Cyber Frauds: ATM का 16 अंक जेनरेट कर बैंक खातों से रुपये उड़ा रहे अपराधी
Jharkhand. साइबर अपराधियों ने खातों में सेंध लगाने के लिए अब नए तरीकों का इजाद कर लिया है। एटीएम में छपे 16 अंकों को खुद जेनरेट कर बैंक खातों से रुपये उड़ा रहे हैं।
रांची, [फहीम अख्तर]। Ranchi - साइबर अपराधियों ने खातों में सेंध लगाने के लिए अब नए तरीकों का इजाद कर लिया है। एटीएम में छपे 16 अंकों को खुद जेनरेट कर बैंक खातों से रुपये उड़ा रहे हैं। यह खाता देश के किसी भी व्यक्ति का हो सकता है। एटीएम कार्ड में छपे बीआइएन (बैंक आइडेंटिफिकेशन नंबर) को हथियार बनाया जा रहा है।
इसके जरिए 16 अंकों की खोज कर चार अंकों वाला पिन भी जेनरेट कर लिया जाता है। यह क्रेडिट कार्ड वैलिडेटर और क्रेडिट मास्टर एप के जरिए यह संभव हो पा रहा है। साइबर अपराधी एटीएम का नंबर और पिन जेनरेट कर रहे हैं। इसे बैन कराने के लिए रांची के अलावा दिल्ली व मुंबई पुलिस भी जुटी है।
ऐसे करते हैैं जेनरेट
निजी बैंकों की वेबसाइट व सर्वर से प्रायिकता (प्रोबैबिलिटी) के जरिए सीरीज जानकर तैयार कर लिया जाता है। जबकि किसी भी कार्ड में अंतिम आठ नंबरों में गोपनीय जानकारियां होती हैं। इसे हैकर्स निजी बैंकों की वेबसाइट और सर्वर में घुसकर जेनरेट कर रहे हैं।
एटीएम से निकली पर्ची छोडऩा खतरनाक
एटीएम में ट्रांजेक्शन के बाद निकलने वाली पर्ची को वहीं पर छोडऩा या फेंकना खतरनाक है। इन पर्ची की मदद से अपराधी बीआइएन नंबर और चार अंकों का पिन तैयार कर ले रहे हैं। यह चौंकाने वाली जानकारी पुलिस को तब मिली, जब रांची में अचानक बढ़ी एटीएम क्लोनिंग के मामलों की जांच शुरू की।
इस बीच, एचडीएफसी बैंक की ओर से एक शिकायत की गई कि दर्जन भर ग्राहकों के खाते से 15 लाख रुपये की निकासी कर ली गई। ये सभी निकासी बीआइएन नंबर व पिन जेनरेट करने के बाद की गई है। पुलिस संबंधित तकनीक का इस्तेमाल करने वाले साइबर अपराधियों को पकडऩे में जुटी है।
पर्ची से ऐसे तैयार करते हैं बीआइएन नंबर
किसी भी एटीएम में ट्रांजेक्शन के बाद निकलने वाली पर्ची को लोग वहीं डस्टबिन में फेंक देते हैं। उसी से साइबर अपराधी बीआइएन नंबर तैयार करते हैं। चूंकि पर्ची में शुरुआत के बाद आठ और अंत के चार नंबर लिखे होते हैं। जबकि बीच के नंबर की जगह एक्स-एक्स लिखा होता है। नंबर कुछ इस प्रकार होते हैं। 3145 2234 &&&& 5324। इस नंबर के जरिए &&&& नंबर और चार अंकों का पिन जेनरेट कर लेते हैं।
ऐसे जेनरेट होता है बीआइएन नंबर
किसी भी डेबिट या क्रेडिट कार्ड पर छह या आठ अंकों का नंबर लिखा होता है। जबकि कार्ड 16 अंकों का होता है। इन आठ अंकों को साइबर अपराधी निजी बैंकों की वेबसाइट में जाकर सर्च करते हैं। सर्च करने के बाद एल्गोरिदम विधि से वेबसाइट सर्च कर लेती है।
स्वाइप से बचाया, तो नए तरीके का इजाद
पुलिस और सरकार ने देश भर में स्वाइप करके एटीएम कार्ड की बढ़ती क्लोनिंग को देखते हुए चिप वाली एटीएम कार्ड बनवाया। पहले स्किम्मर के जरिए खातों से रुपये उड़ाने का खेल चल रहा था।
क्या है बचाव के उपाय
- एटीएमों का पिन लगातार बदलते रहें।
- मोबाइल के नंबर, एटीएम कार्ड के नंबर या आरोही या अवरोही जैसे 1234 या 1111 नंबर को पिन-पासवर्ड न बनाएं।
- एटीएम ट्रांजेक्शन के बाद निकलने वाली पर्चियों को इधर-उधर न फेकें, उसे अपने पास सुरक्षित रखें।
एटीएम फ्रॉड के कुछ मामले
21 मार्च 2019 को चुटिया मुकचूंद टोली निवासी विपिन कुमार कुशवाहा के खाते से एटीएम की क्लोनिंग करके साइबर अपराधियों ने 22, 400 रुपये की निकासी कर ली।
16 मार्च 2019 को एदलहातू निवासी अशोक साव के खाते से भी साइबर अपराधियों ने 27, 500 रुपये की अवैध निकासी कर ली। क्लोन एटीएम के जरिए
4 अप्रैल 2019 को योगदा सत्संग स्कूल के शिक्षक पंकज कुमार के एटीएम का क्लोन बनाकर साइबर अपराधियों ने उनके खाते से 15 मिनट के भीतर 25 हजार रुपये की निकासी कर ली।
बीआइएन नंबर के जरिए एटीएम कार्ड नंबर बनाकर बैंक खाते से रुपये की निकासी के मामले इन दिनों बढ़े हैं। ऐसे मामलों की जांच की जा रही है। इसमें शामिल कुछ साइबर फ्रॉड रडार पर हैं। जल्द ही उन्हें पकड़ा जाएगा। -सुमित प्रसाद, डीएसपी सह थाना प्रभारी, साइबर क्राइम थाना, रांची।
ऐसे समझें
डेबिट कार्ड : 3145 2234 xxxx 5324
पहला आठ नंबर यानी ऊपर के उदाहरण में दिया नंबर 3145 2234 यूनिवर्सल नंबर है जिसे बीआइएन (बैंक आइडेंटिफिकेशन नंबर) भी कहते हैं।
साइबर अपराधी इसके बाद के आठ अंक की तलाश में लगते हैं।
पहला कार्ड का क्लोन करके या दूसरा ट्रांजेक्शन स्लिप से
ट्रांजेक्शन स्लिप पर अंतिम के आठ अंक पूरे नहीं लिखे रहते, इसमें चार अंक गायब रहते हैं जैसे ऊपर के उदाहरण में xxxx 5324
इस नंबर को ही साइबर अपराधी जेनरेट करते हैं
क्रेडिट कार्ड वैलिडेटर और क्रेडिट मास्टर एप के जरिए अपराधी पहले नंबर जेनरेट करते हैं
इसके बाद पासवर्ड को भी किया जाता है जेनरेट
अपराधी एक और तरीका भी अपनाते हैं
कुछ निजी बैंक की वेबसाइट पर प्रोबैबिलिटी के जरिए पिन और 16 नंबर जेनरेट करने का ऑप्शन
ये निजी बैंकों की सबसे बड़ी कमजोरी है।
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