इस कंकाल काे 21 साल बाद मिलेगा परिवार, दो दशक चली कानूनी लड़ाई; मानव कंकाल की चौंकाने वाली कहानी
रांची के पिस्का बगान के हबीबुल्ला अंसारी ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर शिबू सोरेन के पीए शशिनाथ झा के तथाकथित कंकाल को अपने भाई का कंकाल बताते हुए दावा जताया है।
रांची, [जागरण स्पेशल]। नाम- मोहम्मद अलीम। पता-पिस्का बगान रांची, झारखंड। 21 साल से कब्र में दफन होने के लिए अपने परिवार की राह ताक रहा इस मरहूम का मानव कंकाल अब उम्मीदों से भर गया है। अलीम के भाई हबीबुल्लाह अंसारी की डीएनए जांच के बाद उन्हें कंकाल सौंप दिया जाएगा। इसके बाद अलीम सुपुर्द-ए-खाक होंगे, फिर वे सुकून से कब्र में सो सकेंगे। मामला झामुमो के अध्यक्ष और झारखंड के पूर्व मख्यमंत्री शिबू सोरेन के पीए शशिनाथ झा हत्याकांड से जुड़ा है।
कंकाल के लिए अब तक की सबसे लंबी कानूनी लड़ाई के अपने तरह के इस अजूबा मामले में एक पक्ष केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) भी है, जिसने कंकाल को अपनी अभिरक्षा में सुरक्षित रखा है। वर्ष 1998 में बरामद कंकाल को सीबीआइ ने अब तक केस के महत्वपूर्ण साक्ष्य के तौर पर पेश किया है। बहरहाल शशिनाथ झा के परिवार से कंकाल का डीएनए मैच नहीं हाेने के बाद इस मानव कंकाल पर दावा करने वाले हबीबुल्लाह अंसारी को सीबीआइ कंकाल सौंप सकती है। अब हबीबुल्लाह के डीएनए पर सबकी नजर टिकी है।
सीबीआइ तैयार, झारखंड हाई कोर्ट के आदेश का उसे इंतजार
बीते दो दशक से सीबीआइ की अभिरक्षा में रखे गए मानव कंकाल को झारखंड हाई कोर्ट के आदेश पर रांची के पिस्का बगान के रहने वाले हबीबुल्ला अंसारी को सौंपा जा सकता है। झारखंड हाई कोर्ट में हबीबुल्लाह ने इस बारे में एक याचिका दाखिल कर शशिनाथ झा के तथाकथित कंकाल पर अपना दावा जताया है। इस याचिका में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए उसने इस मानव कंकाल को अपने भाई अलीम अंसारी का बताया है। हबीबुल्ला ने यह दावा तब किया है, जब शशिनाथ झा का मामला पूरी तरह से समाप्त हो गया है। सीबीआइ सूत्रों की मानें तो बरामद कंकाल अभी भी सुरक्षित रखा गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट शिबू सोरेन सहित अन्य आरोपितों कर चुका है बरी
दिल्ली हाई कोर्ट ने शिबू सोरेन सहित अन्य आरोपितों को शशिनाथ झा मामले में बरी पहले ही बरी कर दिया है। इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई है। ऐसे में केंद्रीय जांच एजेंसी का मानना है कि इस मामले में अब विवाद करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि शशिनाथ झा के तथाकथित कंकाल का डीएनए उनके परिजनों से मेल नहीं हो सका। ऐसे में कंकाल पर दावा करने वाले हबीबुल्लाह का डीएनए मैच हो जाने पर बरामद कंकाल उसे सौंप दिया जाएगा। सीबीआइ के अधिवक्ता राजीव नंदन प्रसाद ने कंकाल हबीबुल्लाह को सौंपे जाने को लेकर कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, सीबीआइ उसका अनुपालन करेगी।
वर्ष 1998 में दिल्ली से लापता हो गए थे शिबू सोरेन के पीए शशिनाथ झा
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख शिबू सोरेन के पीए रहे शशिनाथ झा वर्ष 1994 में दिल्ली से लापता हो गए थे। शशिनाथ झा अपने दिल्ली स्थित कार्यालय से 22 मई 1994 को घर के लिए निकले थे, लेकिन घर नहीं पहुंचे। उनके भाई अमरनाथ झा ने 25 मई 1994 को थाने में आवेदन दिया था। वर्ष 1996 में मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई थी। बाद में इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने शिबू सोरेन सहित अन्य आरोपितों को बरी कर दिया था।
हबीबुल्लाह को भरोसा, मोहम्मद अलीम का है कंकाल
हबीबुल्लाह के मुताबिक वर्ष 1998 में सीबीआइ ने शशिनाथ झा मामले में आरोपितों की निशानदेही पर रांची के पिस्का बगान से एक कंकाल बरामद किया था। कंकाल में सिल्वर कलर का नकली दांत, टोपी, बेल्ट और हाथ में कड़ा मिला था। इसके आधार पर हबीबुल्लाह ने कंकाल की पहचान अपने भाई मोहम्मद अलीम के रूप में की थी। हालांकि, सीबीआइ ने इस बात से इन्कार किया है कि मामले में जांच और ट्रायल के दौरान हबीबुल्लाह ने कोई दावा किया था। अब जबकि दिल्ली हाई कोर्ट में शशिनाथ झा को केस लगभग बंद हो गया है। ऐसे में हबीबुल्लाह का कहना है कि यह कंकाल उसके भाई अलीम की है, जिसे उसे सौंपा जाना चाहिए।
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