Move to Jagran APP

हसीन शाम में लगा शानदार कविताओं का तड़का

रिम्स आडिटोरियम में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देर रात तक जमे रहे श्रोता, राहत इंदौरी, एहसान कुरैशी, गजेंद्र सोलंकी, गौरी मिश्रा व सुदीप भोला ने श्रोताओं को खूब झुमाया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 May 2018 12:59 PM (IST)Updated: Sun, 27 May 2018 12:59 PM (IST)
हसीन शाम में लगा शानदार कविताओं का तड़का

जागरण संवाददाता, रांची : दैनिक जागरण ने अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन रिम्स के सभागार में शनिवार को किया। यह शाम ऐसी थी कि कभी हंसी की बारिश हो रही थी, कहीं गजल अंगड़ाई ले रही थी, कहीं गीत सावन के झूले पर झूल रहा था। कभी इश्क का रंग गाढ़ा हो रहा था, तो कभी क्रांति के बोल फूट रहे थे। कभी सरहदों पर तनाव का मंजर दिखा, कभी शहर में चुनाव का माहौल। हर कवि का अलग रंग, अलग अंदाजे बयां और अलग कहन..। नैनीताल से चलकर आई गौरी मिश्रा के मां शारदे की वंदना से शुरू हुआ कवि सम्मेलन का यह कारवां एहसान कुरैशी पर जाकर खत्म हुआ।

loksabha election banner

नज्म पूरी भरी थी। राहत इंदौरी ने अंत से पहले अपनी गजल की यात्रा शुरू की। इस ¨हदी मंच की तारीफ की। कहा, यही खूबसूरत ¨हदुस्तान है, जहां ¨हदी के मंच पर उर्दू का शायर सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है। इससे खूबसूरत बात और क्या हो सकती है। फिर राहत साहब ने सहिष्णुता-असहिष्णुता की बात की। पर कहा, मैं तो इश्क का शायर हूं। प्रेम बांटता हूं। शायरी में तीन विषय प्रमुख होते हैं, पहला-इश्क, दूसरा इश्क और तीसरा इश्क। श्रोताओं को समझते देर नहीं लगी। तालियां ने उनका स्वागत किया। फिर तो पूछना ही नहीं था। शहरों में तो बारूदों का मौसम है :

गुलाब ख्वाब दवा जहर क्या-क्या है, मैं आ गया हूं बता इंतजाम क्या-क्या है, फकीर शाख कलंदर इमाम क्या-क्या है, तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है..राहत साहब ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए कहा कि इश्क की असली उम्र यही है, क्योंकि इस उम्र में सिर्फ इश्क ही हो सकता है और कुछ नहीं-राज जो कुछ हो तो इशारों में बता भी देना, हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना..। यह इश्क की बात थी। इश्क से वे शहर और फिर गांव की ओर गए..शहरों में तो बारूदों का मौसम है, गांव चलो ये अमरूदों का मौसम है।

'नहीं' का अंदाजे बयां :

राहत साहब के कहन का अंदाज भी अलग था। अपनी तरह अकेले। अब इस नहीं शब्द की बात की लें। इसका क्या-क्या माने हो सकता है? यह शायर ही बता सकता है। देखिए, बुलाती है, मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है, इधर आने का नहीं, मेरे बेटे किसी से इश्क कर, मगर हद से गुजर जाने का नहीं। यह नसीहत भी राहत साहब ही दे सकते हैं।

बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो :

सम्मेलन में सरहद की बातें भी हुई, लेकिन राहत साहब ने इसे दूसरे अंदाज में पेश किया..साहब सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करा, चुनाव है क्या। राहत साहब यहीं नहीं रुके। पाकिस्तान को जवाब देने के तौर-तरीके बदलने की नसीहत भी दी। कहा, जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो, और हम ही क्यों बोलें अमन के बोल दिल्ली से, कभी तुम भी लाहौर से बोलो।..आगे की पंक्तियां और लाजवाब थीं, सिर्फ खंजर ही नहीं, आंखों में पानी चाहिए, ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए..अंतिम पंक्तियां थीं-क्या जरूरी है करें विषपान हम शिव की तरह, सिर्फ जामुन खा लिए और ओठ नीले हो गए..। समझ आ जाए तो ताली बजाइए।

यहां एक साथ गीता और कुरान पढ़े जाते हैं :

