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प्राथमिकी के 31 साल बाद एसीबी को आई भ्रष्टाचार के आरोपित कारा अधीक्षक की याद

वर्ष 1990 में निगरानी थाना में दर्ज हुई थी गिरिडीह मंडल कारा के तत्कालीन काराधीक्षक के खिलाफ प्राथमिकी। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) धनबाद ने गृह विभाग और कारा निरीक्षणालय से मांगा आरोपित का मोबाइल नंबर और पता। क‍िसी के पास कोई सुराग नहीं। पूरा महकमा परेशान चल रहा है।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 05:00 AM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 05:00 AM (IST)
प्राथमिकी के 31 साल बाद एसीबी को आई भ्रष्टाचार के आरोपित कारा अधीक्षक की याद
रांची स्‍थ‍ित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) कार्यालय का फाइल फोटो। जागरण

रांची, (दिलीप कुमार) : प्राथमिकी के 31 साल के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को भ्रष्टाचार के आरोपित कारा अधीक्षक श्याम मोहन मिश्रा की याद आई है। एसीबी ने 1990 में निगरानी जांच संख्या आर-2/90 में कारा अधीक्षक के विरुद्ध दर्ज लंबित कांड के निष्पादन के लिए अब उनकी तलाश शुरू की है। श्याम मोहन तब गिरिडीह मंडल कारा के काराधीक्षक थे।

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वह वर्तमान में कहां हैं, यदि सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो अंतिम पदस्थापन स्थान कहां था, स्थायी पता कहां हैं और उनका मोबाइल नंबर क्या है, इसकी जानकारी एसीबी को चाहिए। एसीबी धनबाद प्रमंडल के एसपी ने उक्त जानकारी के लिए झारखंड सरकार के गृह विभाग व कारा निरीक्षणालय झारखंड को पत्र लिखा था, लेकिन दोनों ही जगहों पर काराधीक्षक श्याम मोहन से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिली।

संयुक्त बिहार के वक्त ही हो गए होंगे सेवानिवृत्त

कारा निरीक्षणालय ने यह संभावना जताई है कि हो सकता है काराधीक्षक श्याम मोहन मिश्रा संयुक्त बिहार के वक्त ही सेवानिवृत्त हो गए होंगे, इसलिए उनका ब्योरा कारा निरीक्षाणालय बिहार से ही मिल सकता है। कारा महानिरीक्षक के इस तर्क व अनुशंसा पर गृह विभाग अब बिहार सरकार के गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग तथा कारा निरीक्षाणलय से पत्राचार करने जा रहा है, ताकि तत्कालीन काराधीक्षक श्याम मोहन के बारे में उनकी वर्तमान स्थिति की जानकारी, उनका मोबाइल नंबर, सेवानिवृत्ति से संबंधित दस्तावेज आदि मिल सके।

वर्ष 1990 का है यह मामला

वर्ष 1990 में गिरिडीह मंडल कारा में तत्कालीन काराधीक्षक श्याम मोहन मिश्रा पर यह आरोप लगा था कि उन्होंने जेल में बिना सामान की आपूर्ति कराए भुगतान दिखाकर ठेकेदार के नाम पर पैसा रख लिया था। इस मामले में तब निगरानी थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह मामला आज भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में जांच के लिए लंबित है। इस कांड के अनुसंधानकर्ता एसीबी धनबाद के डीएसपी जितेंद्र कुमार ङ्क्षसह हैं। इधर, 31 वर्षों से मामला लंबित रहने पर एसीबी समेत इससे जुड़े अन्य विभाग खुद सवालों के घेरे में है कि आखिरकार किन परिस्थितियों में अनुसंधान में इतना विलंब हुआ। कहीं आरोपित को बचाने की साजिश तो नहीं की गई?


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