हिदी समृद्ध भाषा, दूसरी भाषाओं को सहजता से अपनाया
हिंदी भाषा काफी मजबूत है। इसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है।
जागरण संवाददाता, रांची : फादर कामिल बुल्के जब हमें अंग्रेजी पढ़ाते थे तो केवल अंग्रेजी में बोलते थे। वहीं जब हिदी में बात करते थे तो केवल हिदी शब्दों का इस्तेमाल करते थे। हिदी इतनी समृद्ध भाषा है कि इसमें हर भाव के लिए अलग शब्द हैं। फिर हम हिदी में बेवजह दूसरी भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल क्यों करें। इसमें एक समझने की बात यह है कि विदेशों से आई तकनीक या उससे जुड़े तथ्यों के लिए कई बार हम बेवजह हिदी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। अगर इंटरनेट को अंतरजाल कहेंगे तो वाईफाई को क्या कहेंगे। वहीं दूसरी ओर कई जगह हिदी के बेहतर शब्दों के लिए जबरन दूसरी भाषा के शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। अंग्रेजी भाषा में फॉरेस्ट एक शब्द है। इसे जंगल शब्द की जगह उपयोग किया जा रहा है। हिदी की पाचन शक्ति काफी अच्छी है। हमें अनावश्यक विवाद से अलग इसके संवर्धन के लिए समर्पित भाव से काम करने की जरूरत है।
अशोक प्रियदर्शी, लेखक, हिदी भाषा
विज्ञानी लिपि पर आधारित है हिदी भाषा
दुनिया की सबसे विज्ञानी भाषाओं में देवनागरी लिपि का नाम आता है। हिदी की लेखन शैली देवनागरी है। हम हिदी में किसी भाव को सबसे बेहतर समझा सकते हैं। हाल के दिनों में हिदी साहित्य में कई विसंगतियां आयी हैं। इंटरनेट और बाजार में कई तरह की किताब साहित्य के नाम पर बिक रही हैं। ऐसे में नए साहित्य के सेवकों को ये समझ नहीं आता की उन्हें क्या पढ़ना है। किस चीज को लेखनी में शामिल करना है और कैसे करना है। ऐसे में साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है, जो चिता का विषय है। हालांकि आज भी कई अच्छे लेखक हैं जो दिल से हिदी की सेवा कर रहे हैं। मैंने राजनीति में आने के बाद भी लिखना या पढ़ना नहीं छोड़ा। वर्तमान में मैं एक उपन्यास पर भी काम कर रहीं हूं।
महुआ माजी, लेखिका राजनीतिक इच्छा शक्ति के कारण हिदी नहीं बनी राष्ट्रभाषा
हिदी एक काल से जन-जन की भाषा रही है। भारत के आजाद होने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि सभी कामकाज अपनी भाषा में होनी चाहिए। आजादी के छह महीने बाद अगर कोई आदमी संसद या विधानसभा में अंग्रेजी बोलता हुआ पाया गया तो मैं भी उसे गिफ्तार करा दूंगा। संविधान की धारा 343 में हिदी को राजभाषा माना गया। इसमें 15 वर्ष के बाद सारे काम हिदी में करने की बात कही गई। आज एक युग बीत गया। मगर ऐसा नहीं हो सका। इसमें सबसे बड़ी राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है। आज अंग्रेजी बोलने वाले को पढ़ा लिखा और सभ्य समझा जाता है। हिदी राजभाषा के सिंहासन पर विराजमान है मगर नौकरी अंग्रेजी भाषा बोलने और लिखने पर मिल रही है। ऐसे में युवा पीढ़ी का हिदी से मन उचटना स्वभाविक है।
गिरिधारी राम गौंझू, लेखक, हिदी पुस्तक संस्कृति की बात नहीं, काम करने की जरूरत
हिदी भाषा ज्ञान की भाषा में तैयार नहीं हो सकती। शुरुआत में साहित्य को इतना संस्कृतनिष्ठ बनाया गया कि झारखंड जैसे आदिवासी राज्य में लोगों के लिए उसे समझना मुश्किल हो गया। गंगा की पट्टी के किनारे हिदी काफी समृद्ध हुई, मगर झारखंड में शायद ही कोई लेखक हुआ जिसने आदिवासी संस्कृति के साथ हिदी का समावेश करके लोगों के सामने प्रस्तुत किया। ऐसे में हिदी अपनी भाषा पट्टी में कमजोर होती गई। हम पुस्तक संस्कृति की बात करते हैं। मगर आज भी सिनेमा, खेल आदि कई आम जिदगी के मुद्दों से जुड़े विषय हैं जिनपर अच्छी किताबें नहीं हैं। वहीं शायद ही किसी अखबार में साहित्यकारों पर या किताब पर स्थायी लेख लिखा जाता हो। ऐसे में हम हिदी और हिदी साहित्य के विकास की बातें कैसे सोच सकते हैं।
महादेव टोप्पो, लेखक, हिदी