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दिल्‍ली वालों ने दिल तोड़ दिया, दुआ कुबूल न हुई... पढ़ें सियासत की खरी-खरी

Weekly News Roundup Ranchi. पंजाब वाले कैप्टन साहब ने मौके की नजाकत को समझते हुए दिल्ली पैगाम भिजवाया था। तर्क भी वाजिब दिया गया था दो पैसे जुट जाएंगे।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2020 01:06 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2020 04:15 PM (IST)
दिल्‍ली वालों ने दिल तोड़ दिया, दुआ कुबूल न हुई... पढ़ें सियासत की खरी-खरी

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। कोरोना वायरस ने सरकार की कमर तोड़ कर रख दी है। कोरोना से लड़ाई में सारी जमा-पूंजी खत्‍म होती जा रही है, खजाना खाली होता जा रहा है। उपर से लॉकडाउन ने जले पर नमक छिड़क दिया है। कहीं से भी कोई आमदनी का स्‍त्राेत नहीं है। ऐसे हालात में सरकारें आमदनी के अन्‍य स्‍त्रोत की ओर देखने लगी हैं। इस पर उन्‍हें अन्‍य मुखियाओं का साथ भी मिल रहा है, लेकिन बात बन नहीं रही है। पढि़ए दैनिक जागरण के राज्‍य ब्‍यूरो के प्रधान संवाददाता आनंद मिश्रा के साथ खरी-खरी...

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टूटी जातीं हैं उम्मीदें

तालाबंदी किस कदर भारी पड़ रही है, यह कोई मय के तलबगारों से पूछे। बेचारे किसी से अपना दर्द तक बयां नहीं कर पा रहे हैं। धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर आ रही है, रियायतें भी मिलने लगीं हैं। लेकिन मयखाने अब भी सूने हैं, सुनने वाला कोई नहीं है। सुना है पंजाब वाले कैप्टन साहब ने मौके की नजाकत को समझते हुए दिल्ली पैगाम भिजवाया था। तर्क भी वाजिब दिया गया था, लोगों को अवसाद से राहत मिलेगी और सरकारी खजाने में संकट की घड़ी में दो पैसे भी जुट जाएंगे। फार्मूले में दम था, पैगाम पंजाब वालों ने भिजवाया था, दुआ झारखंड समेत पूरे देश में पढ़ी जा रही थी, लेकिन कुबूल न हुई। दिल्ली वालों ने दिल तोड़ दिया। अब तो रही सही उम्मीद भी टूटी जाती है। सोशल मीडिया पर मीम भी खूब चल रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं, मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं कुछ कर नहीं सकता...।

सियासी बहीखाता

बहीखाते दोनों ही ओर खुले हैं, लेकिन बैलेंस शीट अलग-अलग परिणाम दे रही है। दिल्ली वालों का खाता आंकड़ा हजारों करोड़ में दिखा रहा है और झारखंड वालों का मीटर महज कुछ सौ करोड़ पर अटका हुआ है। भारतीय अर्थशास्त्र के जनक माने जाने वाले कौटिल्य और आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक कहे जाने वाले एडम स्मिथ भी होते तो चकराकर रह जाते। लेकिन, ऐसी बात कतई नहीं है। राजनीति का जोड़ और गुणा-भाग जरा दूजे किस्म का होता है। खाता न बही, जो हाकिम कहे वो सही। तो दिल्ली वाले हाकिमों की भी सुनो और झारखंड वालों की भी। निष्ठा और आस्था के पैमाने तौलो और जो जिसके साथ है, हो लो। बस गणित इतना भर का है। इसमें सियासी जिरह की भी पूरी गुंजाइश है। राजनीति की गाड़ी को ईंधन यहीं से मिलता है। अपनी भी चलती रहे और उनकी भी।

आपस की किचकिच

सियासी खिचड़ी ऐसे ही पकती है। पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं। आपस में किचकिच ऐसी शुरू हुई है कि एक-दूसरे को सबूत देने और मांगने पर तुले हैं। खिचड़ी अभी अधपकी है। इस खिचड़ी को बनाने की विधि हालिया वर्षों में हमारे पड़ोसी सुशासन बाबू ने पूरे देश को सिखाई है। इसे पूरी तरह तैयार होने से पहले सियासी तड़का लगाने का कोरम पूरा करना होता है। तो नाथों के नाथ ने ये छौंका लगा दिया है और छौंका भी ऐसा लगा कि 'हाथ' वालों की छीकें आ गई। वो तो अच्छा है मास्क लगा रखा है, नहीं तो वायरस फैलते देर न लगती। गठबंधन में गांठ पडऩे लगी है, पूरा कुनबा परेशान है। मैडम का हुकुम बजाने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही फैलने लगे थे। नित नया टास्क लेकर पहुंच जाते थे हुकुम के पास। ये तड़का दरअसल नसीहत है। अभी भी चेत जाओ, नहीं तो हो जाओगे तड़ीपार।

निशाने पर कुर्सी

गुस्से का क्या है, आ ही जाता है। अल्बर्ट पिंटों को भी आता था, इन्हें भी आ गया। यह भी भूल जाते हैं कि सरकार अपनी है, खाकी संकट के दौर में अपनी जान जोखिम में डालकर मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी दे रही है। लेकिन, मंशा कतई गलत न थी। तनिक जज्बाती हो गई थीं। महाराष्ट्र से आलाकमान पर हमला जो हुआ था, कैसे सह लेतीं। जो कुछ मिला है, उन्हीं की कृपा से मिला है। आखिर निष्ठा भी कोई चीज है। बस इतनी सी वजह थी, आपे से बाहर होने की। कुछ तेजी तो दिखानी भी होगी पैगाम दिल्ली तक जो भिजवाना है। कैबिनेट कोटे की 12वीं कुर्सी अभी भी खाली है। दावा भी महिला कोटे से बनता है। कृपा ऊपर से आएगी, तभी बात बनेगी। फिलहाल इसके लिए कई हैं कतार में। ऊपर वाला कब मेहरबान हो जाए, कहा नहीं जा सकता।


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