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योजनाएं बन रहीं, विभागों में समन्वय का अभाव

शहर की आधारभूत संरचना को लेकर सिटी के विशेषज्ञों के साथ चर्चा की गई। सभी ने स्वीकारा की योजनाउएं तो बन रही हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 09:14 AM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 09:14 AM (IST)
योजनाएं बन रहीं, विभागों में समन्वय का अभाव
योजनाएं बन रहीं, विभागों में समन्वय का अभाव

रांची : शहर में आधारभूत संरचनाओं की कमी है। योजनाएं भी बन रही हैं, लेकिन संबंधित विभागों के बीच आपसी समन्वय के अभाव में इन योजनाओं के पीछे छिपा उद्द्ेश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। माइ सिटी माइ प्राइड के तहत दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित राउंड टेबल कांफ्रेंस में विशेषज्ञों ने इस बात को स्वीकार किया। कहीं सड़कें चौड़ी कर दी गईं, तो पैदल चलने वालों की जगह दुकानें लगाई जा रही हैं। नालियों का निर्माण बेतरतीब ढंग से किया गया है। शहर का विस्तारीकरण नहीं हुआ। नतीजतन जनसंख्या बढ़ती गई और उपलब्ध सुविधाएं कम पड़ गईं। शहरवासियों को न तो बिजली की पर्याप्त आपूर्ति की जा रही है और न ही जलापूर्ति की। शहर का बाजार भी संकुचित हो गया है। राज्य सरकार स्मार्ट सिटी की योजना तैयार कर रही है। जबकि इस शहर को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में सिर्फ रिसर्च ही किए जा रहे हैं। यहां पढ़े-लिखे लोगों की इच्छाएं कुंठित हो रही हैं। सरकार की योजनाओं को धरातल में उतारने में जमीन अधिग्रहण सबसे बड़ी समस्या है। बेहतर मुआवजा के प्रावधान के बाद भी लोग अपनी जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं। जमीन अधिग्रहण के नाम पर राजनीति हो रही है।

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न्यू मॉडल सिटी से दूर होंगी समस्याएं

हमारा शहर अनियोजित सिटी है। यहां चौड़ी सड़केंनहीं हैं। स्मार्ट सिटी एचईसी में बन रहा है। न्यू सिटी खूंटी रोड में प्रस्तावित है। इसे मॉडल सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा , जिससे सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। अमृत योजना के तहत 500 करोड़ की लागत से जलापूर्ति की व्यवस्था की जा रही है, जिससे मिसिंग लिंक पाइप लाइन में पर्याप्त जलापूर्ति हो पाएगी। सीवरेज-ड्रेनेज योजना के तहत प्रथम चरण में 30-40 फीसद काम पूरा हो चुका है। शेष तीन जोन में काम शुरू हो जाएगा तो सीवरेज-ड्रेनेज का स्वरूप पूरा हो जाएगा। यूनिवर्सिटी को एचईसी क्षेत्र में शिफ्ट करने की योजना है। शहरी क्षेत्र में विभिन्न मार्केट को बसाने की योजना बनाई जा रही है। शहर का क्षेत्रफल बढ़ेगा तो समस्याओं से स्वत: निजात मिलेगी।

- संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर, रांची।

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जमीन अधिग्रहण के प्रति बदलें अपनी मानसिकता

सरकार की योजनाओं को इंप्लीमेंट करने का प्रयास किया जा रहा है। आंतरिक सड़कों का चौड़ीकरण होगा। हालांकि जमीन अधिग्रहण के प्रति लोगों की सोच यह नहीं है कि यह काम उनके लिए ही हो रहा है। कांटाटोली फ्लाईओवर के बाद अब स्मार्ट रोड-1, 2, 3, 4 बनाना है। यह समस्याएं आगे भी आएंगी। लोगों में अपने शहर के प्रति गर्व होना चाहिए। सदर अस्पताल परिसर में मल्टी लेवल पार्किग बनाने की योजना है। सुकुरहुटू में 49 एकड़ जमीन पर ट्रांसपोर्ट नगर व कांके में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की 25 एकड़ जमीन पर आइएसबीटी का निर्माण होना है। हालांकि इस कार्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण एप्रोच रोड है, जो सीधे ¨रग रोड से जुड़े। रेडियम रोड में पेवर ब्लॉक बिछाए गए हैं, ताकि लोग पैदल चल सकें। टाउन वेंडिंग कमेटी का चुनाव होने के बाद कचहरी चौक से मेन रोड तक के फुटपाथ दुकानदारों को नवनिर्मित फुटपाथ दुकानदारों को बसाया जाएगा। उसके बाद इन स्थलों पर फुटपाथ दुकान नहीं लगेंगे। दुकान लगाते पकड़े गए तो उनपर हेवी जुर्माना होगा। 3-4 साल में इस शहर का स्वरूप बदल जाएगा। एचईसी गेट के समाीप 82 डिस्मिल जमीन पर वेंडर्स मार्केट बनाने की योजना है। यहां चंडीगढ़ की तर्ज पर ठेले पर सब्जी व अन्य सामग्री की दुकान लगाए जाएंगे। सामानों की बिक्री के लिए जमीन का उपयोग नहीं किया जाएगा।

