चैंबर उपसमिति : रेपो रेट में कमी की व्यापारियों को नहीं मिला रहा लाभ
आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में दो बार 0.7 प्रतिशत और 0.4 प्रतिशत की कमी किए जाने के बाद व्यापारियों को इसका लाभ नही मिल पा रहा है।
जागरण संवाददाता, रांची : आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में दो बार 0.7 प्रतिशत और 0.4 प्रतिशत की कमी किए जाने के बाद भी व्यापारियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। इस बारे में झारखंड कंज्यूमर प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन (जेसीपीडीए) के सचिव संजय अखौरी ने चिंता जताते हुए वित्त मंत्रालय और आरबीआइ से अनुरोध किया कि इस हेतु बैंकों को उचित निर्देश जारी करें। उन्होंने कहा कि बैंक अपने- अपने स्तर से ऋण देने के नियमों का हवाला दे रहे हैं। बैंकों का कहना है कि वे बेस रेट और एमसीएलआर से ऋण देते हैं। बेस रेट और एमसीएलआर रेट में ऋण देने पर जब इसका रिन्यूअल होता है। तब ब्याज दरों में कमी की जाती है किंतु बैंक द्वारा 1 जनवरी से लागू आरएलएलआर के अनुसार जैसे ही रेपो रेट कम हो, बैंकों को इसका लाभ अपने ग्राहकों को देने की बाध्यता है।
बैंक आरबीआइ के नियमों का हवाला देकर यह कह रहे हैं कि ब्याज दरों में बदलाव करने में तीन महीने का समय लगता है। यदि ऐसे कोई प्रावधान हैं तब आरबीआइ इस नियमों में संशोधन कर सभी बैंकों को निर्देशित करे कि रेपो रेट में कमी के शीघ्र बाद ही बैंक अपने ग्राहकों को इसी अनुपात में इसका लाभ दें। संजय अखौरी ने यह भी कहा कि वित्त मंत्रालय द्वारा 20 लाख करोड़ की राहत पैकेज की घोषणा की गई किंतु इस घोषणा में देश के खुदरा और एफएमसीजी क्षेत्र के व्यापारियों के लिए कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि गैर कृषि अर्थव्यवस्था के तीन स्तंभ हैं उद्योग, सेवा और खुदरा। उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुएं खुदरा व्यापारियों के माध्यम से ही उपभोक्ता तक पहुंचती है, सेवा क्षेत्र उद्योग एवं खुदरा व्यापार हेतु आवश्यक साधन का प्रबंध करता है, अत: तीनों अंग एक दूसरे के पूरक हैं और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में यदि किसी को एक अंग की भागीदारी को अलग कर दिया जाय तो अर्थव्यवस्था का संपूर्ण विकास असंभव होता है। राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि तीनों स्तंभों पर सरकार का समान ध्यान हो और किसी भी कारोबारी नीति तीनों स्तंभों के लिए समान रूप से बनाई जाय।