घाटे से नहीं उबर पा रहीं झारखंड की बिजली कंपनियां
रांची झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के विखंडन के बाद वितरण संचरण और उत्पादन को लेकर बनाई गई स्वतंत्र कंपनियां भी सरकार पर बोझ बनकर रह गई हैं। बिजली के क्षेत्र में सुधारात्मक उपायों के मद्देनजर विद्युत बोर्ड का विखंडन इसी लक्ष्य को लेकर किया गया था कि कंपनियां घाटा शून्य होंगी और अपने पांव पर खड़ी होंगी। लेकिन कंपनियों का घाटा पूर्व की भांति जारी रहा।
रांची : झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के विखंडन के बाद वितरण, संचरण और उत्पादन को लेकर बनाई गई स्वतंत्र कंपनियां भी सरकार पर बोझ बनकर रह गई हैं। बिजली के क्षेत्र में सुधारात्मक उपायों के मद्देनजर विद्युत बोर्ड का विखंडन इसी लक्ष्य को लेकर किया गया था कि कंपनियां घाटा शून्य होंगी और अपने पांव पर खड़ी होंगी। लेकिन, कंपनियों का घाटा पूर्व की भांति जारी रहा। इसका सबसे बड़ा कारण वित्तीय कुप्रबंधन को माना जा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (जेबीवीएनएल) औसतन हर माह लगभग 400 करोड़ रुपये की बिजली का क्रय करती है, लेकिन वसूली अधिकतम 250 करोड़ रुपये प्रतिमाह से अधिक नहीं हो पाती। इसकी भरपाई राज्य सरकार को रिसोर्स गैप मद में करनी पड़ती है। औसतन एक वर्ष में लगभग 1500 करोड़ रुपये की भरपाई सरकार इस मद में करती है। इसके मुकाबले राज्य में छोटे स्तर पर ही सही, बेहतर काम करने का उदाहरण मौजूद है। सीमित क्षेत्र में टाटा स्टील के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी जुस्को विद्युत आपूर्ति करती है, लेकिन उसका संचरण-वितरण घाटा नहीं के बराबर है। इससे इतर, जेबीवीएनएल का विभिन्न मदों में बकाया लगातार बढ़ता ही जा रहा है। फिलहाल ऊर्जा की आपूर्ति करने वाली दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के बकाए के मद में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा झारखंड के आरबीआइ खाते से कटौती किए जाने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि तमाम कवायद के बावजूद राज्य सरकार की एजेंसियां घाटे से उबरने में पिछड़ क्यों रही हैं।
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बिजली की चोरी बड़े पैमाने पर :
राज्य में बिजली चोरी बड़े पैमाने पर होती है। महीने में दो दफा एंटी पावर थेफ्ट अभियान के बावजूद यह हाल है कि हर महीने लगभग पांच हजार परिसरों के खिलाफ बिजली चोरी की शिकायतें दर्ज की जाती हैं। हाल के दिनों में इसमें तेजी आई है। हालिया छापेमारी में लगभग डेढ़ करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया है। बिजली चोरी में महकमे के पदाधिकारियों की मिलीभगत अक्सर सामने आती है। ऐसे कुछ मामलों की जांच में इनकी संलिप्तता भी सामने आ चुकी है। कुछ पदाधिकारी एक तरफ बिजली का बिल वसूलने के प्रति गंभीरता नहीं दिखाते, तो दूसरी ओर बिजली चोरी की प्रवृति को प्रश्रय भी देते हैं।
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निजी हाथों में सौंपने की कवायद :
बिजली कंपनियों की लचर हालत के मद्देनजर वितरण और बिल वसूली का जिम्मा निजी हाथों में सौंपने की कवायद की जा रही है। पूर्व में भी सरकार ने रांची और जमशेदपुर में बिजली वितरण निजी एजेंसी को सौंपा था, लेकिन बाद में समझौता रद कर दिया गया। फिलहाल पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर फिर से इन दो प्रमुख शहरों में इसकी कवायद की जा रही है। इसका लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण बिजली और बेहतर राजस्व वसूली है। जिन प्रदेशों में बिजली वितरण की व्यवस्था निजी हाथों में सौंपी गई है, वहां बेहतर परिणाम सामने आए हैं।
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