मंत्री ने खुद खोली शहरी विकास की पोल
सभी विभागों में समन्वय नहीं होने से काम में आती हैं अड़चनें
राज्य ब्यूरो, रांची : शहरी विकास की मौजूदा नीतियों पर नगर विकास मंत्री सीपी सिंह के तेवर शुक्रवार को काफी तल्ख दिखे। उन्होंने दो टूक कहा कि मंत्री बनने के एक महीने के अंदर ही हमने शहरी विकास के मामले में विभागीय समन्वय के साथ काम करने का प्रस्ताव दिया था। इतना ही नहीं समय-समय पर रिमाइंडर भी दिया, परंतु स्थिति यथावत रही। आज पहले सड़क बन जाती है, फिर पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू होता है। कहीं बिजली विभाग तो कहीं दूरसंचार विभाग सड़क खोदता नजर आता है। बात इतने से भी नहीं बनती। कुछ वर्ष बाद फिर से सड़क का चौड़ीकरण होता है। फिर सड़क की खोदाई होती है, फिर पाइप निकाले जाते हैं और फिर से पाइप बिछाया जाता है। इस तरह एक ही योजना पर तीन-तीन बार करोड़ों रुपये बहाए जाते हैं। अगर संबंधित विभागों का एक विंग होता तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। वे शहरों में क्षेत्र आधारित समेकित आधारभूत संरचना के विकास से संबंधित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा मैं मंत्री बाद में हूं, जनप्रतिनिधि पहले हूं। सुबह उठते हीं दूरभाष पर शिकायतों का अंबार लग जाता है। उन्होंने राजधानी राची से संबंधित ऐसे कई मामले उठाए, जो शहरी विकास की पोल खोलने को काफी थे। इस बीच उन्होंने जहां शहरी विकास के क्रियान्वयन के तरीकों पर सवाल उठाए, वहीं अफसरों को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर विभिन्न विभागों की एजेंसिया सड़कों को खोद-खोद कर शहरों की स्थिति को नारकीय बना दे रही है। उन्होंने इस स्थिति से बचने के लिए विभागों को आपसी तालमेल के साथ काम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि विभाग पायलट प्रोजेक्ट के तहत आपसी समन्वय के साथ किसी खास क्षेत्र का समेकित विकास करे। इसके बाद आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि अगर मैन पावर की कमी है तो उसकी बहाली होगी, बेहतर परिणाम देने वाले एक्सपर्ट लोगों को अधिक वेतन देने से भी गुरेज नहीं होगा।
विभागीय सचिव अजय कुमार सिंह ने कहा कि सामान्य तौर पर शहरों की मूलभूत सुविधाएं सड़कों के किनारे ही चलती है। विद्युत, अंडरग्राउंड केबलिंग, सीवरेज- ड्रेनेज सिस्टम, फुटपाथ, जलापूर्ति की पाइप लाइन साइकिल ट्रैक, लाइट आदि इनमें शामिल हैं। ऐसे में जरूरी है कि ऐसी आधारभूत संरचनाएं एक साथ विकसित हो। विकास के इस मॉडल पर वर्तमान में पुणे और बेंगलुरू में काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले में जल्द ही नीति तैयार करेगी, ताकि एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल के तहत आधारभूत संरचनाओं का विकास हो सके। इसके तहत एक ही साथ योजनाओं का डीपीआर तैयार होगा और काम होगा। उन्होंने मौके पर ही टाउन प्लानर गजानंद राम की अध्यक्षता में एक समिति गठित किए जाने की घोषणा की, जो नीतियों के निर्धारण पर काम करेगी।
इस दौरान पुणे और बेंगलुरू नगर निगम के प्रतिनिधियों ने प्रजेंटेशन दिया। प्रतिनिधियों ने बताया कि किस तरह वहां का निगम आय स्रोत विकसित कर रहा है और कंपनियों के सहयोग से बेहतर नागरिक सुविधाएं मुहैया करा रहा है। ---
