Jharkhand: कंप्यूटर के साथ खेतीबाड़ी के गुर सीखेंगे बाल कैदी
कहा जाता है खाली दिमाग शैतान का घर होता है। अगर कोई काम न रहे तो मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। अच्छे भी बुरे भी। डुमरदगा स्थित बाल सुधार गृह के बाल बंदियों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कोरोना काल में बाल सुधार गृह में सभी....
रांची (जागरण संवाददाता) । कहा जाता है खाली दिमाग शैतान का घर होता है। अगर कोई काम न रहे तो मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। अच्छे भी बुरे भी। डुमरदगा स्थित बाल सुधार गृह के बाल बंदियों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कोरोना काल में बाल सुधार गृह में सभी प्रकार की गतिविधि बंद कर दी गई थी। न पढ़ाई लिखाई और न ही किसी प्रकार के रोजगार परक प्रशिक्षण।
अब जबकि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, ऐसे में जिला विधिक सेवा प्राधिकार फिर से इन बाल बंदियों के पुनर्वास के लिए व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है। इसके साथ ही खेतीबाड़ी के गुर भी सिखाए जाएंगे। बाल सुधार गृह में रह रहे 176 बाल बंदियों के व्यक्तित्व विकास की जिम्मेवारी आर्ट आफ लिविंग को दी गई है। आर्ट आफ लिविंग बाल बंदियों को योग के प्रशिक्षण देने के साथ- साथ मुख्य धारा से जोडऩे के लिए कंप्यूटर, स्क्रीन प्रिंटिंग प्रशिक्षण के अलावा खेतीबाड़ी का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि सुधार गृह से बाहर आने के बाद अपने पैरों पर खड़ा हो सकें।
पूर्व डीएसपी बनेंगे मास्टर ट्रेनर, सब जज रखेंगे निगाह
व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम के मास्टर ट्रेनर पूर्व डीएसपी पीएन सिंह होंगे। सेवानिवृत्त होने के बाद वे आर्ट आफ लिविंग से जुड़कर अपराधियों को मुख्यधारा में लाने को लेकर प्रयासरत हैं। वहीं, पूरे कार्यक्रम की निगरानी डालसा के सचिव व सब जज अभिषेक कुमार करेंगे। कार्यक्रम की कार्ययोजना तैयार कर ली गई है। प्रशासनिक स्वीकृति मिलते ही व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम शुरू हो जाएगा। पीएन सिंह के अनुसार बाल बंदियों की मानसिकता में बदलाव जरूरी है। आपराधिक मानसिकता तभी समाप्त होगी जब उसे अन्य प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा। उन्हेंं समाज के अन्य पढऩे लिखने वाले बच्चों की तरह बनाना ही वास्तविक सुधार होगा।
अन्य बंदियों के साथ रहकर बिगडऩे की रहती है गुंजाइश
डालसा सचिव अभिषेक कुमार के अनुसार बाल मन में तरह-तरह के विचार उमड़ते रहते हैं। सामान्य तौर पर देखा गया है कि छोटे-मोटे अपराध में बंद बंदी दूसरे के संगत में आकर और बिगड़ जाते हैं। ऐसे में सुधार गृह में रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इसी कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। सुधार गृह में रचनात्मक कार्यक्रम चलेगा तो इसका सकारात्मक असर पड़ेगा।