AIIMS New Delhi: बीमारियों से लड़ने में कचनार कितना कारगर... एम्स के विशेषज्ञ करेंगे शोध... ब्लड व आंसू का सैंपल एकत्र
AIIMS New Delhi Research झारखंड के कोडरमा और हजारीबाग जिले के जंगलों में काफी तादाद में है कचनार के पेड़। अब विशेषज्ञ यह पता लगाएंगे कि कचनार बीमारियों से लड़ने में कितना कारगर होता है। इसके लिए कोडरमा में 625 लोगों का ब्लड व आंसू सैंपल एकत्र किया गया है।
कोडरमा, जागरण संवाददाता। कोडरमा और हजारीबाग के जंगलों में बहुतायत पाये जानेवाले कचनार पेड़ को आयुर्वेद में औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है। अब मेडिकल साइंस भी इसके फूल, तना और पत्ते के उपयोग से मानव शरीर में होने वाले परिवर्तन पर शोध कर रहा है। 17 जनवरी वर्ष 2020 को एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया की मौजूदगी में एम्स, कोडरमा वन विभाग एवं सीसीएल के बीच दो प्रोजेक्ट पर शोध को लेकर एमओयू हुआ था। इसमें कोडरमा वन विभाग सहयोगी की भूमिका में है। जबकि एम्स के नेत्र विज्ञान केंद्र के विभागाध्यक्ष डा. जीवन सिंह को प्रोजेक्ट का हेड बनाया गया है।
शोध पूरा करने में लगेंगे एक से डेढ़ साल
कोडरमा के डीएफओ सूरज कुमार सिंह व आरपी सेंटर एम्स दिल्ली के डा. रामकिशोर साह कहते हैं कि कोडरमा जिले में दो प्रोजेक्ट पर एमओयू किया गया है। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में लगभग एक से डेढ़ साल का समय लगेगा। इसमें कचनार के पौधे के उपयोग से मानव शरीर में होने वाले परिवर्तन तथा बायोमास (लकड़ी के जलावन, कोयला, गोबर का गोयठा) के उपयोग से पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर शोध किया जाएगा। कचनार के पौधे के उपयोग से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है या नहीं, इस पर एम्स नई दिल्ली में सैंपल भेजकर इस पर शोध किया जाएगा।
25 गांवों के 465 लोगों का सैंपल कलेक्ट
सीसीएल द्वारा इस प्रोजेक्ट को सीएसआर अंतर्गत लिया गया है। कोडरमा व हजारीबाग जिले में प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू किया गया है। कोडरमा जिले के 25 गांवों में 600 लोगों का खून व आंसू का सैंपल लेकर एम्स दिल्ली भेजा जाएगा। इसके लिए कोडरमा वन अतिथिशाला में आवश्यक प्रबंध किए गए हैं। यहां डीप फ्रीजर व अन्य व्यवस्था बहाल की गई है। डा. रामकिशोर साह ने बताया कि एम्स दिल्ली के डा. जीवन सिंह तितियार, डा. रमेश यादव कॉर्डियोलॉजिस्ट, डा. नंद कुमार मनोवैज्ञानिक, डा. राकेश यादव हृदय रोग विशेषज्ञ, डा. एस कर्मकार बायो कैमिस्ट्री इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। फिलहाल हजारीबाग के 25 गांवों के 465 लोगों का ब्लड सैंपल कलेक्ट कर शोध के लिए एम्स दिल्ली भेजा गया है।
दोनों प्रोजेक्ट पर हो रहा शोधपरक अध्ययन
कचनार के सेवन करने वाले तथा सेवन नहीं करने वाले जंगली गांवों के लोगों का ब्लड सैंपल लिया जा रहा है। वहीं बायोमास का इस्तेमाल मरने वाली 16 वर्ष से अधिक उम्र की युवतियां व महिलाओं तथा इसका इस्तेमाल नहीं करने वाली महिलाओं का सैंपल कलेक्ट कर एम्स भेजा जा रहा है। दरअसल बायोमास के उपयोग से मानव शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ने के संकेत पाये जाते है। एम्स के डा. रामकिशोर साह ने बताया कि बायोमास के उपयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारियों का भी खतरा रहता है। दोनों प्रोजेक्ट में तुलनात्मक आंकड़ा संग्रह किया जाएगा। खून का नमूना संग्रह के दौरान यदि किसी व्यक्ति में अन्य बीमारियां पाई गई तो उसे सीसीएल के अस्पताल या एम्स दिल्ली में भी इलाज करवाया जाएगा।
मार्च में होते हैं कचनार के सफेद फूल
मार्च से कोडरमा के जंगली इलाकों में कचनार के सफेद फूल आने लगते हैं। गुलाबी फूल वाले कचनार भी विशेष महत्व वाला माना जाता है। जंगली इलाकों में कचनार के फूल से सब्जी, पकौड़ी बनाकर लोग सेवन करते है। शोध के बाद आने वाले समय में कचनार के महत्व की सही तथ्य लोगों के सामने आएगा।