हाई कोर्ट के नए भवन निर्माण में अनियमितता मामले पर सरकार से जवाब तलब
हाई कोर्ट के नए भवन निर्माण में वित्तीय अनियमितता की जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड उच्च न्यायालय में हाई कोर्ट के नए भवन निर्माण में वित्तीय अनियमितता की जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस डीएन पटेल की अदालत ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता राजीव कुमार ने कोर्ट को बताया कि भवन निर्माण विभाग की ओर से हाई कोर्ट के नए भवन का निर्माण हो रहा है। इससे हाई कोर्ट का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इस मामले में हाई कोर्ट का नाम जुड़े होने की आड़ में वित्तीय अनियमितता की गई है। ऐसे में लोगों में गलत मैसेज जाएगा। इस मामले में सरकार की ओर से एक जांच कमेटी भी बनी थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बजट बढ़ाए जाने की जानकारी हाई कोर्ट न्यायाधीश गण को भी नहीं दी गई। जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले में जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद हुई कार्रवाई के बारे में राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
अधिवक्ता संघ ने किया हस्तक्षेप :सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के अधिवक्ता संघ की अध्यक्ष ऋतु कुमार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए कोर्ट को बताया कि नए बनने वाले हाई कोर्ट में अधिवक्ताओं की सुविधाओं को ख्याल नहीं रखा जा रहा है। मात्र पांच सौ ही चेंबर बनाए गए हैं। जिसमें वर्तमान में चेंबर पाने वाले 150 अधिवक्ताओं को चेंबर देना ही पड़ेगा। इसके बाद हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ताओं को चेंबर दिया जाएगा। ऐसे में संघ के पास कुछ भी चेंबर नहीं बचेगा। इतना ही नहीं ये सभी चेंबर अंडरग्राउंड होंगे। ऐसे में कोर्ट पहुंचने में अधिवक्ताओं को ज्यादा परेशानी होगी। जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि अगर संघ चाहे तो इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सकता है।
अधिवक्ता ने दाखिल की है याचिका :हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। जिसमें कहा गया है कि अधिकारियों और निर्माण करने वाले संवेदक रामकृपाल कंस्ट्रक्शन लिमिटेड की मिलीभगत से वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं। शुरूआत में हाई कोर्ट भवन के निर्माण के लिए 365 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी गई थी। बाद में 100 करोड़ घटा कर संवेदक को 265 करोड़ में टेंडर दे दिया गया। वर्तमान इसकी लागत बढ़कर लगभग 697 करोड़ रुपये का हो गया है। बढ़ी राशि के लिए सरकार से अनुमति भी नहीं ली गई और न ही नया टेंडर किया गया। वादी ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है। साथ ही, पूर्व मुख्य सचिव व संवेदक की भूमिका की भी जांच की मांग की है।