- संजय कुमार, उप नगर आयुक्त, रांची नगर निगम।

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बिजली की कमी नहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर

बिजली में करंट आती है तो वह राहत भी देती है। लिहाजा इन दोनों पर चर्चा होनी चाहिए। बिजली तीन सिस्टम पर काम करता है, जेनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन। पहले 82 मेगावाट बिजली बिजली आपूर्ति होती थी, जबकि मांग 18 मेगावाट थी। आज शहर के लिए 318 मेगावाट की मांग है। यहां बिजली कमी नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्टर कमजोर है। इसमें फॉल्ट आएगी तो परेशानी होगी। फिलहाल केंद्र व राज्य सरकार की कई योजनाओं पर अर्बन व रूरल क्षेत्र के लिए काम हो रहा है। नई योजना के तहत 12 सब स्टेशन व 6 ग्रिड का निर्माण होना है, जिसमें 2-3 साल लगेंगे। कंडक्टर भी बदले जा रहे हैं। 2018 के अंत तक या 2019 के अक्टूबर माह तक यह काम पूरा हो जाएगा। विभिन्न क्षेत्रों में स्टेबलाइजर भी लगाए जा रहे हैं, ताकि लो व हाई वोल्टेज की समस्या का निदान हो सके। अब अपार्टमेंट के लिफ्ट के लिए कॉमर्शियल कनेक्शन भी दिए जा रहे हैं। डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को बेहतर किया जा रहा है। अर्बन क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन की समस्या काफी ज्यादा है। मीटर रीडिंग, बिजली बिल भुगतान के लिए मोबाइल ऐप लांच किया गया है। एंजेसी के माध्यम से पॉश मशीन के जरिये बिजली बिल के भुगतान की सुविधा उपलब्ध करायी गई है। यदि सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत निर्धारित रूट मैप मिल जाए तो विभाग जल्द से जल्द काम पूरा कर देंगे। ग्रेटर रांची के लिए भी विभाग नए मास्टर प्लान पर तैयार है। सब स्टेशन में सभी चीजें इन-बिल्ट होंगी। अक्टूबर-नवंबर के बाद यह काम शुरू होगा। इस वर्ष दीपावली से पूर्व राजधानी में नो पावर कट की सुविधा उपलब्ध होगी। प्रीपेड मीटर भी लगाएं जाएंगे।

- धनेश झा, महाप्रबंधक, झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड।

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सभी समस्याओं के समाधान का निचोड़ है मास्टर प्लान

मास्टर प्लान सिर्फ नक्शा नहीं सभी समस्याओं के समाधान का निचोड़ है। मास्टर प्लान में कहीं प्रस्तावित सड़क है तो कहीं नई सड़क। राज्य सरकार को फिलहाल इन सड़कों के लिए मार्किग का काम शुरू कर देना चाहिए। इस कार्य में काफी विलंब हो रहा है। अन्यथा शहर की आधारभूत संरचना को तैयार करने के लिए डीपीआर तैयार करने में ही दो साल लग जाएगा। जेल पार्क का डीपीआर लंबा-चौड़ा तैयार किया गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद चारदीवारी समेत चिह्नित संरचनाओं को तोड़कर 15 दिनों के अंदर उसे तोड़कर बच्चों को खेलने के लिए जगह दी जाए। पिछले डेढ़ साल से सिर्फ तमाशा हो रहा है। आइएसबीटी व ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण करना है तो यह काम आज से ही शुरू करें। पूर्व में खादगढ़ा स्टैंड में भी बसें कीचड़ में ही खड़ी की जाती थीं। हालांकि शहर के आंतरिक विकास को लेकर अब तक कोई सोच नहीं है। इस दिशा में डेवलपर को भी सोचना चाहिए। संबंधित अधिकारियों से मिलकर वे यह सुनिश्चित करें कि जल्द से जल्द सड़क का निर्माण हो। हालांकि अब तक इसका कोई फॉर्मूला नहीं बना है। शहर के विकास से संबंधित विभागों के अधिकारियों में आपसी समन्वय का अभाव है। विभागों के बीच आपसी समन्वय स्थापित करने के लिए मुख्य सचिव के नेतृत्व में एक कमेटी बननी चाहिए। बिल्डिंग बायलॉज में कई बदलाव हुए हैं। अब सोलर सिस्टम व विजिटर्स पार्किग का भी प्रावधान किया गया है। - कुमुद झा, अध्यक्ष, क्रेडाई।

