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पूर्व विधायक संजीव सिंह ने दुमका जेल में रखने के लिए मांगा 50 लाख का मुआवजा

धनबाद के झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दुमका केंद्रीय कारा में अवैध रूप से रखने के लिए राज्य सरकार से पचास लाख रुपये का मुआवजा मांगा है। उक्त याचिका अधिवक्ता चंचल जैन ने दाखिल की है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Tue, 29 Jun 2021 10:11 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jun 2021 10:11 AM (IST)
पूर्व विधायक संजीव सिंह ने दुमका जेल में रखने के लिए मांगा 50 लाख का मुआवजा। जागरण

रांची, राज्य ब्यूरो। धनबाद के झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दुमका केंद्रीय कारा में अवैध रूप से रखने के लिए राज्य सरकार से पचास लाख रुपये का मुआवजा मांगा है। उक्त याचिका अधिवक्ता चंचल जैन ने दाखिल की है। उन्होंने बताया कि याचिका में कानूनी प्रविधानों, सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया गया है, जिसमें विचाराधीन कैदी को संबंधित अदालत से अनुमति मिलने के बाद ही दूसरी जेल में स्थानांतरित किया जा सकता है।

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लेकिन राज्य के अधिकारियों ने बिना कोर्ट की अनुमति के ही संजीव सिंह को धनबाद जेल से दुमका केंद्रीय कारा भेज दिया। वादी संजीव सिंह ने याचिका में कहा है कि 21 फरवरी 2020 को सरकार के आदेश पर उन्हें धनबाद से दुमका जेल भेज दिया गया। इसके लिए निचली अदालत से अनुमति नहीं ली गई है। सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट ने निर्धारित किया है कि सीआरपीसी की धारा 309 के प्रविधानों के तहत विचाराधीन कैदी को संबंधित जिले की जेल में रखा जाता हैं।

क्योंकि समय-समय पर न्यायालय में उसकी उपस्थित दर्ज होती है। ऐसे में बिना निचली कोर्ट की अनुमति के विचाराधीन कैदी को किसी स्थान या जेल में नहीं भेजा जा सकता है। वादी संजीव सिंह की ओर से दुमका जेल भेजने के सरकार के आदेश के खिलाफ धनबाद की निचली कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। निचली अदालत ने सरकार के अधिकारियों को आदेश दिया था कि वादी को तत्काल धनबाद जेल वापस लाया जाए।

लेकिन उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया गया। 21 फरवरी 2020 से अब तक की अवधि में उन्हें दुमका जेल में रखा जाना अवैध व गैरकानूनी है। वहीं, संविधान की धारा 21 में निहित वादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में दुमका जेल भेजने को अवैध घोषित करते हुए उन्हें पचास लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश पारित करने का आग्रह अदालत से किया गया है।


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