सर्दी बढ़ने पर करते हैं कंबल का टेंडर, मौसम बदलने पर धरी रह जाती है राशि
कंबल वितरण में जिला प्रशासन व सरकार की सुस्ती का खामियाजा गरीबों को उठाना पड़ता है। हर बार सर्दी आने के बाद कंबल खरीद के लिए सभी जिलों में आनन-फानन में टेंडर होता है। नतीजतन कंबल वितरण का कार्य भी अंतिम समय में आनन-फानन में होता है।
रांची : कंबल वितरण में जिला प्रशासन व सरकार की सुस्ती का खामियाजा गरीबों को उठाना पड़ता है। हर बार सर्दी आने के बाद कंबल खरीद के लिए सभी जिलों में आनन-फानन में टेंडर होता है। नतीजतन कंबल वितरण का कार्य भी अंतिम समय में आनन-फानन में होता है। इससे कई बार जहां पूरी राशि खर्च ही नहीं हो पाती है, वहीं वितरण का रिकार्ड भी सही तरीके से मेंटेन नहीं हो पाता है, जिससे अनियमितता की संभावना भी बनी रह जाती है।
पिछले दो वित्तीय वर्षों की बात करें तो वर्ष 2018-19 में कंबल वितरण के लिए कुल 30.64 करोड़ रुपये विभिन्न जिलों को दिए गए थे, जिनमें 2.94 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पाए। राशि खर्च नहीं होने पर श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग ने पिछले वर्ष जनवरी में जिलों को निर्देश दिया कि टेंडर में तय दर पर बची हुई राशि से अतिरिक्त कंबल खरीदकर गरीब और असहायों के बीच बांटे, लेकिन मौसम में परिवर्तन होने तथा सर्दी खत्म हो जाने के कारण ऐसा नहीं किया जा सका। 2019-20 में भी इस मद की बड़ी राशि खर्च नहीं हो सकी थी।
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दावा 44613 कंबल वितरण का, रिकार्ड 5375 का
और तो और कंबल वितरण का सही रिकार्ड भी जिलों के पास नहीं होता है। वर्ष 2018-19 में कंबल वितरण की तीन जिलों के सात प्रखंडों में हुई जांच में यह बात सामने आई कि इन जिलों में 44,613 लाभुकों के बीच कंबल वितरण दर्शाए गए थे, जबकि 5375 लाभुकों का विवरण ही जांच में मिल सका। इनमें रांची के कांके व सदर, धनबाद के गोविदपुर व निरसा तथा बोकारो जिले के चंदनक्यारी तथा चास शामिल हैं। इन प्रखंडों में कंबल के भंडार पंजी का भी मेंटेनेस सही ढंग से नहीं किया गया था। यह एक तरह से बड़ी अनियमितता है तथा इस तरह की गड़बड़ी अन्य जिलों के प्रखंडों में भी होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। बता दें कि इस बार कंबल वितरण के लिए 23 करोड़ रुपये जिलों को दिए गए हैं। दूसरी तरफ जिलों में अभी कंबल खरीद के लिए टेंडर की प्रक्रिया ही शुरू हो रही है। कई जिलों ने तो प्रक्रिया भी शुरू नहीं की है।
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