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वार्षिकोत्सव में झूमें संगीत के छात्र

एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स का दूसरा वार्षिकोत्सव सिरमटोली स्थित होटल मैपलवूड में मनाया गया। सफल छात्रों को सर्टिफिकेट और मेडल दे कर किया गया सम्मानित।

By Edited By: Published: Mon, 07 May 2018 02:00 PM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 02:46 PM (IST)
वार्षिकोत्सव में झूमें संगीत के छात्र
वार्षिकोत्सव में झूमें संगीत के छात्र

जागरण संवाददाता, रांची : एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स का दूसरा वार्षिकोत्सव सिरमटोली स्थित होटल मैपलवूड में मनाया गया। कार्यक्रम में उन छात्रों ने भाग लिया जिन्होने लंदन कॉलेज ऑफ म्यूजिक द्वारा आयोजित परीक्षा में हिस्सा लिया था। कार्यक्रम में कुल 80 छात्रों ने भाग लिया था। एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स की निदेशक ¨रपी रॉय ने कहा कि सत्तर प्रतिशत छात्रों को इसमें सफलता मिली। सफल छात्रों को सर्टिफिकेट और मेडल दे कर सम्मानित किया गया। बाकि छात्रों को भी सर्टिफिकेट दे कर सम्मानित किया गया। उन्होने कहा कि पियानो प्रतियोगिता में छात्रों ने लगातार दो साल हाइयेस्ट एचिवर्स अवॉर्ड हासिल किया। कार्यक्रम के दौरान म्यूजिक कंसर्ट का अयोजन भी किया गया। इसमें बैंड और डांस कर छात्रों ने जम कर मस्ती की।

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हमें अपना इतिहास खुद लिखना होगा : कट्टीमनी इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति टीवी कट्टीमनी ने कहा कि देश में कई आदिवासी समूह हैं। सबकी अपनी-अपनी संस्कृति और बोली है। आपस में लड़ाइयां भी हैं। इन सबसे परे होकर हमें देवनागरी अपनाते हुए आदिवासी समाज के मौखिक साहित्य को सामने लाना चाहिए। उर्दू का हवाला देते हुए कहा कि आज उर्दू में बहुत अच्छी चीजें आ रही हैं, लेकिन बहुसंख्यक इस लिपि को नहीं जानता। इसलिए, हमें देवनागरी में अधिक से अधिक साहित्य को सामने ले आने का प्रयास करना चाहिए। वे रविवार को प्रेस क्लब में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी साहित्य के समापन के मौके पर बोल रहे थे। कार्यक्रम इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय एवं अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच व रमणिका फाउंडेशन की ओर से किया गया था।

उन्होंने कहा कि हम दूसरों से अपेक्षा न करें तो हमारा इतिहास वह लिखेंगे या उन्होंने हमारा इतिहास नहीं लिखा। यह अपनी असफलताओं को दूसरों पर थोपना है। इतिहासकारों ने हमारा इतिहास नहीं लिखा तो हमें किसने रोका है कि हम अपना इतिहास न लिखें। हम खुद अपना इतिहास लिखे। अपना साहित्य लिखें। जनजातीय विवि उसे प्रकाशित और प्रसारित करेगा। उन्होंने आदिवासी लेखकों से अपील की कि वे आगे आएं। विवि हर स्तर पर उनकी मदद करेगा। कविता, कहानी से लेकर इतिहास की पुस्तकें प्रकाशित करेगा, जैसा और जिस तरीके से आप चाहते हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल से मिलकर यहां दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार करने की बात की गई। उसमें अपने विभाग के केंद्रीय मंत्री को भी बुलाया जाएगा। जयपुर से आए हरिराम मीणा ने कहा कि केंद्र सरकार को एक दो दिन में प्रस्ताव भेजा जाएगा कि आदिवासी क्षेत्रों में एक से 12 तक कक्षा में उनकी मातृभाषा में पढ़ाई हो। उन्होंने बताया कि देश में 1084 आदिवासी समुदाय हैं।

