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सत्ता का गलियारा : साहब की थाली को बिल्ली लांघ गई ... चित भी मेरी, पट भी मेरी ...

सत्‍ता के गलियारे में अपनी पोजिशन मजबूत करने के लिए नेता-अफसर हमेशा बैटिंग और फील्डिंग में लगे रहते हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 07:45 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 07:45 PM (IST)
सत्ता का गलियारा : साहब की थाली को बिल्ली लांघ गई ... चित भी मेरी, पट भी मेरी ...

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो । रूठ गई किस्मत... साहब की थाली को बिल्ली लांघ गई। कहां तय था कि ताजपोशी होगी लेकिन बुरा हो नजर लगाने वालों का, सामने से खिसक गई थाली। कौर मुंह में आते-आते बच गया। वह भी एक दिन था जब बगलबच्चों ने सपना दिखाया था कि बस अब बचे हैं गिनती के दिन, धीरज रखिए। साहब के साथ सात समुंदर पार का भी मजा ले आए थे। बस इसी का हवाला देकर सामने वालों ने सपने दिखाए। लेकिन लौटते-लौटते सारा सीन पलट चुका था। बगलबच्चे अब कहते फिर रहे हैं कि हुजूर सब्र कीजिए। सब्र का फल मीठा होता है। तीन माह गुजरने में भला देर ही कितनी लगती है।

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किस्मत का 'ताला' : विधायक जी के किस्मत पर 'ताला' ही लग गया। पार्टी आलाकमान ने राज्य में पार्टी का मुखिया ही बना दिया था। अचानक मिले इस तोहफे को ठीक से संभाल नहीं सके। कुछ ऐसा-वैसा निर्णय ले लिया जिससे कुछ ही दिनों में उस तोहफे को वापस ले लिया गया। अब विधायक जी के पास कोई जिम्मेदारी नहीं है। एक कमेटी के सदस्य बना दिए गए हैं। उसमें भी कोई खास भूमिका नहीं है। कमेटी के साथ जिलों का दौरा कर एक खास आबादी के घटने के कारणों की पड़ताल में जुटे हैं।

चित भी मेरी, पट भी मेरी : सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, यह नुस्खा सरयू सी गहराई रखने वाले पर्यावरणविद से कोई सीखे। शासन-प्रशासन को समय-समय पर शुचिता का पाठ पढ़ाने में अव्वल राज्य के 57 फीसद आबादी के अन्नदाता इन दिनों खुद पसोपेश में हैं। उनके अपने ही, उनके नाम पर इन दिनों चूना लगाने पर आमादा हैं।

अब अपने हो या पराए, साहब उसूल के पक्के हैं। गड़बड़ी की है तो सजा भी मिलेगी, ऐसा ट्वीट कर उन्होंने जनता के सामने आदर्श तो रख दिया, परंतु गड़बड़ी करने वाले का नाम छुपा लिया है। विपक्ष को ऐसे ही मौके की तलाश थी, कहते फिर रहे हैं, चित भी मेरी पट भी मेरी, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।

बोगी थमा दी : सेनापति की पकड़ बहुत मजबूत है। तमाम झंझावात, तूफान आए लेकिन उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। वे जहां थे, वहीं रह गए। उनकी मजबूती के कायल उनके अधिकतर अधीनस्थ उनका ही हाथ पकड़कर उनकी लॉबी में शामिल हो गए। जो उनकी विचारधारा के नहीं निकले, वे राजनीतिक उथलपुथल की तूफान में हाथ छूटते ही उड़ गए।

इस साहब का हाथ जिन्होंने थामा, वे उनकी लॉबी के होकर रह गए। पूर्व में भी एक छोटे साहब इनकी लॉबी में फिट नहीं बैठे तो इस साहब ने उन्हें राजधानी एक्सप्रेस में बैठाकर राज्य बदर करते हुए दिल्ली रवाना कर दिया। ताजा मामला सामने आया है। अब दूसरे छोटे साहब भी इनकी लॉबी में फिट नहीं बैठे तो उन्हें भी रेलगाड़ी की बोगी में डाल दी है। अब ये साहब बोगी से बाहर ही नहीं आ रहे हैं, चुपचाप पड़े रहते हैं। बोगी के भीतर ही टेलीविजन देखने में उनका सारा दिन कट रहा है।


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