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RSS Sangh Samagam: क्षेत्र प्रचारक रहते मोहन भागवत मोटरसाइकिल व बसों से करते थे प्रवास

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 1994 से 99 तक बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहते झारखंड एवं बिहार के सुदूर इलाकों का सरकारी बसों के साथ-साथ स्वयंसेवकों की मोटरसाइकिल पर बैठकर प्रवास करते थे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 20 Feb 2020 12:09 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 12:35 PM (IST)
RSS Sangh Samagam: क्षेत्र प्रचारक रहते मोहन भागवत मोटरसाइकिल व बसों से करते थे प्रवास
RSS Sangh Samagam: क्षेत्र प्रचारक रहते मोहन भागवत मोटरसाइकिल व बसों से करते थे प्रवास

रांची, [संजय कुमार]। जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 ई. में नागपुर में हुई थी उसका काम बिहार में 1939 ई. में शुरू हो गया था। कृष्ण बल्लभ प्रसाद नारायण सिंह ऊर्फ बबुआ जी बिहार के पहले स्वयंसेवक बने थे। वहीं छोटानागपुर के इलाके में (वर्तमान समय के झारखंड) रांची से 1947 से संघ का काम प्रारंभ हो गया था। उस समय रांची में शाखा लगनी शुरू हो गई थी। धीरे-धीरे हजारीबाग, धनबाद में संघ कार्य प्रारंभ हुआ।

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आज जिस संघ के कामों का इतना विस्तार देखने को मिल रहा है उसे बढ़ाने में उस समय के प्रचारकों एवं कार्यकर्ताओं ने काफी मेहनत की। 100-100 किमी की दूरी संघ के प्रचारक साइकिल से यात्रा करते थे। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 1994 से 99 तक बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहते झारखंड एवं बिहार के सुदूर इलाकों का सरकारी बसों के साथ-साथ स्वयंसेवकों की मोटरसाइकिल पर बैठकर प्रवास करते थे।

वर्तमान समय में संसाधन उपलब्ध होने का असर संघ कार्य पर भी दिख रहा है। संघ के साथ-साथ अनुषांगिक संगठनों का काम भी बढ़ गया है। अभी पूरे झारखंड में 770 से अधिक शाखाएं लगती है। वहीं सेवा के क्षेत्र में विकास भारती, एकल अभियान, विद्या भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, आरोग्य भारती, विश्व हिंदू परिषद, अभाविप, हिंदू जागरण मंच आदि संगठन काम कर रहे हैं। इसका असर झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी दिख रहा है। 

प्रवास के दौरान स्वयंसेवकों के यहां ठहरना और भोजन करना होता था

आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक व क्षेत्र संपर्क प्रमुख अनिल ठाकुर ने बातचीत में कहा कि बापू राव दिवाकर बिहार के पहले प्रांत प्रचारक बने थे। 1948 में गजानन राव जोशी प्रांत प्रचारक बने। फिर मधुसूदन गोपाल देव बने। उस समय आज की तरह परिस्थितियां नहीं थी। संघ कार्य उतना बढ़ा नहीं था। आज जिस झारखंड को आठ विभागों में बांटा गया है वहीं 1950 के आसपास पूरे बिहार में पांच ही विभाग थे।

रांची के बाद हजारीबाग एवं धनबाद में काम प्रारंभ हुआ। प्रवास के दौरान स्वयंसेवकों के घरों में ठहरना एवं उन्हीं के यहां भोजन करना होता था। कभी-कभी बिना खाए भी रहना पड़ता था। अधिकतर जिलों में कार्यालय नहीं थे। प्रचारक साइकिल से ही 100-100 किमी यात्रा करते थे। संसाधनों की काफी कमी थी। परंतु जैसे-जैसे विविध क्षेत्रों में काम बढ़ा, लोग संघ को समझने लगे, फिर परिस्थितियां अनुकूल होने लगी। 

शाखाओं की संख्या बढ़ाने पर मोहन भागवत देते थे जोर

बिहार के सह क्षेत्र प्रचारक रहते डॉ. मोहन भागवत ने शाखाओं की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया। 1994 का संस्मरण सुनाते हुए उस समय के रांची महानगर कार्यवाह शक्ति नाथ लाल दास ने कहा कि एक बार वे प्रवास पर रांची पहुंचे। नामकुम में स्वर्णरेखा नदी के किनारे बाल स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण था। उन्होंने कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मुझसे कहा कि देखो रांची महानगर में अभी 35 शाखाएं लग रही है। जल्दी ही संख्या 50 नहीं किया तो महानगर की मान्यता रद हो जाएगी। वे हर तीन माह पर रांची के प्रवास पर आते थे और शाखाओं की संख्या कैसे बढ़े इस पर सुझाव देते थे।


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