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52 में से 45 गवाह केंद्रीय कार्यसमिति में ही नहीं, फिर विलय कैसे

राज्य ब्यूरो, रांची : झाविमो से भाजपा में शामिल हुए छह विधायकों की सदस्यता रद करने को ले

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Sep 2018 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 01 Sep 2018 08:52 AM (IST)
52 में से 45 गवाह केंद्रीय कार्यसमिति में ही नहीं, फिर विलय कैसे

राज्य ब्यूरो, रांची : झाविमो से भाजपा में शामिल हुए छह विधायकों की सदस्यता रद करने को लेकर स्पीकर कोर्ट में चल रही बहस रोचक हो गई है। वादी पक्ष (झाविमो) के अधिवक्ता ने शुक्रवार को कोर्ट के समक्ष ऐसे कई तथ्य और तर्क पेश किए, जो इस मामले के फैसले में अहम भूमिका निभा सकता है। अधिवक्ताराजनंदन सहाय ने प्रतिवादी पक्ष (भाजपा) की ओर से दी गई गवाही पर कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि किसी भी दल के विलय के लिए यह जरूरी है कि केंद्रीय कार्यसमिति का दो-तिहाई हिस्सा इस मसले पर सहमत हो। इससे इतर 68 में से 16 गवाहों ने तो गवाही ही नहीं दी। जिन 52 ने गवाही दी है, उनमें से 45 केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य ही नहीं हैं। शेष गवाहों ने आठ फरवरी 2015 को दलादिली में हुई बैठक में शिरकत ही नहीं की थी, जिस बैठक में झाविमो के तथाकथितविलय का दावा प्रतिवादी पक्ष कर रहा है।

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झाविमो के अधिवक्ता ने बहस के दौरान कोर्ट को यह बताया कि झाविमो के बायलॉज के मुताबिक केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक बार-बार नहीं बुलाई जा सकती। 18 जनवरी को कार्यसमिति की विधिवत बैठक हुई थी, फिर गवाहों ने 20 जनवरी और आठ फरवरी 2015 को भी यह बैठक बुलाए जाने की बात कही है, जो गलत है। प्रतिवादी पक्ष की ओर से झाविमो के तत्कालीन महासचिव प्रवीण सिंह को तथाकथित विलय का अगुवा बताया गया, जो दलादिली की बैठक में शामिल नहीं हुए। उन्होंने कहा कि झाविमो के आठ में छह विधायकों (दो तिहाई) के दल छोड़कर चले जाने से किसी दल का विलय नहीं हो सकता।

अधिवक्ता ने इस बीच झाविमो से भाजपा में शामिल हुए सुनील साहू की गवाही का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित गवाह ने विलय की बात कभी नहीं स्वीकारी। उन्होंने कोर्ट से कहा कि प्रतिवादी पक्ष के गवाहों ने 2014 के बाद झाविमो का जनाधार गिरने की बात कही, फिर इस चुनाव के बाद अमर बाउरी, गणेश गंझू, वरिष्ठ भाजपाई दुखा भगत सरीखे नेताओं ने भाजपा छोड़ झाविमो का दामन क्यों थामा। दलादिली की तथाकथित बैठक की कार्यवाही में जिन 452 का हस्ताक्षर है, वह कार्यवाही के ऊपर है। उसमें न तो वोटिंग कराए जाने का जिक्र है और न ही इस मसले पर विचार-विमर्श किए जाने की बात, फिर विलय कैसे हुआ। अधिवक्ता ने कहा कि तमाम साक्ष्य बताते हैं कि प्रतिवादी पक्ष ने इस पूरे प्रकरण में साजिश रची है। इस आधार पर उन्होंने संबंधित विधायकों की सदस्यता रद किए जाने की फिर से वकालत की। अधिवक्ता ने कहा स्पीकर कोर्ट के भावी फैसले पर पूरे देश की नजर है। वादी पक्ष की दलील सुनने के बाद स्पीकर दिनेश उरांव ने संबंधित अधिवक्ता को अगली तारीख (सात सितंबर) तक बहस की प्रक्रिया पूरा करने का आदेश दिया।

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