ऑनलाइन शॉपिंग के बाद ऑर्डर कैंसल कराया तो खाते से उड़ गए 47 हजार Ranchi News
Jharkhand. पीडि़त के शिकालत के बाद भी थानेदार ने एफआइआर दर्ज नहीं की। एसएसपी के आदेश की अनदेखी की। साइबर थानेदार ने भी आदेश दिया था।
रांची, जासं। ऑनलाइन शॉपिंग एप क्लब फैक्ट्री से शॉपिंग के बाद ऑर्डर कैंसिल कराना नगड़ी के युवक को महंगा पड़ गया। युवक की 65 वर्षीय नानी के खाते से 47 हजार रुपये उड़ा लिए गए। इसकी एफआइआर दर्ज कराने के बाद नगड़ी थाने की पुलिस पीडि़त को कई बातें बनाकर दौड़ा रही है। पीडि़त युवक अमृत कुमार एसएसपी आवास स्थित साइबर सेल पहुंचा था। वहां डीएसपी यशोदरा ने भी नगड़ी थानेदार को एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया। लेकिन अबतक एफआइआर दर्ज नहीं की गई है।
पुलिस ने बुजुर्ग नानी को भी लाने के लिए कहा, यहां तक कहा गया कि पैसे गए तो अब वापस नहीं मिल सकती। दरअसल, नगड़ी के लालगुटुवा निवासी अमृत कुमार ने क्लब फैक्ट्री ऐप से एक शर्ट मंगवाया था, इसकी पेमेंट भी कर दी थी। शर्ट मिलने में देर होने पर उसे कैंसिल करने के लिए ऑनलाइन साइट पर अंकित टोल फ्री नंबर पर कॉल किया।
मैसेज भी कराया फॉरवर्ड
कॉल करने पर कॉल करने वालों ने कहा कि पैसे वापसी के लिए एटीएम की डिटेल्स देनी होगी। उसके झांसे में आकर अमृत ने अपनी नानी फुलमणि देवी के एटीएम की डिटेल्स दे दी। इसके बाद उसे एनी डेस्क ऐप डाउलोड करवाया गया। एनी डेस्क ऐप डाउनलोड करने के साथ ही एटीएम डिटेल्स उसी में अपलोड करने और मैसेज करने के लिए कहा। इसके बाद खाते से रुपये उड़ गए। इसके बाद अमृत पुलिस के चक्कर काटता रहा। बता दें कि एसएसपी ने सख्त आदेश दिया था कि साइबर मामले में कहीं का भी मामला हो, तुरंत एफआइआर कर कार्रवाई शुरू करें।
'पीडि़त युवक पूरी डिटेल्स के साथ एफआइआर नहीं लिखा था। अपनी नानी का साइन भी नहीं कराया था। वह खुद केस कराने को लेकर कन्फ्यूज भी था। उसे बुलाकर एफआइआर दर्ज की जाएगी।' -बाबू बंशी साव, नगड़ी थाना प्रभारी।
एनी डेस्क से ऐसे होती है ठगी
एनी डेस्क ऐप मोबाइल में डाउनलोड करते ही संबंधित मोबाइल या कंप्यूटर साइबर अपराधियों के कंट्रोल में हो जाती है। इसके बाद ई-वॉलेट, यूपीआइ ऐप सहित अन्य बैंक खातों से जुड़े सभी ऐप को आसानी से ऑपरेट कर रुपये उड़ा रहे हैं। इस ऐप को साइबर अपराधी मदद के नाम पर डाउनलोड करवाते हैं, इसके बाद पूरी मोबाइल पर कब्जा जमा लेते हैं। इसके लिए साइबर अपराधी तब लोगों को कॉल करते हैं, जब कोई बैंक से मदद के लिए गूगल पर टोल-फ्री नंबर ढूंढकर कॉल करते हैं।
कॉल करने पर मदद के नाम पर झांसे में लेते हैं। जब यह एप डाउनलोड किए जाने के बाद नौ अंकों का एक कोड जेनरेट होता है। जिसे साइबर अपराधी शेयर करने के लिए कहते हैं। जब यह कोड अपराधी अपने मोबाइल फोन में फीड करता है तो संबंधित व्यक्ति के मोबाइल फोन का रिमोट कंट्रोल अपराधी के पास चला जाता है। वह उसे एक्सेस कर लेता है। अपराधी खाता धारक के फोन का सभी डेटा की चोरी कर लेता है। वह इसके माध्यम से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) सहित अन्य वॉलेट से रुपये से उड़ा लेते हैं।