झारखंड में 1932 के खतियान से सरकारी नौकरी में प्राथमिकता, स्थानीय नीति पर आर-पार
1932 का खतियान लागू होने से राज्य सरकार की नौकरियों (तृतीय और चतुर्थ वर्ग) में अधिकाधिक स्थानीय लोगों की बहाली सुनिश्चित होगी और राज्य से बाहर के लोगों को ज्यादा मौका नहीं मिलेगा।
रांची, राज्य ब्यूरो। 1932 Khatian Based Local Policy Jharkhand स्थानीय प्रमाणपत्र की आवश्यकता सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आवश्यक है। 1932 का खतियान लागू होने से राज्य सरकार की नौकरियों (तृतीय और चतुर्थ वर्ग) में अधिकाधिक स्थानीय लोगों की बहाली सुनिश्चित होगी और राज्य से बाहर के लोगों को ज्यादा मौका नहीं मिल पाएगा। इसके अलावा वैसे लोग भी इसके लिए योग्य नहीं होंगे जो अरसे से राज्य में रह रहे हैैं या यहां से आरंभिक से लेकर उच्च स्तर तक पढ़ाई की है।
इसके अलावा शैक्षणिक संस्थाओं में भी अधिकाधिक आदिवासियों और मूलवासियों का प्रवेश आसानी से संभव हो सकेगा। इसके लिए जमीन के अंतिम सर्वेक्षण के वर्ष 1932 को आधार बनाने की झारखंड मुक्ति मोर्चा की मांग पुरानी है। अन्य झारखंड नामधारी दल भी इसकी वकालत करते हैैं। स्थानीयता नीति का असर किसी के राज्य में रहने के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा। इसका प्रयोग सिर्फ सरकारी नौकरियों या शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए ही किया जाता है।
1985 को कट आफ डेट बनाया था पिछली सरकार ने
भाजपानीत गठबंधन सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद स्थानीयता नीति का पैमाना तय किया था। इसमें राज्य गठन की तिथि 15 नवंबर 2000 से 15 वर्ष पूर्व तक राज्य में रहने वाले को स्थानीय माना गया है। यानी स्थानीयता का कट आफ डेट 1985 को माना गया। इसके अलावा केंद्र अथवा राज्य सरकार की सेवा समेत अन्य सेवाओं के लिए झारखंड में तैनात लोगों, परिजनों को भी इस दायरे में लाया गया है। तत्कालीन सरकार ने अधिसूचित जिलों की सरकारी रिक्तियों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के सारे पद स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किए थे।