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रिम्स के दो विभागों में इंफेक्शन, खतरे में मरीजों की जान

रिम्स प्रबंधन को कठघरे में खड़ा करने वाली यह रिपोर्ट यहां की व्यवस्था पर भी सवाल खड़ी कर रही है। दो महीने से यही स्थिति बनी हुई है।

By Edited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 11:24 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 03:41 PM (IST)
रिम्स के दो विभागों में इंफेक्शन, खतरे में मरीजों की जान
रिम्स के दो विभागों में इंफेक्शन, खतरे में मरीजों की जान

शक्ति सिंह, रांची। राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स जानलेवा बैक्टीरिया की चपेट में है। यहां इलाज के लिए भर्ती मरीजों की जान दांव पर लगी है। दो विभागों गाइनी ओटी और सेंट्रल स्टेरेलाइजेशन यूनिट में इंफेक्शन की पुष्टि माइक्रो बायोलॉजी विभाग ने की है। लापरवाह प्रबंधन का हाल यह है कि मरीजों की जान जोखिम में डालकर रोज संक्रमित ओटी में दर्जन भर मरीजों का ऑपरेशन हो रहा है। यह सिलसिला दो महीने से जारी है। इस दौरान कई मौतें भी हुई हैं। जिसका कारण इंफेक्शन को भी बताया जा रहा है। संक्रमित है गाइनी ओटी जच्चा-बच्चा विभाग की हालत सबसे खराब है।

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यहां लेबर रूम के ऑपरेशन थियेटर में सबसे घातक क्लेबशिला बैक्टीरिया मिला है। ऐसे में प्रसूता और नवजात की जान भी खतरे में है। सर्जरी में इस्तेमाल किए जाने वाले औजारों को संक्रमण मुक्तकरने वाली सेंट्रलाइज्ड स्टेरलाइजेशन यूनिट भी इससे अछूता नहीं है। जिन औजारों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उससे भी संक्रमण का खतरा बना है। व्यवस्था पर उठा सवाल माइक्रो बायोलॉजी विभाग की मानें तो दो माह से जांच रिपोर्ट पड़ी हुई है। जिसे आज तक संबंधित विभाग ने रिसीव नहीं किया है। रिम्स प्रबंधन को कठघरे में खड़ा करने वाली यह रिपोर्ट यहां की व्यवस्था पर भी सवाल खड़ी कर रही है। दो महीने से यही स्थिति बनी हुई है।

जांच रिपोर्ट लेने तक को तैयार नहीं रिम्स प्रबंधन की लापरवाही का आलम यह है कि मरीजों के लिए जानलेवा बैक्टीरियल इंफेक्शन की पुष्टि होने के बाद भी यहां के गाइनी और सेंट्रल स्टरलाइजेशन विभाग बेधड़क अपने काम में जुटे हैं। बेहद संवेदनशील इस रिपोर्ट में क्लेबशिला, एसनेटोबेक्टर और कोकाई जैसे खतरनाकबैक्टीरिया के संक्रमण की बात सामने आई है। गाइनी ओटी की स्वाब जांच भी की गई है। इसकी रिपोर्ट में भी संक्रमण की पुष्टि हुई है। औसतन 15 डिलीवरी रोज रिम्स के लेबर रूम में रोजाना 15 डिलीवरी होती है। इनमें से कुछ मरीजों की मौत भी होती है, जिनकी संख्या चार तक होती है। इसके बावजूद मामले को लेकर न विभाग ने गंभीरता दिखाई और न ही प्रबंधन ने। इंफेक्शन के कारण पहले भी बंद हो चुकी है ओटी रिम्स में पहले भी ओटी में संक्रमण का मामला सामने आ चुका है। तब ऑपरेशन थियेटर को बंद कर दिया गया था।

