सभ्यता तन का धर्म है और संस्कृति मन का
रांची मानवेत्तर प्राणियों में भी गहरी संवेदनाएं हैं। संस्कृति के विकास के लिए मानवेत्तर जगत क
रांची : मानवेत्तर प्राणियों में भी गहरी संवेदनाएं हैं। संस्कृति के विकास के लिए मानवेत्तर जगत को भी विकसित करना होगा। ये बातें रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय ने कहीं। वह गुरुवार को स्नातकोत्तर हिदी विभाग में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र व रांची विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे। विषय था, सभ्यता एवं संस्कृति का अंतरावलंबन। स्नातकोत्तर हिदी विभाग के प्रो. जंग बहादुर पांडेय ने कहा कि सभ्यता तन का धर्म है और संस्कृति मन का। मनुष्य के अंत:करण से सभ्यता का प्रकाशित हो उठना ही संस्कृति है। कई बार जानकारी के अभाव में लोग सभ्यता और संस्कृति को एक मान लेते हैं, लेकिन दोनों एक नहीं हैं। जैसे, सभा में बैठने की योग्यता सभ्यता है और निरंतर संस्कारित होने की क्रिया का नाम संस्कृति है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का उदाहरण देते हुए कहा कि संसार में जो भी सर्वोतम बातें कही, सुनी व लिखी गई हैं, वह संस्कृति है। सभ्यता व संस्कृति में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि सभ्यता स्थूल है, जबकि संस्कृति सूक्ष्म। इस अवसर पर दूरदर्शन रांची केंद्र के पूर्व निदेशक पीके झा ने कहा कि साहित्य के विद्यार्थियों को भाषा की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही अनुवाद में भी अपनी दक्षता विकसित करें। देश में नौकरी की कमी नहीं है, लेकिन अधिकांश लोग नौकरी की जरूरतों के अनुसार स्वयं को तैयार नहीं करते। व्याख्यान के दौरान जमशेदपुर से आए कन्हैया लाल अग्रवाल ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। इस अवसर पर तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। कथा कुंज, निबंध यात्रा व पृथ्वीराज रासो की समीक्षा भी की गई। संचालन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के राकेश पांडेय ने किया। इस अवसर पर एके मिश्रा, डॉ. हीरा नंदन प्रसाद, डॉ. कमल कुमार बोस, डॉ. जिंदर सिंह मुंडा, डॉ. श्याम कुमार, डॉ. अरूण कुमार, डॉ. सुशील कुमार अंकन, अंजनी सिन्हा, डॉ. लता कुमारी, डॉ. रामकेश्वर पांडेय डॉ. राजीव नयन पांडेय, डॉ. देशराज सिंह, मनु ओझा, आसमां त्रिपाठी समेत स्नातकोत्तर हिदी विभाग के कई विद्यार्थी उपस्थित थे।