अब बारी थी, स्टैंडअप कॉमेडी किंग एहसान कुरैशी की। खूब चुटकी ली। विस अध्यक्ष दिनेश उरांव अंत तक जमे रहे। भला कवियों के तीर से कैसे बच सकते हैं? एहसान ने फरमाया, जो नेता 45 मिनट में चल जाए, वह 25 प्रतिशत ईमानदार, जो एक घंटे में चला जाए, वह 50 प्रतिशत ईमानदार, जो अंत तक हरे, वह सौ प्रतिशत ईमानदार। हंसाते-हंसाते गंभीर बात कह जाते, यहां चेहरे नहीं इंसान पढ़ जाते हैं, यहां एक साथ गीता और कुरान पढ़ जाते हैं..एहसान ने बताया, यह ऐसा देश है। गीता और कुरान एक साथ पढ़े जाते हैं। बच्चों का बचपन कैसा आज हो रहा है, चार पंक्तियों में बताई, बचपन में हमारे नाना नानी, हमें सुनाते थे परियों की कहानी, और आज कल के बच्चों को दिखाई जा रही है शीला की जवानी..। यह आज का सच है। हंसी की आधी में देशभक्ति के ज्वार भी उठे..बेटा पाकिस्तानी, हमें भी समझ रहे हो लाल कृष्ण आडवाणी, बेटा इस देश में पैदा हुआ हूं, इसी देश में मरुंगा, मैं कोई नेता नहीं हूं, जो तेरी जिन्ना की झूठी तारीफ करुंगा।

शब्द को संवार अर्थ को निखार दे :

नैनीताल के पहाड़ों से चलकर गीतों की गंगा बहाने झारखंड की पठारी पर आई गौरी मिश्रा के स्वर और सुर पर हर श्रोता मुग्ध हो गया। उनके गीतों में प्रेम भी था और दर्शन भी..। प्रेम से राष्ट्रप्रेम तक उनकी कविता का फैलाव था।..मैं तेरे नाम हो जाऊं, तू मेरे नाम हो जाए, मैं तेरा दास हो जाऊं, तू मेरा दास हो जाए..न राधा सा न मीरा सा, विरह मंजूर है मुझको, बनू मैं रुक्मीणि तेरा, तू मेरा श्याम हो जाए। न मैं मीरा न राधा हूं, तुझे घनश्याम लिखती हूं, मेरे मन मोहना अब, रात दिन ब्रजधाम लिखती हूं। मां शारदे की वंदना की..शब्द को संवार अर्थ को निखार दे, पंक्तियों को प्यार दे आज मां सरस्वती..। गौरी ने जवानों के लिए भी गीत पढ़े। पूरा हॉल उनके साथ स्वर में स्वर मिला रहा था।

मिले कुछ भी जमाने के लिए नासूर मत होना :

गजेंद्र सोलंकी कार्यक्रम का संचालन भी कर रहे थे। अपनी बारी में उन्होंने राष्ट्रप्रेम का पाठ पढ़ाया। जोश से भरी पंक्तियां पढ़ी। मिले कुछ भी जमाने के लिए नासूर मत होना, उड़ो आकाश में कितना जमीं से दूर मत होना, बदलते वक्त के तेवर कहां कोई समझ पाया, कभी तो शोहरतों के दौर में मशगूल मत होना..दूसरा गीत पढ़ा। कभी सागर की गहराई में जाने की तमन्ना है, कभी आकाश के तारों को पाने की तमन्ना है, अभी वह सीख न पाया जमीं पे चैन से रहना, सुना है चांद पे घर बनाने की तमन्ना है..।

इस काव्य निशा की शुरुआत सुदीप भोला से हुई। हंसी के साथ बहुत कुछ कह गए। बाबा राम रहीम से लेकर योगी, लालू तक। गीतों की पैरोडी पर उनकी पंक्तियां नाच रही थीं..लाल टेन बुझ गया मेरे हवा के झोके से, भाजपा के फूंक दिया हाय रे धोखे से..। बिहार की राजनीति पर इससे अच्छी पंक्तियां क्या हो सकती थीं? वे बिहार से यूपी भी गए। योगी पर भी खूब चुटकी ली। योगी टाप लागे लू, कमरिया..आगे छोड़िए। फिर तो कोई नेता बच नहीं सका। श्रोता पूरे कार्यक्रम तक जमे रहे। खूब तालियां बजाई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.