अधिकारियों की कारगुजारी साढ़े तीन करोड़ ज्यादा किया बिजली कंपनियों को भुगतान
यह राज्य के बिजली महकमे में फैली अंधेरगर्दी का नायाब नमूना है।
रांची, प्रदीप सिंह। यह राज्य के बिजली महकमे में फैली अंधेरगर्दी का नायाब नमूना है जब अफसरों ने निजी फायदे के लिए प्राइवेट कंपनियों को साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा का भुगतान कर दिया। लगभग नौ साल पुराने इस मामले में शुरुआती दौर में 19 अफसरों के नाम सामने आए थे। इस दरम्यान दस पदाधिकारी रिटायर हो गए।
ऊर्जा विभाग ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए सेवारत नौ अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया है। ऊर्जा विकास निगम के निदेशक बोर्ड से इसकी मंजूरी मिल चुकी है। इस घोटाले में शामिल अफसर फिलहाल उच्च पदों पर बैठे हैं। एक आरोपित संजय कुमार फिलहाल रांची एरिया बोर्ड के महाप्रबंधक हैं।
मामला विद्युत आपूर्ति प्रमंडल आदित्यपुर, जमशेदपुर और घाटशिला का है। इसमें बिलिंग एजेंसी को अत्यधिक भुगतान करने का आरोप है। इस बाबत जमशेदपुर के बिष्टुपुर थाना में 12 सितंबर 2011 को केस (कांड संख्या 150/11) दर्ज कराया गया था। इससे पूर्व तत्कालीन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड ने पांच जून 2010 को मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया था।
नौ अधिकारियों की कारस्तानी
1. एचके सिंह, तत्कालीन कार्यपालक अभियंता - जमशेदपुर
-मेसर्स क्रिस्टल, मेसर्स प्रकृति इंटरप्राइजेज को कुल मिलाकर 1,55,08, 800 रुपये का किया ज्यादा भुगतान।
2. धनेश झा - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, आदित्यपुर -
मेसर्स इंफोस्टेट डाटा को 49,28,319 रुपये का किया ज्यादा भुगतान।
3. प्रतोष कुमार - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, आदित्यपुर
इंफोस्टेट डाटा को 19,62,863 रुपये का किया अधिक भुगतान।
4. सुकरू खड़िया - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, घाटशिला
73,79,360 करोड़ का ज्यादा किया भुगतान।
5. गोपाल मांझी - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, जमशेदपुर
4,80252 रुपये का ज्यादा भुगतान किया।
6. मुकुल गरवारे - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, सरायकेला
1,34,502 रुपये का किया अधिक भुगतान।
7. संजय कुमार - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, चाईबासा
5,87,052 रुपये का अत्यधिक भुगतान किया।
8. अजीत कुमार - तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, चक्रधरपुर
कुल 49,19,567 रुपये का ज्यादा किया भुगतान।
9. ओपी अंबष्ठ - तत्कालीन अधीक्षण अभियंता
सभी बिल पर इन्होंने अपना प्रति हस्ताक्षर किया।
कार्रवाई करने पर जोर
ऊर्जा विभाग ने मुकदमा चलाने का फैसला लेने के पूर्व विभागीय विधि परामर्शी की सलाह भी ली। इसमें विधि परामर्शी ने तल्ख टिप्पणी करते हुए लिखा है कि इन पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर जोर दिया गया है लेकिन इनका नाम थाने में दर्ज नामजद अभियुक्तों में नहीं है। जबकि यह कानून का नियम है कि जब कोई व्यक्ति आरोपित होता है तो उसे ट्रायल का सामना करना ही पड़ता है। नौ पदाधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं। इसमें यह प्रमाणित होता है कि वित्तीय अनियमितता में उनकी भूमिका रही है।