अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया
दुनिया भर में अलग-अलग परंपराएं अलग-अलग पर्व त्योहार हैं।
जासं, रांची : दुनिया भर में अलग-अलग परंपराएं, अलग-अलग पर्व त्योहार हैं। प्रत्येक पर्व-त्योहार या परंपरा का महत्व है। इसी में से एक है अप्रैल फूल। एक अप्रैल या अप्रैल फूल डे कोई त्योहार नहीं है, लेकिन इसका प्रचलन इतना बढ़ गया कि पूरी दुनिया में इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। हंसी-मजाक और अपनों के साथ हल्की-फुल्की शरारत और फिर झूठ पकड़े जाने पर जोरों का ठहाका। कुछ ऐसा ही होता है इस दिन का नजारा। अप्रैल फूल डे का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। योजना बनाकर दोस्तों, सहकर्मियों को मूर्ख बनाते हैं और आपस में खुशियां बांटते हैं।
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सहकर्मी को कहा साहब बुला रहे हैं
बात 10 साल पुरानी है। मैं सीसीएल के दरभंगा हाउस स्थित कार्यालय में प्रतिनियुक्त था। एक अप्रैल को एक- दो कर्मियों से बातचीत कर तय किया कि एक अन्य कर्मी को मूर्ख बनाना है। हमलोगों तीसरे तल्ले पर काम कर रहे थे। इसी दौरान हमने उस सहकर्मी से कहा कि साहब बुला रहे हैं। जिस साहब का नाम बताया उनका चैंबर ग्राउंड फ्लोर पर था। बेचारा साहब के पास पहुंचे तब पता चला बेवकूफ बनाये गए। वहां से तमतमाये उपर पहुंचे और हमलोगों को खूब खरीखोटी सुनाया। लेकिन जब उन्हें बताया कि आज अप्रैल फूल है तो वे भी ठहाका लगाने लगे।
एसी आचार्या, सेवानिवृत्त अधिकारी, सीसीएल तबादले के नाम पर बनाया अप्रैल फूल
भारतीय सैनिक को ड्यूटी के दौरान काफी गंभीर माना जाता है। मैं एयरफोर्स में था। साल 2007 में लखनऊ में तैनाती थी। एक अप्रैल को दोपहर के समय एचआर से फोन आया कि आपका तबादला बेंगलुरू कर दिया गया है। एचआर से फोन आने के बाद मैं फौरन इसकी सूचना अपने घर में दी। सामान बांधा जाने लगा। सहकर्मी नई प्रतिनियुक्ति की शुभकामनाएं दे रहे थे। संध्या में जब ऑर्डर लेने एचआर ऑफिस पहुंचा तो पता चला अप्रैल फूल बनाया गया हूं। पीछे कुछ सहकर्मी खड़े थे। जैसे ही वापस मुड़े जोरों का ठहाका लगा। फिर सब मिलकर चाय-पानी किया और घर लौटे।
अमरेंद्र कुमार, सेवानिवृत एयरफोर्स
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कंजूस दोस्त से पैसे लेकर किया समोसा पार्टी
पटना में पीजी की पढ़ाई के दौरान एक दोस्त को अप्रैल फूल बनाने को सोचा। यह बात वर्ष 1999 की है। मेरा वह दोस्त काफी कंजूस था। उसके जेब से एक रुपया भी निकालना मुश्किल था। खैर, तय हुआ इस बार उसे ही अप्रैल फूल बनाया जाएगा। फरवरी से ही इसके लिए मशक्कत शुरु हो गई। उसे विश्वास दिलाया कि मैं हाथ काफी अच्छा देखता हूं। एक दिन वह भी हाथ दिखवाने आया, लेकिन मैंने शर्त रख दी कि 25 रुपये दक्षिणा के बिना हाथ नहीं देखेंगे। उसने पैसे दे दिये। उसी के पैसे से समोसा पार्टी हुई। हाथ दिखाने वाले दोस्त को जब पता चला तो खूब खरी खोटी सुनाई।
डा. आनंद कुमार ठाकुर, निदेशक रेडियो खांची दोस्त को भेज दिया रेलवे स्टेशन
बात कॉलेज के दिनों की है। मेरा एक दोस्त का भाई एनडीए की तैयारी के लिए अपने शहर से बाहर गया हुआ था। उस समय मोबाइल फोन नहीं होता था। मुहल्ले में एक-दो लोगों के यहां टेलीफोन लगा था। एक अप्रैल को अपने दोस्त को जाकर बोला कि तुम्हारा भाई आने वाला है, रेलवे स्टेशन पर जाकर रिसीव कर लो। मेरे कहने पर वह गाड़ी की व्यवस्था कर स्टेशन चला गया। पूरा दिन स्टेशन पर बैठकर बिता दिया, लेकिन दोस्त का भाई नहीं आया। फिर मायूस होकर मुझे फोन किया। कई बार फोन करने के बाद मैंने फोन उठाया और फिर हंसते हुए कहा घर आ जाओ, अप्रैल फूल बना दिए गए हो। यह सुनते ही वह काफी गुस्सा हो गया। खैर, शाम में फिर मिले और नाराजगी दूर हुई।
संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर