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कृषि मंत्री ने सहकारी समितियां अधिनियम 2008 का प्रस्ताव किया निरस्त

कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री बादल ने नवीन एवं एकीकृत झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है। वैद्यनाथन समिति की अनुशंसा के आलोक में झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 का प्रस्ताव बना था लेकिन इसने कभी अधिनियम का रूप नहीं लिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 12:27 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 12:27 AM (IST)
कृषि मंत्री ने सहकारी समितियां अधिनियम 2008 का प्रस्ताव किया निरस्त
कृषि मंत्री ने सहकारी समितियां अधिनियम 2008 का प्रस्ताव किया निरस्त

रांची : कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री बादल ने नवीन एवं एकीकृत झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है। वैद्यनाथन समिति की अनुशंसा के आलोक में झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 का प्रस्ताव बना था, लेकिन इसने कभी अधिनियम का रूप नहीं लिया। इसके बावजूद इसे लेकर सहकारी समितियों से जुड़े लोगों और आम नागरिकों में भ्रम की स्थिति बनीं हुई थी। इस प्रस्ताव के निरस्त होने के बाद अब संशय की स्थिति समाप्त हो गई है।

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बता दें कि सहकारिता विभाग ने सहकारी समितियों से जुड़े नए प्रस्ताव को वेबसाइट पर अधिनियम बताकर 2008 में अपलोड करते हुए लोगों के सुझाव और आपत्ति मांगी थी। इसे लेकर संशय की स्थिति व्याप्त हो गई थी। वेबसाइट पर मांगे गए सुझाव के आधार पर कई पुस्तकों का भी प्रकाशन हो गया, जबकि इस संदर्भ में कोई अधिनियम कभी बना ही नहीं। वेबसाइट पर प्रकाशित प्रारूप एवं बाजार में उपलब्ध सहकारिता मैनुअल की पुस्तकों में झारखंड सहकारी समिति अधिनियम 2008 के नाम से इसे प्रकाशित किए जाने के कारण 12 वर्षों से आम सहकारी जनों सहित प्रबुद्ध जनों में भी भ्रम एवं असमंजस की स्थिति व्याप्त थी। कृषि मंत्री बादल ने मामले को संज्ञान में आते ही विभागीय स्तर पर जांच पड़ताल कराते हुए झारखंड सहकारी समिति अधिनियम 2008 को निरस्त करने पर अपनी सहमति दे दी है।

मालूम हो कि झारखंड राज्य में अंगीकृत एवं प्रवर्तित सहकारी समितियां अधिनियम 1935 एवं स्वावलंबी सहकारी समितियां अधिनियम 1996 को एकीकृत करते हुए एवं बिहार राज्य की तर्ज पर सहकारी अधिकरण के गठन को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से झारखंड राज्य में भी एक नवीन एवं एकीकृत झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव बनाए गए थे, लेकिन तात्कालिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड के परामर्श पर वर्तमान 1935 के अधिनियम की ही कतिपय धाराओं में संशोधन कर दिए गए, जो संशोधन अधिनियम 2011 के रूप में प्रभावी हैं।


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