CAG रिपोर्ट से जानें कैसे होती है आपके पैसे की बर्बादी, एक जगह पर दो पुल-सरकार के करोड़ों डूबे
CAG Report. करगली और चलकरी को जोडऩे के लिए महज 800 मीटर पर दो समानांतर पुल बनाए गए। कैग की रिपोर्ट में 15.47 करोड़ की फिजूलखर्ची उजागर हुई है।
रांची, आशीष झा। सुनने में अजीब भले लगे लेकिन संवादहीनता क्या बला है यह बोकारो की दो पुलों को देखकर समझा जा सकता है। दोनों विभाग सरकार के अहम अंग और दोनों ने जनहित के कार्य में जनता से टैक्स के रूप में वसूली गई राशि डुबो दी। अब दोनों का काम भी अटका पड़ा है। बोकारो जिले में करगली और चलकरी को जोडऩे के लिए दामोदर नदी पर पुल की जरूरत थी और इस जरूरत को सरकार के दो विभागों ने समय पर समझा भी।
दोनों विभागों ने महज 800 मीटर की दूरी पर लगभग एक ही समय में दो पुल के निर्माण की शुरुआत कर दी। पहले पुल पर 5.5 करोड़ रुपये तो दूसरे पर 15.47 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। दोनों पुलों का मकसद एक ही था। अब सीएजी ने दूसरे पुल के निर्माण पर खर्च राशि को फिजूलखर्ची करार दिया है। मुख्यमंत्री सचिवालय ने फरवरी 2012 में कारगली और चलकारी गांवों को जोडऩे के लिए दामोदर नदी पर पुल निर्माण के निर्देश दिए।
इस निर्देश पर कार्रवाई करते हुए ग्रामीण विकास विशेष क्षेत्र, रांची ने दामोदर नदी पर पुल के लिए 10.31 करोड़ रुपये की तकनीकी स्वीकृति नवंबर-2013 में दी। यह पुल कारगली (रामविलास उच्च विद्यालय) और चलकारी गांव को जोड़ती है। जुलाई-2014 में पुल का निर्माण शुरू किया गया और यह पुल एकरारनामे के अनुसार 9.93 करोड़ रुपये में पूरा करना था।
जून 2017 तक पुल अधूरा पड़ा हुआ था और इस बीच ठेकेदार को 5.5 करोड़ का भुगतान हो चुका था। बाद में पथ निर्माण विभाग ने पुल निर्माण कार्य शुरू होने के दो महीने बाद सितंबर 2014 में 25.13 करोड़ रुपये से पुल निर्माण के लिए तकनीकी स्वीकृति प्रदान की। इसके बाद मई 2015 में पुल निर्माण शुरू हुआ। यह पुल कारगली फिल्टर प्लांट से चलकारी को जोड़ती है।
पुल के निर्माण पर जून 2017 तक 15.47 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका था। सीएजी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि पुल के निर्माण पर पैसे की बर्बादी की गई है। पथ निर्माण विभाग की सड़कें इधर नहीं होने के कारण इस विभाग के कार्य को अस्वीकृत करते हुए 15.47 करोड़ के व्यय को फिजूलखर्ची करार दिया गया है। सवाल और भी उठते हैं। पुल निर्माण की शुरुआत के बाद दोनों विभागों के अभियंताओं को निश्चित तौर पर एक-दूसरे के कार्यों की जानकारी मिली होगी। इसके बावजूद कार्य को जारी रखा गया और दोनों काम धीरे-धीरे सरकार का खजाना खाली करता गया।