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पलामू टाइगर रिजर्व के खिलाफ ग्रामीणों को भड़काने में जुटे नक्सली, कहा-किसी कीमत पर जमीन न छोड़ें

बाघों की सुरक्षा के लिए वन विभाग ने आठ गांवों को शिफ्ट करने का फैसला किया है।

By Edited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 10:25 AM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 12:13 PM (IST)
पलामू टाइगर रिजर्व के खिलाफ ग्रामीणों को भड़काने में जुटे नक्सली, कहा-किसी कीमत पर जमीन न छोड़ें
पलामू टाइगर रिजर्व के खिलाफ ग्रामीणों को भड़काने में जुटे नक्सली, कहा-किसी कीमत पर जमीन न छोड़ें

रांची, जेएनएन। बाघों की सुरक्षा के लिए सरकार ने जहां गारू प्रखंड के आठ गांवों को दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी कर ली है वहीं अब माओवादी इस मामले में कूद पड़े हैं। लातेहार जिले के महुआडाड़ थाना क्षेत्र के नक्सल प्रभावित गाव लुरगुमि में माओवादियों के हथियारबंद दस्ते ने शुक्रवार की रात ग्रामीणों के साथ बैठक की। गाव के ही प्राथमिक स्कूल के प्रागण में हुई इस बैठक का नेतृत्व कंपनी कमाडर चंदन ने किया। बैठक में चंदन ने ग्रामीणों से कहा कि वे किसी भी प्रलोभन में आकर किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं छोड़ें।

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उसने ग्रामीणों को बताया कि पलामू व्याघ्र परियोजना (पलामू टाइगर रिजर्व) क्षेत्र की जद में आने वाले गारू प्रखंड के आठ गावों को वन विभाग विस्थापित कर रहा है। जिसका विरोध सभी ग्रामीणों को मिलकर करना चाहिए। पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट की अधिसूचना रद नहीं हुई है, इसे रद कराने के लिए ग्रामीण एकजुट होकर विरोध-प्रदर्शन करें। चंदन ने बैठक में ग्रामीणों को इसके अलावा और भी कई सुझाव दिए। 2011 के बाद ग्रामीणों संग यह पहली बैठक प्रशासनिक दृष्टिकोण से कहें, तो लातेहार जिला में नक्सलियों का लगभग सफाया हो गया है। नक्सलियों के बड़े नेता या तो सरेंडर कर चुके हैं या मारे गए हैं। वहीं, लगातार हो रही मुठभेड़ और छापामारी के कारण दस्ते के कई सदस्य संगठन छोड़कर भाग गए हैं। मगर, नक्सलियों ने 2011 के बाद शुक्रवार की रात सात वर्ष बाद ग्रामीणों के साथ बैठक कर जिला प्रशासन के दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। वर्ष 2011 के पूर्व नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों के साथ लगातार बैठक कर ग्रामीणों की समस्या सुने जाने एवं विवादों का निपटारा करने की खबरें आती रहती थीं।

मगर 2011 के बाद से नक्सलियों की हर गतिविधि इस दिशा से दूर हो गई थी। आदिवासियों के आदोलन को ढाल बना रहे हैं माओवादी प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने लंबे समय के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी है। इसकी वजह है आदिवासियों का सरकार के विरुद्ध लगातार हो रहा आदोलन। इसी आदोलन को माओवादी अपनी ढाल बनाकर आदिवासियों के हित और अधिकार की बात करते हुए मैदान में उतरे हैं। आदिवासियों के आदोलन से माओवाद की बुझती आग की चिंगारी को एक बार फिर से हवा मिल गई है। यदि सरकार द्वारा आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन की समस्या नहीं सुलझी, तो आदिवासियों के आदोलन को माओवादी अपना हथियार बना सकते हैं और हालात पहले से ज्यादा गंभीर हो जाएंगे।


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