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झारखंड के लोहे की कुंद हो रही धार, बंद हुए 125 से ज्यादा स्टील प्लांट

Jharkhand. राज्य के जमशेदपुर गिरिडीह कोडरमा रामगढ़ रांची के स्टील प्लांट में ताले लटक रहे हैं। तीन महीने में स्टील की कीमत लागत मूल्य से 6000 रुपये तक कम हुई है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 12:56 PM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 05:19 PM (IST)
झारखंड के लोहे की कुंद हो रही धार, बंद हुए 125 से ज्यादा स्टील प्लांट

रांची, [दिव्यांशु]। स्टील, ऑटोमोबाइल और रियल इस्टेट को अर्थव्यवस्था का आधार कहा जाता है। लेकिन, देशभर में आर्थिक मंदी का जो माहौल बना है, उसमें झारखंड में भी इन तीनों सेक्टर की हालत खास्ता है। पिछले पांच महीने (मार्च से जुलाई 2019) में राज्य में 125 से ज्यादा स्टील प्लांट बंद हो चुके हैैं। ये इकाइयां स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज और एमएसएमई से जुड़ी हैैं।

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जमशेदपुर, गिरिडीह, कोडरमा, रामगढ़ और रांची के कई स्टील प्लांटों में ताले लटक रहे हैं। जहां उत्पादन हो रहा है, वहां भी स्टील की कीमतें कम होने से हालत खराब है। एक अनुमान के मुताबिक लागत से 20 फीसद तक स्टील की कीमत कम हुई है। इधर, बड़ी कंपनियों ने भी अपने अस्थायी कर्मचारियों की छंटनी की है। कुल मिलाकर लाखों लोग प्रत्यक्ष तौर पर बेरोजगार हुए हैं।

स्टील कारोबारी अजय बजाज का कहना है कि जमशेदपुर, गिरिडीह, रामगढ़ के जो प्लांट बंद हो रहे हैं, उन्हें जीएसटी व बिजली बिल में राहत देकर फिर से उत्पादन के योग्य बनाया जा सकता है। स्टील प्लांट ज्यादातर दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के सप्लाई एरिया में हैं। राज्य सरकार यहां से कम कीमत पर बिजली की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चत करे। ऐसा हो तो स्टील उद्योग फिर से सुधर सकता है।

माइंस से लौह अयस्क मिलने का हो भरोसा

गिरिडीह के मोंगिया स्टील के एमडी गुणवंत सिंह का कहना है कि आयरन ओर्स (लौह अयस्क) के खदान मालिकों को आने वाले समय के लिए अयस्क की आपूर्ति जारी रखने की गारंटी देनी होगी। अभी प्लांट वाले डरे हुए हैं कि 2020 के बाद नए माइंस का आवंटन होगा, तो उन्हें अयस्क कहां से मिलेगा। यह चिंता दूर करनी होगी।

गुजरात, महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तक है बड़ा बाजार

झारखंड में उत्पादित लोहे का बाजार गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल समेत पंजाब और हरियाणा तक है। वहीं, घरेलू उपयोग में भी गृह निर्माण और कंस्ट्रक्शन के लिए स्थानीय लोहे की आपूर्ति होती है। लेकिन, दक्षिणी, पश्चिमी राज्यों के व्यापारी चीन से उत्पादित लोहे की कीमत कम होने की वजह से उसे खरीदने को प्राथमिकता देते हैं।

घाटे और मुनाफे के गणित को ऐसे समझिए

झारखंड में नॉन ब्रांडेड स्टील की कीमत 40 हजार रुपये प्रति टन के करीब है। जबकि, यह लागत से बीस फीसद कम कीमत पर बेचा जा रहा है। मार्च से पहले यही लोहा 47,000 रुपये प्रति टन बेचा जा रहा था।

चीन के माल का कमाल

चीन से आए लोहे की कीमत 15 हजार से 22 हजार रुपये प्रति टन के करीब रहती है। साफ है कि घरेलू इंडस्ट्री को इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह है स्थिति

गुप्त सब्सिडी : चीन की सरकार स्टील समेत सभी इंडस्ट्री को कई तरह की गुप्त सब्सिडी मुहैया कराती है। अमेरिका और चीन के ट्रेड वार के बाद चीन ने गुप्त सब्सिडी बढ़ा दी है, जिससे उसका उत्पाद और सस्ता हो गया है।

बिजली दर : भारत में बिजली महंगी दरों पर खरीदनी पड़ती है। जबकि, चीन में इंटीग्र्रेटेड ग्र्रिड से उत्पादित बिजली स्टील इंडस्ट्री को मिलती है, जो लगभग मुफ्त है। झारखंड में राज्य सरकार से जो बिजली स्टील उद्योग को मिलती है, वह पड़ोसी राज्य बंगाल की तुलना में महंगी है। कई ऐसे स्टील प्रोडक्ट हैं, जिसके एक टन उत्पादन में करीब 2000 यूनिट बिजली लगती है।

सस्ता माल : भारत के मुकाबले 30 लाख मिलियन टन सालाना लोहे का उत्पादन करने वाला ब्राजील भी सस्ता माल उपलब्ध करा रहा है।

एंटी डंपिंग शुल्क से बच सकता है उद्योग

भारत सरकार ने कुछ दिन पहले एंटी डंपिंग शुल्क लगाकर चीन के स्टील के आयात पर रोक लगाने की कोशिश की थी। लेकिन, यह शुल्क अब लागू नहीं है। इससे झारखंड के व्यवसायियों का माल डंप पड़ा है। बाजार में खरीदार नहीं हैं।

आनुषांगिक इकाइयों को जिंदा करना होगा

आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में स्टील से जुड़ी कई एफएमसीजी कंपनियां हैं। इनका कारोबार इंडोनेशिया, पाकिस्तान, मलेशिया समेत कई देशों में है। लेकिन, स्टील उत्पादन की अनिश्चितता से इनका कारोबार भी बंद हो रहा है। सरिया, शीट और सॉफ्ट स्टील से जुड़े ऐसे उद्योगों को सब्सिडी समेत कई तरीकों से खड़ा करना होगा।


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