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शहर के विकास के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए। हमारे शहर में लोग आएंगे तो क्या हम उन्हें कुछ देने के लिए तैयार हैं। क्या हम इस शहर को इंफ्रास्ट्रक्टर दे पाए हैं। लोग आएंगे तो रहेंगे कहां। म्युजिकल फाउंटेन लगाना है, लेकिन कहां लगेगा, पता नहीं। यहां लोग टूरिज्म के लिए नहीं आते, व्यवसाय के लिए आ रहे हैं। आज यहां के मार्केट की दुर्दशा का मुख्य कारण सड़के हैं। हम रात में दिल्ली तो जा सकते हैं, लेकिन दिल्ली से वापस रांची नहीं आ सकते। यहां की सड़कें अच्छी नहीं हैं। राज्य सरकार के मुआवजा पॉलिसी को मिसगाइड नहीं करना चाहिए। यहां पढ़े-लिखे अफसर हैं, पढ़े-लिखे लोग हैं। ये सभी कुंठित हो रहे हैं। हम माइ सिटी माइ प्राइड की मुहिम क्यों नहीं चला सकते। मीडिया को भी इस संबंध में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यहां के अधिकारी चंडीगढ़ का रेडी मार्केट जरूर देखें। वहां ठेले पर दुकानें लगती हैं। ठेला ही दुकानदारों के लिए स्थायी स्ट्रक्चर है। दुकान बंद करने के बाद वे उस ठेले में ही सामान बंद कर देते हैं।

- बलकार नामधारी, अध्यक्ष, गोल्फ एसोसिएशन।

ट्रांसपोर्टर के पास कोई विकल्प नहीं

20 साल से व्यवसायी ट्रांसपोर्ट नगर की मांग कर रहे हैं। उद्योग जगत परेशान है। शहरी क्षेत्र में ट्रांसपोर्टर के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अपर बाजार में ट्रक के प्रवेश करते ही जाम की समस्या उत्पन्न हो जाती है। हालांकि अपर बाजार की सड़कों की चौड़ाई कम नहीं है। सड़क पर अतिक्रमण है। सड़कें खाली हों तो वहां भी 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से वाहनों का आवागमन हो सकता है। शहर को फैलाने की आवश्यकता आवश्यकता है। ¨रग रोड के इर्द-गिर्द भी व्यवसाय को स्थापित करने की आवश्यकता है।

- विनोद अग्रवाल, ट्रेजरर, जेसिया

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इंफ्रास्ट्रक्टर का नहीं है फ्यूचर प्लान

इस शहर में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए कोई फ्यूचर प्लान नहीं है। फ्लाईओवर बन रहा है, फिर भी पानी व बिजली विभाग का पुराना ड्राइंग नहीं मिल रहा है। मास्टर प्लान में शहर के बाहर के जो सड़कें दिखाई गई हैं, उनकी मार्किंग कर पहले उन सड़कों का निर्माण होना चाहिए, ताकि शहर की ट्रैफिक का बोझ कम हो। आंतरिक सड़कों का निर्माण बाद में भी हो सकता है। सरकारी कार्यालयों को भी शहर की सीमा से बाहर करने की जरूरत है। तभी शहर ट्रैफिक जाम की समस्या से मुक्त होगा। पहले राजा महाराजा टूरिस्ट को देखते हुए प्लान करते थे। वे भी यह सोचते थे कि लोग यहां घूमने आएंगे तो कुछ ऐसा निर्माण कराएं कि लोग वहां रुक सकें। राज्य सरकार को भी ऐसी ही प्लानिंग करनी चाहिए, ताकि लोग वहां सेल्फी लें। वहां प्रवेश करने के लिए टिकट कटवाएं। रवींद्र भवन व करमटोली तालाब का प्रोजेक्ट कुछ ऐसा ही है। अच्छाइयों को सामने लाने की जरूरत है। प्रोजेक्ट को समझाने की जरूरत है। इन प्रोजेक्ट्स को क्यों बनाया जा रहा है। इससे शहरवासियों को क्या फायदा होगा, यह बताने की जरूरत है। हमारे शहर में कोई इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं हो रहा है। जो तैयार हो रहे हैं वे भी बर्बाद हो रहे हैं। बकरी बाजार की सड़क भी चौड़ी है। वहां भी 60 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से कार दौड़ सकती है। उसे व्यवस्थित करना होगा। सड़क के बीच स्थित महापुरुषों के स्टेच्यू को सड़क के किनारे करना होगा। मोन्यूमेंट्स को किनारे करने के लिए संबंधित लोगों व समाज से बातचीत करनी होगी। स्मार्ट रोड में यूटिलिटी सर्विस की भी प्लानिंग की गई है। यह व्यवस्था सभी सड़कों के निर्माण से पूर्व होनी चाहिए