कुछ महीने पहले न्यूरो सर्जरी विभाग के ओटी को बंद किया गया था। इसके पूर्व सर्जरी ओटी को बंद किया गया। ब्लड बैंक में भी संक्रमण का मामला सामने आ चुका है। यही व्यवस्था एनआइसीयू में भी देखी जा चुकी है। बीमारी की सौगात बांट रहे कई विभाग जांच को ताक पर रखकर रिम्स के कई विभागों में ऑपरेशन लगातार जारी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इलाज के लिए यहां पहुंचने वाले मरीज जाने-अनजाने रिम्स से एक-दो बीमारी और लेकर वापस लौटते हैं। खतरनाक बीमारियों की सौगात बांट रहे रिम्स में मरीजों के अत्याधिक दबाव के कारण कई विभाग ऐसे हैं, जहां के ओटी, वार्ड, आइसीयू और इमरजेंसी वार्ड की स्वाब जांच समय पर नहीं होती है। क्या है स्वाब जांच ओटी में हर तरह के मरीज आते हैं। इससे ओटी में संक्रमण का खतरा बना रहता है।

स्वाब जांच के तहत ओटी व वार्ड की दीवार से डिस्टेंपर, बेड से पेंट, जमीन, टेबल पर से लकड़ी को खुरच कर सैंपल लिया जाता है। जांच में संक्रमण पाए जाने पर ओटी में आवश्यक साफ-सफाई की व्यवस्था की जाती है। माइक्रोबायोलॉजी का दायित्व होता है कि ऑपरेशन थियेटर की स्वाब जांच करे। रिपोर्ट के बाद ही ऑपरेशन की तैयारी की जाती है। विभागों की जांच में रुचि नहीं माइक्रोबायोलॉजी विभाग जांच के लिए तैयार है, पर जिन विभागों को अपने ओटी और वार्ड की जांच करानी है, उनके पास समय नहीं है।

न ही वे जांच कराने के लिए समय पर माइक्रोबायोलॉजी विभाग से संपर्क करते हैं और न ही मरीजों के ऑपरेशन व इलाज को लेकर कोई एहतियात बरतते हैं। निजी अस्पतालों का भी बुरा हाल राजधानी में कुछ निजी अस्पताल ऐसे भी हैं, जहां छह महीनों पर ओटी से नमूना इकट्ठा किया जाता है। इसकी मॉनीट¨रग करने वाला कोई नहीं है। आश्चर्य की बात है इन अस्पतालों में सैकड़ों की संख्या में ऑपरेशन होते हैं। वे लगातार मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी से उन पर नकेल नहीं कसी जा रही है।

रोज आते हैं डेढ़ हजार मरीज : रिम्स में हर रोज विभिन्न विभागों में इलाज कराने के लिए डेढ़ हजार मरीज आते हैं। इसके बावजूद सावधानी नहीं बरती जाती है। हर तरह के रोगी आते हैं।

जानें, किसने क्या कहा
साफ-सफाई के अभाव में अन्य मरीजों को संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। विभागाध्यक्ष से करूंगा बात अगर ऐसा है, तो इस संबंध में मैं विभागाध्यक्ष से बात करूंगा। अगर ओटी संक्रमित है, उसे संक्रमण मुक्त करने के बाद ही ऑपरेशन किया जाना चाहिए।
-डॉ.आरके श्रीवास्तव निदेशक, रिम्स।
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 समय पर स्वाब की जांच नहीं होने से टिटनस व दूसरे बैक्टीरियल संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। क्लेबशिला काफी घातक संक्रमण है, जो मरीजों की जान भी ले सकता है। हर महीने दो बार इसकी जांच अवश्य करानी चाहिए।
-डॉ.सुनील कुमार सर्जन, गुरुनानक हॉस्पिटल, रांची।
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स्वाब जांच के संबंध में मुझे कोई जानकारी नहीं है। सिस्टर इंचार्ज इस दिशा में कार्य करती है। लेकिन, सिस्टर इंचार्ज द्वारा मुझे कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस संबंध में मैं खुद बात करूंगी, क्योंकि ओटी ऑपरेशन निरंतर जारी है। '
-डॉ. ए विद्यार्थी विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, रिम्स।


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