नेता प्रतिपक्ष विवाद में बाबूलाल, प्रदीप और बंधु का पक्ष लेने की तैयारी
रांची झारखंड विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष के दावे पर अपना पक्ष रखने का मौका जल्द मिलेगा। इसके अलावा दो अन्य विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की का पक्ष भी लिया जाएगा। तीनों गत विधानसभा चुनाव में झाविमो की टिकट पर जीतकर विधानसभा का सदस्य बने हैं।
रांची : झारखंड विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष के दावे पर अपना पक्ष रखने का मौका जल्द मिलेगा। इसके अलावा दो अन्य विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की का पक्ष भी लिया जाएगा। तीनों गत विधानसभा चुनाव में झाविमो की टिकट पर जीतकर विधानसभा का सदस्य बने हैं। बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का विलय भाजपा में कर दिया है। इसकी मंजूरी चुनाव आयोग से भी मिल चुकी है, जबकि प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने भाजपा में जाने की बजाय कांग्रेस का रुख किया है। हालांकि, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को इसकी मान्यता नहीं मिली है और वे फिलहाल निर्दलीय विधायक के तौर पर गिने जा रहे हैं। बाबूलाल मरांडी को चुनाव आयोग से भाजपा विधायक के तौर पर मंजूरी मिलने के बाद पार्टी का दबाव विधानसभा सचिवालय पर बढ़ा है।
राजभवन ने भी इस विवाद पर विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो का पक्ष जानने के लिए उन्हें बुलावा भेजा था। उन्होंने रविवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू संग मुलाकात कर बताया कि विधानसभा सचिवालय सभी कानूनी पहलुओं का अध्ययन कर रहा है। इस संबंध में राज्य सरकार के महाधिवक्ता से भी राय मांगी गई है।
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तुरंत सुलझने वाला नहीं है विवाद :
बाबूलाल मरांडी द्वारा झाविमो के भाजपा में विलय को चुनाव आयोग की मंजूरी भले मिल गई हो, लेकिन विधानसभा में तुरंत इसपर फैसला होता नहीं दिखता। विधानसभा सचिवालय के एक वरीय अधिकारी के मुताबिक विधानसभा में पार्टी के विलय का असर नहीं पड़ता है। विधानसभा में विधायक दल को मान्यता मिलती है। विधानसभा चुनाव में जीतने वाले झाविमो विधायकों की संख्या तीन थी। इनमें से दो तिहाई विधायक विलय के लिए आवश्यक हैं। ऐसे में यह मामला कानूनी पेच में उलझ सकता है। 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भी झाविमो के छह विधायक भाजपा में शामिल हुए थे, जिसे तत्कालीन अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने चुनौती दी थी। इस मामले के निपटारे में लगभग साढ़े चार वर्ष लगे। लंबी कानूनी प्रक्रिया और सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. दिनेश उरांव ने छह विधायकों के भाजपा में विलय को मंजूरी दी थी।
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