार्यकर्ता अनुशासित रहेंगे।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर कांग्रेस राज्य में सरकार चला रही है। ढ़ाई वर्ष का कार्यकाल बीत चुका है। मंत्रिमंडल में फेरबदल की बातें भी चल रही है। इसकी कितनी गुंजाइश है?
मेरी जानकारी में अभी तुरंत ऐसी कोई बात नहीं है। यह सही है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल की बातें विभिन्न माध्यमों से सुनने को मिल रही है। यह भी सही है कि विधायक हो या मंत्री अथवा कोई पदाधिकारी, सभी के कार्यों की हमेशा समीक्षा होती रहती है। इसी के आधार पर केंद्रीय नेतृत्व कब फैसला लेता है, यह समय, काल या परिस्थितियां तय करती है।
कहा जाता है कि कांग्रेस पर दोहरा संकट है। भाजपा और आपका सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा की नजर भी कांग्रेस के विधायकों पर है।
देखिए, मैंने पहले भी कहा कि अफवाह फैलाने वालों की एक बड़ी जमात है। कपोल कल्पित चीजों का जवाब नहीं दिया जा सकता। यह भी समझना होगा कि संगठन सिर्फ विधायकों से नहीं होता, बल्कि लाखों-लाख कार्यकर्ताओं की मेहनत से विधायक निर्वाचित होते हैं। संगठन का कार्यकर्ता खून-पसीना बहाता है। कार्यकर्ता विधायक बनाते हैं। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, सभी संगठन में विधायक इसे समझते हैं कि कार्यकर्ता सर्वोपरि हैं।
मतलब यह माना जाए कि राज्य में कांग्रेस पूरी तरह एकजुट है? टूट-फूट का कोई खतरा पार्टी के समक्ष नहीं है?
इसका जो सबसे ज्यादा हो-हल्ला मचाते हैं, उनसे ही पूछिए। अब राज्य में भाजपा में कितनी दफा टूट हुई, आप भी जानते हैं। जो दल तोड़कर गए थे, वही आज प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता जैसे प्रमुख पदों पर हैं। इससे ठीक विपरीत हमारी पार्टी के एक-दो लोग छोड़कर गए लेकिन पार्टी की विचारधारा और नीति के कारण तुरंत वापस हो गए। भाजपा को हमारी जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है। भाजपा के नेताओं को अपने संगठन की चिंता करनी चाहिए।
कांग्रेस और झामुमो मिलकर राज्य में सरकार चला रहे हैं, लेकिन अभी भी समन्वय की कमी दिखती है। बीस सूत्री कमेटियां आधी-अधूरी बनी, बोर्ड-निगम का बंटवारा नहीं हो पाया। क्या आप ऐसी परिस्थिति से संतुष्ट हैं?
सही है कि कई काम होना बाकी है, लेकिन इस सच्चाई को भी ध्यान में रखना होगा कि दो वर्ष कोरोना से निपटने में बीत गया। खुद को देशभक्त बताने वाले घरों में छिपे थे। अब समय आ गया है। एक बार फिर से पूरी तरह से संगठन और सरकार में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों के प्रति हम गंभीर हैं। यह कह सकते हैं कि अगस्त माह में ही कई चीजों का समाधान कर लिया जाएगा।
आपके प्रतिद्वंद्वियों की शिकायत है कि आप सक्षम प्रदेश अध्यक्ष नहीं हैं। आपको ऊपर से लाकर बिठा दिया गया है।
मैं कांग्रेस कार्यकर्ता से प्रदेश अध्यक्ष बना हूं। कार्यकर्ताओं में जो उत्साह और ऊर्जा का संचार हुआ है, वह पिछले एक वर्ष से जारी आंदोलनों और कार्यक्रमों में दिखता है। पहली बार साढ़े आठ लाख सदस्य बनाए गए हैं। रही बात ऊपर से लाकर बिठाने की तो जब मुझे प्रदेश कांग्रेस में दायित्व मिला तो बीके हरिप्रसाद प्रभारी थे। उनके समय में पूरा सम्मान मिला। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत, डा. अजय कुमार और रामेश्वर उरांव की कमेटी में मुझे बड़ी जिम्मेदारी मिली। नीचे से एक-एक पायदान चढ़ते हुए मुझे शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी, जिसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूं। आज प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय के सान्निध्य में कार्य कर रहा है। अब ऐसे में कौन क्या कहता है, उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय के मार्गदर्शन में दिन-रात कांग्रेस को राज्य में सशक्त करने के प्रयास में लगा हुआ हूं। हमेशा कार्यकर्ता को केंद्र-बिंदु में रखा। एक वर्ष में 24 जिलों का दौरा किया। कई आंदोलनात्मक कार्यक्रम किए। प्रमंडल से लेकर प्रखंड तक संवाद कार्यक्रम हुआ। चिंतन शिविर का आयोजन किया गया।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और झामुमो ने तालमेल कर चुनाव लड़ा और कामयाबी पाई। उपचुनावों में भी दोनों दलों ने एक-दूसरे का सहयोग किया। क्या अगले विधानसभा चुनाव में यह तालमेल हो पाएगा?
देखिए, अब देश में दो विचारधाराओं की लड़ाई है। इस लड़ाई में जो जिस विचारधारा से संबंध रखता है, उसे एकजुट होकर लड़ना पड़ेगा। गठबंधन सिर्फ और सिर्फ सत्ता के लिए नहीं होना चाहिए। देश संकट की स्थिति से गुजर रहा है। संविधान खतरे में है। लोकतंत्र खतरे में है। ऐसे में तमाम गैर भाजपा दल एक साथ आए और अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों के लिए संघर्ष करें।