- नीरज मोदी, आर्किटेक्ट।

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बेतरतीब ढंग से हुआ नाली निर्माण

शहरी क्षेत्र में नाली निर्माण पर 300-400 करोड़ रुपये खर्च किए गए। फिर भी बेतरतीब ढंग से नालियों का निर्माण हुआ। आने वाले समय के लिए यह सिर्फ परेशानी ही बढ़ाएंगी। तालाबों में वर्षाजल के प्रवेश मार्ग को बंद कर दिया गया है। भूगर्भ जलस्तर को सुदृढ़ करने के उद्देश्य को खत्म किया जा रहा है। सुंदरीकरण के नाम पर तालाबों को कंक्रीट कर दिया गया है। भूगर्भ जलस्तर को सुदृढ़ करने के लिए नए तालाबों का निर्माण कराया जाना चाहिए। तालाब को स्विमिंग पुल में तब्दील कर दिया गया है। शहर के व्यवसायियों के पास कई प्रकार के लाइसेंस हैं। फिर भी उन्हें ट्रेड लाइसेंस लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है। प्लास्टिक कैरी बैग का हम समर्थन करते हैं, क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। जितने फूड प्रोडक्ट्स पाउच में आ रहे हैं, उनसे नालियां जाम हो रही हैं। इस पाउच को बंद करने के लिए अब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। बाजार में कई प्लास्टिक कैरीबैग उपलब्ध हैं जो खास किस्म के केमिकल में पूरी तरह गल जाते हैं। नगर निगम को इस प्रकार के केमिकल का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान में व्यवसायियों को गीला व सूखा कचरा के लिए अलग-अलग डस्टबिन रखने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, जबकि नगर निगम के कूड़ा वाहन में गीला व सूखा कचरा को एक साथ मिश्रित किया जा रहा है। इसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है। तीन हजार वर्गफीट से कम क्षेत्रफल के भूखंड पर निर्मित मकानों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं होने पर डेढ़ गुना होल्डिंग टैक्स वसूला जा रहा है। इस प्रकार रेन वाटर हार्वेस्टिंग कारगर नहीं हो सकता। राज्य सरकार को पहले लोगों को जागरूक करना चाहिए।

- रंजीत कुमार गड़ोदिया, अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज।

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पावर कट से जूझ रहे हैं व्यवसायी

पावर कट की समस्या से लोग परेशान हैं। खासकर व्यवसायी इस समस्या से निरंतर जूझ रहे हैं। 13-14 घंटे विद्युत आपूर्ति नहीं हो रहा है। डीजल जलाकर प्रोडक्ट तैयार किया जा रहा है। इससे औद्योगिक प्रतिष्ठानों का प्रोडक्ट कॉस्ट 30 फीसद तक बढ़ रही है। ऐसी परिस्थिति में हम बड़े उद्यमियों से कैसे मुकाबला करेंगे। यहां के लोगों को किसी भी व्यवसाय में प्राथमिकता नहीं जाती। मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर बाहर के उद्यमियों को आमंत्रित किया जा रहा है। यहां के व्यवसायी भी सक्षम हैं। उन्हें भी मौका दिया जाना चाहिए।

- रोहित पोद्दार, चेयरमैन, सिविक एनीमिटीज कमेटी।

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सिस्टम ऐसा हो जो सुचारू रूप से चले

सिस्टम ऐसा क्यों नहीं बनाया जा रहा है जो सुचारू रूप से चले। नगर निगम का मूल काम शहर की सफाई व्यवस्था है। फिर भी इन दिनों निगम का पूरा ध्यान सिर्फ वसूली पर है। इन्हें सबसे पहले अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। आज हल्की बारिश होते ही नाली का पानी दुकानों में प्रवेश कर रहा है। व्यवसायियों को निगम के अधिकारी व जनप्रतिनिधियों को बुला-बुलाकर इस समस्या से रूबरू करना पड़ रहा है। ऐसी नौबत क्यों आ रही है। बारिश के पानी की निकासी के लिए व्यवस्थित रूप से नाली का निर्माण क्यों नहीं हो पा रहा है। हमने गांधीगीरी कर अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों तक अपनी आवाज पहुंचाई है। यदि सुचारू रूप से सिटी बसों का परिचालन हो तो सड़क पर वाहनों का बोझ कम हो जाएगा।

- विकास विजयवर्गीय, चेयरमैन, नागरिक सुविधा उप समिति।


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