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Mobile Game: कहीं आपके बच्चे को मोबाइल गेम की लत तो नहीं? जानें क्या हैं लक्षण

Mobile Game ऑनलाइन गेम के अभ्यस्त बच्चों में कई तरह की मानसिक समस्या सामने आ रही है। कई बच्चे इसके इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि गेम छोडऩे के नाम पर ही आक्रामक होने लगते हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 03:31 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 05:07 PM (IST)
Mobile Game: कहीं आपके बच्चे को मोबाइल गेम की लत तो नहीं? जानें क्या हैं लक्षण
Mobile Game: कहीं आपके बच्चे को मोबाइल गेम की लत तो नहीं? जानें क्या हैं लक्षण

रांची, जासं। Mobile Game लोग आजकल अपने बच्चों को आसानी से मोबाइल खेलने के लिए दे देते हैं। इससे बच्चे भी एक जगह बैठकर आराम से मोबाइल गेम का मजा लेते रहते हैं। किसी को पता भी नहीं चलता और लोग अनजाने में मोबाइल गेमिंग के आदि हो जाते हैं। इस मोबाइल गेमिंग के दुष्परिणाम इतने भयानक होते हैं कि जिसके बारे में कल्पना करना भी मुश्किल है। मगर ये एडिक्शन डिसॉर्डर केवल बच्चों में ही नहीं 35-40 साल तक के लोगों में भी देखने को मिल रहा है। जिसका आम जीवन और मस्तिष्क पर बेहद घातक परिणाम होता है।

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एडिक्शन एंड चाइल्ड काउंसलर डॉ नवीन कुमार बताते हैं कि ऑनलाइन गेम के अभ्यस्त बच्चों में कई तरह की मानसिक समस्या सामने आ रही है। कई बच्चे इसके इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि गेम छोडऩे के नाम पर ही आक्रामक होने लगते हैं। इसके साथ ही लंबे समय तक एप गेम और ऑनलाइन गेम खेलने से साइकोसिस होने का भी खतरा रहता है। बच्चों का मन कोमल होता है इसलिए आसानी से गेम की दुनिया में जाते हैं। यही साइकोसिस बीमारी है, इसमें मरीज वास्तविक दुनिया से दूर हो जाता है। एडिक्शन के बाद बच्चों को रोकने पर वो आक्रामक भी हो सकते हैं। जिसका असर उनकी पढ़ाई और जीवन पर सीधे पड़ता है।

नशे में बदल जाती है एप पर लाइव रहने की आदत

इंटरनेट पर ऑनलाइन गेमिंग और एप पर लाइव रहने की खुमारी एक नशे में बदल जाती है। ज्यादातर को इस बात की भनक ही नहीं लग पाती कि जिस गेम या एप को वे चला रहे हैं उसके लिए उनकी दीवानगी उन्हें रोगी बना चुकी है। खासकर बच्चे या किशोर इसमें ज्यादा उलझ जाते हैं। कुछ समझदार लोग ही इसे पहचान कर अस्पताल या काउंसलर तक पहुंच पाते हैं।

कैसे पहचानें रोग

  1. अगर कोई हर वक्त मोबाइल के गेम में लगा रहता है तो ये सबसे पहली पहचान है।
  2.  मोबाइल ले लेने पर बच्चा या वयस्क आक्रामक हो जाता हो।
  3. बच्चा मैदान में खेलने के बजाए मोबाइल पर टाइम बिताना ज्यादा चाहता हो।
  4. लोगों के बीच बैठकर बात करते हुए भी कोई मोबाइल गेम पर लगा रहता हो।

केस स्टडी -1

डॉ नवीन बताते हैं कि उनके आप कई ऐसे केस आते हैं जिनके बारे में विश्वास करना मुश्किल होता है। रांची के एक अच्छे स्कूल में पढऩे वाले छात्र का एक ऐसा ही केस उनके पास आया। बच्चे ने अपनी बड़ी बहन को मोबाइल छीन लेने के लिए लोहे के रॉड से मारा। इससे उसे गहरी चोट आई। बच्चे के माता पिता ने बताया की वो उसे बचपन में मोबाइल से खेलने देते थे ताकि वो एक जगह आराम से बैठा रहे। इससे उन्हें उसके पीछे भागने की जरूरत नही होती थी। उन्हें पता नहीं चला कि उनका बेटा कब एप गेम का एडिक्ट हो गया।

केस स्टडी -2

अतुल (बदला हुआ नाम) बचपन से पढऩे में काफी अच्छा छात्र था। सीबीएसई से दसवीं में उसे 90 परसेंट आये थे। मगर 12 तक आते आते उसका पास करना भी मुश्किल हो गया। स्कूल के टीचर ने मां बाप को बताया कि अतुल कई बार क्लास में ऑनलाइन गेम खेलता हुआ पकड़ा गया है। वहीं माता पिता ने काउंसलिंग में बताया कि वो घर पर केवल गेम खेलता था। मना करने पर घर वालों से लड़ाई कर लेता और घर छोड़ देने की धमकी देता था।


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