क्या होगा स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल में - शहरों में क्षेत्र आधारित विकास की योजना बनेगी।
-शहरी विकास से संबद्ध आधारभूत संरचनाओं का डीपीआर एक साथ तैयार होगा। संबंधित योजना का क्रियान्वयन एक ही कंसल्टेंट और एक ही कंपनी करेगी।
-सड़कों के किनारे यूटिलिटी डक का निर्माण होगा।
-शहरों की 30 से 40 वषरें के बाद की जरूरतों को केंद्र में रखकर योजनाएं तैयार होगी।
--- मंत्री की तल्खी .. 250 ग्राम का जूता पांच किलो का हो गया, गड्ढे ही गड्ढे
राजधानी रांची की एक गली (बिना नाम लिए) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक कार्यक्रम के सिलसिले में एक गली में गया। वहां कीचड़ का अंबार था, मेरा ढाई सौ ग्राम का जूता पांच किलोग्राम का हो गया। लौटने के क्रम में जब दूसरी गली से गुजरा तो पैंट भी खराब हो गया। इस बीच उन्होंने छत्तीसगढ़ को जोड़ने वाली गुमला रोड का हवाला दिया। कहा कि चार-पांच गाड़ियों के फंस जाने की सूचना मिली। तहकीकात में पता चला, सड़क चौड़ीकरण के नाम पानी का पाइप निकाल दिया गया, गड्ढे भरने के नाम पर थोड़ी मिट्टी डाल दी गई। फिर तो गाड़ियां फंसनी ही थी। शहर में आपको गड्ढे ही गड्ढे मिलेंगे। अद्भूत नजारा है। ---
राजधानी को पानी नहीं, ललटुगवा में बिछ रही पाइप लाइन मंत्री ने कहा कि राजधानी के कई हिस्सों को पानी नहीं मिल रहा। जिला स्कूल स्थित टावर में एक सप्ताह से जलापूर्ति नहीं होने की शिकायत मिल रही थी। बड़ा सवाल यह कि राजधानी को पानी नहीं और ललगुटवा में पाइप लाइन बिछाया जा रहा है। यह भी पंचवर्षीय योजना है अथवा दस वर्षीय, भगवान जानें। लगता है पानी की कमी मेरा पीछा श्मशान घाट तक नहीं छोड़ेगी। और तो और बिना कनेक्शन के भी पानी का भी यहां पानी का बिल आ रहा। ---
मंत्री का भी फोन नहीं उठाते सीईओ, इंजीनियर पर ठेकेदार है भारी शहर का बिना नाम बताए उन्होंने कहा कि फोन करते रहो, मंत्री का भी फोन नहीं उठाएंगे सीईओ। बड़े साहब हैं वे, जब उनको मैसेज करता हूं तो हड़बड़ा जाते हैं। उन्होंने कई अधिकारियों की शिकायत है कि ठेकेदार उनकी बात नहीं मानते। यहां तो इंजीनियर पर ठेकेदार भारी हैं। ---
क्या जिस गली में सचिव का घर हो, वहां भी कचरा रहेगा एक पीड़िता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक गली में मार्च से ही काम हो रहा है। वहां कचरे का अंबार लगा है। पीड़िता ने वार्ड पार्षद को फोन किया, कहा दो दिनों में साफ हो जाएगा। वह दो दिन नहीं आया। फिर मैंने अधीक्षण अभियंता को फोन कर सफाई कराई। उन्होंने सवाल किया क्या अगर वह गली सचिव अथवा किसी अन्य कर्मचारी की होती तो कचरा होता?
--- गूगल तैयार कर रहा डीपीआर, कट-पेस्ट का हो रहा खेल मंत्री ने कहा कि आजकल कंसलटेंट एजेंसियां फ्लाइट से आती है और पैसे लेकर उड़ जाती है। गूगल के सहारे डीपीआर बन रहा है। बिना भौतिक सत्यापन के कट-पेस्ट कर वन भूमि पर भी डीपीआर बन रहा है। कंपनियां छह माह का करार करती है, दो वर्ष में डीपीआर देती है। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, जहां देखता हूं स्थानीय लड़के दूरबीन लेकर खड़े दिखते हैं। पूछो तो कहेंगे अमेरिकन कंपनी के प्रतिनिधि हैं।