जात-जमात का साथ लेकिन मुख्यालय में खाली हाथ
झारखंड में कांग्रेस पार्टी नई नीति पर काम करती दिख रही है
आशीष झा, रांची : झारखंड में कांग्रेस पार्टी नई नीति पर काम करती दिख रही है जो कि पुराने ढर्रे से पूरी तरह अलग है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए अध्यक्ष नौ महीने के लंबे अंतराल के बाद भी अपनी टीम नहीं बना सके हैं वहीं जाति आधारित इकाइयों की टीम प्रखंड और बूथ स्तर तक तैयार होती दिख रही है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक आदि तमाम प्रकोष्ठ जिला स्तर से लेकर प्रखंड स्तर तक तैयार हो चुके हैं और बूथ स्तर पर भी इनकी टीम तैयार करने की बात कही जा रही है। दूसरी ओर, मुख्यालय स्तर पर अभी तक उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव जैसे तमाम पद खाली हैं जिनपर कोई विचार नहीं हो रहा है। काग्रेस की बदली रणनीति का परिणाम यह है कि एक बार फिर जात-जमात की राजनीति कांग्रेस में ऊपर आती दिख रही है। दूसरे दलों से मुकाबले के लिए यह रणनीति पार्टी के लिए कितना कारगर साबित होती है यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा।
दरअसल, कांग्रेस खुद को मजबूत करने के लिए नई रणनीति पर काम कर रही है और इसका मसौदा कहीं न कहीं जाति आधारित राजनीति के इर्द-गिर्द है। तमाम राजनीतिक दलों से कुछ हटकर कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत इन्हीं इकाइयों पर लगा दी है। एससी/एसटी प्रकोष्ठ, अल्पसंख्यक, ओबीसी आदि प्रकोष्ठ पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं। मुख्यालय से लेकर प्रखंड तक टीम बन चुकी है। जाति आधारित टीम तो एकजुट हो गई लेकिन मुख्यालय पर सीटें खाली ही रखी गई हैं। उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव जैसे पद मुख्य संगठन में खाली हैं और दूसरी इकाइयों में सभी पद भर चुके हैं तो इसका कुछ न कुछ अर्थ तो होता ही है। फिलहाल पार्टी पांच जोनल कोर्डिनेटर और नौ प्रदेश प्रवक्ता के भरोसे ही संचालित हो रही है। प्रमंडल स्तर पर भी पार्टी में 28 प्रवक्ता हैं। विधानसभा प्रभारियों के चयन से पार्टी में इस स्तर पर भी मजबूत नेतृत्व तैयार होता दिख रहा है। चुनावी वर्ष में पार्टी की इन गतिविधियों के राजनीतिक मायने भी निकाले जाने लगे हैं। एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि चुनाव के पहले जाति आधारित टीम सक्रिय हो चुकी होगी जिससे उम्मीदवारों को जातियों का वोट मिलने में आसानी होगी।
तमाम इकाइयों को सक्रिय कर रही पार्टी
कांग्रेस जाति आधारित इकाइयों के साथ-साथ महिला प्रकोष्ठ, छात्र विंग, मजदूर विंग आदि इकाइयों को सक्रिय कर रही है। ये तमाम इकाइयां प्रदेश स्तर पर तो पहले भी दिखती थीं और कार्यरत भी थीं लेकिन जिलों में इनकी स्थिति दयनीय थी। पार्टी की सांस्कृतिक इकाइयों को भी सक्रिय किया जा रहा है। चेहरे भी बदल रहे हैं। इससे जमीनी स्तर पर पार्टी में बदलाव की छटपटाहट भी दिख रही है। पार्टी इस बार कम से कम आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है।