Jharkhand: झामुमो की चली तो 1932 के बाद आनेवाले नहीं माने जाएंगे झारखंड के स्थानीय
Jharkhand Government News सीएमओ के निर्देश पर नई कमेटी बनेगी। कार्मिक विभाग को ही कमेटी के नामों की अनुशंसा करनी है। गुरुवार को वापस सीएमओ को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
रांची, [आशीष झा]। झारखंड में स्थानीयता को परिभाषित करने को लेकर एक बार फिर विवाद शुरू होने की संभावना दिख रही है। मुख्यमंत्री सचिवालय ने इस मामले में कार्मिक विभाग को एक कमेटी बनाकर स्थानीयता को लेकर तय वर्तमान नीति पर मंथन करने निर्देश दिया है। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायक 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने की मांग करते रहे हैं। इसी संदर्भ में निर्णय लेने के लिए सरकार ने एक कमेटी का गठन करने का निर्देश दिया है।
कमेटी कई बिंदुओं पर विचार करेगी जिसमें एक अहम विषय होगा, उस वर्ष का निर्धारण जब से लोग स्थानीय माने जाएंगे। कमेटी के गठन और इसकी अनुशंसा पर एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमाएगा। हालांकि इसमें कोई नई बात भी नहीं और अलग राज्य बनने के बाद से लोगों ने इस नाम पर राजनीति को कई बार करवट बदलते देखा है।
राज्य गठन के साथ ही इसे परिभाषित करने की कवायद होती रही हैं लेकिन इस मसले पर पहली बार रघुवर दास की सरकार ने ही स्थानीय नीति को अंतिम रूप दिया। उस वक्त बनी नियमावली के अनुसार 1985 के बाद से झारखंड में रहने वाले अथवा 20 वर्षों से अधिक समय से झारखंड में रहने का प्रमाण दिखानेवालों को स्थानीय माना जाएगा।
एक-दो दिनों में बन जाएगी कमेटी
हेमंत सोरेन की सरकार में स्थानीय नीति के इस बिंदु समेत अन्य तमाम बिंदुओं पर समीक्षा कर बदलाव के लिए कमेटी बनाई जा रही है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के आदेश के बाद कार्मिक विभाग ने पहले तो मुख्यमंत्री सचिवालय से ही कमेटी बनाने का आग्रह किया लेकिन सीएमओ ने गुरुवार तक कमेटी में नामों की अनुशंसा के साथ रिपोर्ट तलब की है। गुरुवार को इससे संबंधित फाइल वापस सीएमओ जाएगी। सूत्रों की मानें तो मुख्य सचिव अथवा अपर मुख्य सचिव स्तर के किसी पदाधिकारी के नेतृत्व में तीन अथवा पांच सदस्यों की कमेटी बनेगी जो इस विषय पर मंथन करेगी। एक-दो दिनों में कमेटी अधिसूचित हो जाएगी।
मरांडी के शासनकाल में इसी मुद्दे पर सुलग उठा था झारखंड
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के शासनकाल में डोमिसाइल को परिभाषित किया गया था। उस वक्त 1932 के खतियान को आधार मानकर स्थानीयता तय की गई थी। इस मामले में भाजपा के कई विधायकों समेत स्थानीय स्तर पर संगठनों ने विरोध करना शुरू किया जो धीरे-धीरे उग्र रूप धारण करते गया। मामले में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शांति बहाल की जा सकी। इसके बाद की सरकारों ने स्थानीय नीति पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया। बाद में रघुवर सरकार ने झारखंड में स्थानीय नीति को परिभाषित किया।
रघुवर सरकार की स्थानीय नीति
1985 के बाद से झारखंड में रहने वाले अथवा 20 वर्षों से अधिक समय से झारखंड में रहने का प्रमाण दिखानेवाले स्थानीय।