इनका दो-दो पेज का इतिहास लिखा जाएगा ताकि संदर्भ के तौर पर काम आ सके। उन्होंने कहा कि आदिवासी स्वायत्त रहा है, लेकिन आज भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण से उसके सामने कई संकट आ गए हैं। आदिवासी समाज में निजी का कोई प्रावधान है। जो है, वह सबका है। सबके लिए है। उन्होंने यह जरूर कहा कि पूरी दुनिया में आदिवासी की सोच एक ही है। उनकी सोच में कोई अंतर नहीं है। चाहे वे भारत के आदिवासी हों, दक्षिण अफ्रीका के या कहीं और के। ये चलते-फिरते इनसाइक्लोपीडिया हैं। रमणिका फाउंडेशन की रमणिका गुप्ता ने संविधान में जनजातीय शब्द का प्रयोग हुआ है। इसके स्थान पर आदिवासी शब्द का प्रयोग होना चाहिए। वहीं, उन्होंने कहा कि सरकार से 2005 से ही आदिवासी भाषा साहित्य अकादमी की मांग की जा रही है। यह आज तक पूरी नहीं हुई। इससे आदिवासी साहित्य का प्रकाशन नहीं हो रहा है, जबकि देश में करीब 90 आदिवासी भाषाओं में लेखन हो रहा है। उन्होंने कहा कि नेशनल ट्राइबल पालिसी को भी लागू नहीं किया जा रहा है। 2003 में इसकी ड्राफ्टिंग की गई थी। वर्तमान सरकार से भी मांग की गई है कि इसे लागू किया जाए।

मुंडारी इनसाइक्लोपीडिया का हिंदी अनुवाद : उन्होंने बताया कि फादर हॉफमैन का इंसाइक्लोपीडिया मुंडारिका का हिंदी अनुवाद कराया जा रहा है। इसके लिए फाउंडेशन ने पांच लाख रुपया मंच को दिया है। उन्होंने कहा कि मेनेस ओड़या की रचनाएं भी हिंदी में आएंगी। उनके गीत व उपन्यास हिंदी में अनुवाद होंगे। बिरसा मुंडा पर पांच किताबें भी प्रकाशनाधीन हैं। वासवी किड़ो ने भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों मेघालय, मिजोरम, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, त्रिपुरा आदि से लेखक आ रहे हैं। कार्यक्रम में कर्नाटक से बेलारी के श्रीकृष्णदेवराय विवि के डीन प्रो शांता नाइक, हैदराबाद के काउंसिल फार सोशल डेवलपमेंट के सहायक प्रो सुरेश जगन्नाथम, गुजरात से आदिवासी बाल साहित्यकार विक्रम चौधरी, मिजो भाषा विभाग के अध्यक्ष एल टी लियाना ख्यिांग्ते, शिलांग से मीनीमोन लाली, स्टीमलेट डकार, जितेंद्र बसावा, भीली भाषा के राजेश राठवा आदि थे।

मात्र 250 बचे हैं चोलानायकम आदिवासी : आंध्र प्रदेश से आए राहुल ने चोलानायकम आदिवासियों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि यह दक्षिण के तीन प्रदेशों के मिलन स्थल पर सबसे ऊंचे पहाड़ों पर बसते हैं। अब इनकी आबादी मात्र 250 रह गई है। एक पहाड़ पर एक परिवार रहता है। पहाड़ा को भी ये अपना परिवार का हिस्सा मानते हैं। जब इनके परिवार के किसी का निधन हो जाता है तो दफनाने से पहले धरती और चारों दिशाओं से इसकी अनुमति लेते हैं। इस तरह की इनकी परंपरा है। इनकी भाषा में कन्नड़, तेलुगु के अलावा दूसरे भाषाओं भी शब्द हैं। ऐसे लोगों पर और काम होना चाहिए। देश में बहुत से आदिवासी ऐसे हैं, जिनके बारे में हम नहीं जानते।


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