राज्यसभा चुनाव में भाजपा नेे विपक्षी एकता को दिया बड़ा झटका
राज्यसभा चुनाव में दूसरी सीट पर दांव लगाने के पीछे भाजपा की दोहरी मंशा थी।
राज्य ब्यूरो, रांची। राज्यसभा चुनाव में भाजपा दोनों सीटों पर जीत हासिल करने में सफल भले ही न रही हो लेकिन वह अपने मंसूबों में पूरी तरह कामयाब रही। विपक्षी खेमे में सेंध लगाकर भाजपा ने जहां विपक्षी एकता की पोल खोली वहीं, अपने कुनबे (एनडीए) को भी एकजुट रखने में भी कामयाब रही। चुनाव में सत्ताधारी दल को दूसरी सीट भले ही न हासिल हुई हो लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वह मजबूत बनकर उभरा। राज्यसभा चुनाव में दूसरी सीट पर दांव लगाने के पीछे भाजपा की दोहरी मंशा थी। विधायकों को बांध कर रखना भी दूसरा प्रत्याशी देने की एक वजह थी, इस सीट पर जीत हासिल होती तो यह उसके लिए बोनस था।
राज्यसभा चुनाव में एक प्रत्याशी को जिताने के लिए एनडीए को जो संख्या बल उसे चाहिए था, उसके पास उससे 20 विधायक अधिक थे। इन्हें एक साथ बांधे रखना भी जरूरी था। प्रत्याशी न देने की स्थिति में रिश्तों, जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों का हवाला दे यदि एक भी विधायक दूसरे खेमे में वोट दे देता तो एनडीए की साख पर बट्टा लगना तय था। चुनाव में इन 20 विधायकों के साथ-साथ एनडीए को विपक्ष के पांच (इनमें तीन सत्ता पक्ष से ही जुड़े रहे हैं) विधायकों का मत भी प्राप्त हुआ।
धुर विरोधी माने जाने वाले वामदल को भी वह डिगाने में सफल रही। प्रकाश राम के रूप में एक मत अपने पक्ष में कर भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को एक बार फिर उनके डगमगाते वजूद का अहसास कराया और विपक्ष को तकरीबन हार की कगार तक ढकेल दिया। विपक्षी एकता के दावों की पोल खुल गई। अब विपक्ष के नेता एक-दूसरे पर क्रास वोटिंग का आरोप लगा रहे हैं। आने वाले 2019 के चुनावी वर्ष के लिहाज से देखें तो यह चुनाव सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों को सीख दे गया।