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मानव तस्करों को 'किक' मार रही लड़कियां

रांची :मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में ग्रामीण लड़कियों का 40 समूह अब मानव तस्करों से लोहा लेने को तैयार है। लड़कियों के इस समूह ने मानव व्यापार के खिलाफ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जंग छेड़ रखी है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 08:36 AM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 08:36 AM (IST)
मानव तस्करों को 'किक' मार रही लड़कियां
मानव तस्करों को 'किक' मार रही लड़कियां

विनोद श्रीवास्तव, रांची

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मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में ग्रामीण लड़कियों का 40 समूह अब मानव तस्करों से लोहा लेने को तैयार है। लड़कियों के इस समूह ने मानव व्यापार के खिलाफ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जंग छेड़ रखी है। इन्होंने सखी-सहेली मंच बनाया है। जिसमें अब तक 4000 लड़कियां जुड़ चुकी हैं। मंच के अधीन रांची और खूंटी में 20-20 फुटबॉल ग्रुप संचालित है। एक ग्रुप में 15 से 20 लड़कियां शामिल हैं। लड़कियां यहां फुटबॉल खेलने के तौर-तरीके भी सीख रहीं हैं, साथ ही तस्करों को गांव से खदेड़ने का संकल्प फुटबॉल को 'किक' मारकर ले रही हैं। टीम के सदस्य जिलों में भी जाकर लड़कियों को जागरूक कर ़फुटबॉल प्रतियोगिता कर लड़कियों को जोड़ रही है। यह प्रयास गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस की देन है।

इस संस्था ने प्रारंभ के दिनों में लड़कियों को इस मानव तस्करी के विरुद्ध गोलबंद करने की पुरजोर कोशिश की, परंतु गांव की गरीबी और निरक्षरता इसके आड़े आने लगी। संस्था ने इससे निपटने का एक नायाब तरीका अपनाया। लड़कियों को फुटबॉल से जोड़ना शुरू किया। ग्रुप को खेल से संबंधित किट उपलब्ध कराए गए। स्थायित्व के लिए आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को आजीविका से जोड़ने के लिए विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित किया गया। संस्था के सचिव अजय कुमार के अनुसार लड़कियों के इस समूह को तीन श्रेणियों रेड, येलो और ग्रीन में सूचीबद्ध किया गया। रेड जोन में उन लड़कियों को रखा गया है, जो जरूरतमंद, निरक्षर और सुदूर क्षेत्रों से आती थी, जिसे तस्कर आसानी से बहलाकर-फुसलाकर अन्य प्रदेशों में ले जा सकते थे। येलो और ग्रीन जोन में रेड जोन की अपेक्षा समझदार लड़कियां शामिल की गई। कई स्तरों पर प्रशिक्षण पा चुकी रेड जोन की लगभग 500 लड़कियां आज न सिर्फ ग्रीन जोन में शामिल हो चुकी हैं, बल्कि मास्टर ट्रेनर के रूप में वह रांची, खूंटी के अलावा लोहरदगा, सिमडेगा और गुमला में मानव तस्करी, असुरक्षित पलायन आदि की दिशा में ग्रामसभा और ग्रामीणों को जागरूक कर रही हैं। इस समूह से अबतक संबंधित जिलों की लगभग 4000 लड़कियां जुड़ चुकी हैं। फुटबॉल ग्रुप के सदस्य इन जिलों में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर वहां की लड़कियों को इससे जोड़ रही है। तस्करों को फुटबॉल की संज्ञा देकर उन्हें 'किक' मारने की सीख दे रही है।

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सैकड़ों लड़कियों को रेस्क्यू कर चुका है यह ग्रुप

रांची के लालखटंगा के एक गांव की तीन बहनों को मानव तस्करों ने 2015 में महज 300-300 रुपये महीने पर रांची के ही हिनू और लखनऊ में बंधक बना रखा था। समूह के प्रयास से तीन में से दो बहनें आज पढ़ाई कर रही हैं, जबकि इनमें से एक लखनऊ में ही अच्छी पगार पर नौकरी कर रही है। लड़कियों के इस समूह को जैसे ही किसी गांव की किसी लड़की के मानव तस्करों के चंगुल में फंसने की सूचना मिलती है तो लड़कियों का यह समूह तत्काल संस्था को सूचित करने के साथ रेस्क्यू करने के लिए संबंधित स्थान पर सीडब्ल्यूसी व पुलिस को सूचना देने के बाद धावा बोलती है और संबंधित पीड़ित लड़की को वहां से छुड़ाती है। लड़कियों का यह समूह मानव तस्करी की शिकार सैकड़ों लड़कियों को अबतक रेस्क्यू करा चुका है।

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हर वर्ष 10 हजार से अधिक किशोरियों का पलायन

रोजी-रोटी और बेहतर भविष्य की तलाश में झारखंड से हर वर्ष 10 हजार से अधिक किशोरियों का पलायन विभिन्न प्रदेशों के लिए हो रहा है। इनमें से नौ फीसद बिचौलियों के बहकावे में, तीन फीसद पारिवारिक दवाब में, 37 फीसद सहेलियों के साथ, शेष 51 फीसद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पलायन करती हैं। इनमें से 67 फीसद 20 वर्ष से कम आयु वर्ग की, 15 फीसद 20 से 25 तथा 18 फीसद 25 से अधिक आयु वर्ग की होती हैं।

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