मीरा के गूंजे पद, सूफी कत्थक पर इठलाई शाम
जागरण संवाददाता, रांची : खेलगांव की सुहानी शाम में लोकमंथन के मंच पर एक ओर कूची थिरक
जागरण संवाददाता, रांची : खेलगांव की सुहानी शाम में लोकमंथन के मंच पर एक ओर कूची थिरक रही थीं तो दूसरी ओर पांव। दोनों की जुगलबंदी अद्भुत रस पैदा कर रहा था। इस रस के प्रणेता थे बाबा सत्यनारायण मौर्य। लोग उन्हें बाबा ही पुकारते हैं। अद्भुत प्रतिभा के धनी। रंगों से भी खेलते हैं और शब्दों से भी। एक अलहदा चित्रकार भी हैं और एक प्रखर कवि भी। कविता पाठ की अपनी अलग शैली। रसों का अलग प्रवाह और संचार। मंच पर एक महापुरुषों का रेखाचित्र बना रहे थे। कूची उनकी दौड़ रही थी और कैनवस पर महापुरुष आकार ले रहे थे। देखते-देखते विवेकानंद की आकृति तैयार..। यह रंगों और शब्दों का जादू था। लोकमंथन की सुहानी शाम और भी रंगीन होने वाली थी। मेरा मुर्शिद खेले होली :
संस्कार भारती और दीपांजलि ग्रुप के कलाकारों ने मीरां की पदावली पर नृत्य किया और फिर सूफी कत्थक पेश किया। बोल थे, मेरा मुर्शिद खेले होली, मेरा मुर्शिद खेले होली..यारा रंग हैं उसका न्यारा, मेरा मुर्शिद खेले होली..प्याला छिड़के अपने करम का..प्याला छिड़के अपने करम का रंग दे सब संसारा..मेरा मुर्शिद खेले होली, मेरा मुर्शिद खेले होली। अंकित चक्रवर्ती, तृषा, अंतरा, सिमरन, प्रियंका, रिया, रिदू ने अपने पूरी कायनात को झुमाया। विपुल नायक की इस टीम की बेहतरीन प्रस्तुति थी। इसके बाद गार्गी मलकानी भी अपनी टीम के साथ नृत्य नाटिका पेश किया। नृत्य में भारत बोल रहा था, उसकी संस्कृति बोल रही थी, भारत का जन, गण, मन बोल रहा था। देश भक्ति के तराने गूंज रहे थे। तालियां बज रही थीं।