विज्ञापन न टेंडर, छह अभियंताओं ने करोड़ों के ठेके बांटे..
नकली विज्ञापन और फर्जी टेंडर के जरिये भवन निर्माण विभाग में घोटाला करने वाले 18 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करने की तैयारी है।
रांची, आशीष झा। समाचार पत्रों में प्रकाशित विज्ञापन नकली और टेंडर में भाग लेनेवाले ठेकेदार भी फर्जी। अखबार की कटिंग, टेंडर के दस्तावेज, कंपनियों के कागजात आदि जितनी भी जरूरतें एक टेंडर को फाइनल करने के लिए चाहिए, सभी के सभी गड़बड़। इन नकली और फर्जी कागजातों की बदौलत एक-दो नहीं दर्जनों ठेके बंट गए और किसी को कानोंकान पता ही नहीं चला।
ठेकेदारों की आपसी लड़ाई के बाद कुछ सूचनाएं बाहर आई तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को जांच का जिम्मा दिया गया और लगभग दो वर्षो की जांच के बाद परत-दर-परत खुलासा हो चुका है। पूरे मामले में सरकारी सेवा के 10 लोगों को दोषी माना गया है जबकि आठ ठेकेदारों की भी पहचान हुई है।
एसीबी ने सरकारी कर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। एसीबी सूत्रों के अनुसार भवन प्रमंडल को यह पत्र प्राप्त भी हो चुका है।
काम पहले कर लिया और ठेका बाद में मिला : पूरे मामले में अधिकारियों की मिलीभगत तो है ही, शीर्ष अधिकारियों का भी हाथ इनके ऊपर था। कई काम ऐसे किए गए हैं जैसे वरीय अधिकारियों ने तत्काल पूरा करने का हुक्म दिया हो। काम पूरा होने के बाद इंजीनियरों के साथ मिलकर ठेकेदारों ने फर्जी दस्तावेज के आधार पर ठेका आवंटित करा लिया।
पांच मामलों की पड़ताल, लगभग 200 मामले जांच के दायरे में : एसीबी ने नमूने के तौर पर पांच मामलों की पड़ताल की फिर इनके तथ्यों को एकत्रित किया। सभी मामलों में समाचार पत्रों का ब्योरा गलत निकला।
वर्णित नंबर का विज्ञापन जरूर प्रकाशित हुआ था लेकिन वह किसी और योजना के लिए। आइपीआरडी के उक्त नंबर का इस्तेमाल कर साजिशकर्ताओं ने फर्जी टेंडर के लिए आधार तैयार किया था।
पहली पांच निविदाओं की कुल राशि 3.06 करोड़ रुपये थी। इसके बाद अब तक मिली लगभग दो सौ शिकायतों की जांच कराने की तैयारी है। इन दो सौ टेंडरों में करोड़ों के वारे-न्यारे किए जाने का आरोप है।
इन लोगों को प्राथमिक तौर पर माना गया दोषी : इस घोटाले में जिन लोगों के नाम प्राथमिक तौर पर सामने आए हैं उनमें 2014 से 2016 तक पदस्थापित अभियंताओं और कर्मियों के अलावा ठेकेदारों के भी नाम हैं।
मो. शमीम, कार्यपालक अभियंता
राजीव लोचन, कार्यपालक अभियंता
सुनील कुमार राय, कनीय अभियंता
संध्या कुमारी, कनीय अभियंता
योगेंद्र प्रसाद कापड़ी, कनीय अभियंता
सुदर्शन सिंह, कनीय अभियंता
देवेंद्र कुमार मिश्रा, छंटनीग्रस्त कर्मी
ठेकेदार सुरेंद्र गुप्ता
ठेकेदार अजीत कुमार गुप्ता
ठेकेदार हरेंद्र सिंह
ठेकेदार मिलन कुमार
ठेकेदार शैलेंद्र कुमार सिंह
ठेकेदार साकेत बिहारी सिंह
ठेकेदार मुनमुन कुमार
ठेकेदार अखिलेश्वर सिंह
ठेकेदार दीपक कुमार
ठेकेदार राजकुमार
काम तो किया ही था मैनेज करने में फंसे : ठेकेदारों ने अवैध तरीके से जितने भी काम किए उसके बारे में एक जानकारी मिल रही है कि वरीय अधिकारियों के कहने पर काम पहले ही पूरा कर दिया गया। ऐसा लग रहा है कि काम तत्काल पूरा करने का मौखिक आदेश रहा होगा।
इसके बाद जिन संवेदकों ने काम पूरा किया उन्हें भुगतान करने के लिए फर्जी कागजात के आधार पर टेंडर अवार्ड करा दिया। पूरा कांड होने के बाद जाहिर सी बात है वरीय अधिकारी पीछे हट गए और अभियंत्रण सेवा के लोग फंसते दिख रहे हैं।
ऐसे किया गया घोटाला : पांच मामलों से संबंधित विज्ञापनों (पीआर संख्या 107648, 113041,128497,129916 और 129902) की वास्तविकता काम से इतर थी। इनमें कई टेंडर से संबंधित विज्ञापन नहीं थे। पुराने विज्ञापनों का नंबर लेकर छंटनीग्रस्त कर्मी देवेंद्र कुमार मिश्रा की मदद से अखबार की नकली कतरन बनाई गई और फिर कंपनियों के दूसरे कागजात भी फाइल के साथ संलग्न किए गए।
दो-दो ठेकेदारों के नाम पर आवेदन हुए और जिसे काम आवंटन करना था उसकी बोली सबसे कम रखी गई। ऑफिस के सहायकों ने तुलनात्मक सूची तैयार की जिसके आधार पर टेंडर फाइनल किया गया। इसपर संबंधित तमाम अधिकारियों के हस्ताक्षर भी हैं। अब काम की गुणवत्ता पर भले ही सवाल उठे, यह तय है कि काम तो सभी किए ही गए हैं।