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राष्ट्रप्रेम से अछूता नहीं आदिवासी साहित्य

पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में 'राष्ट्र एवं राष्ट्रप्रेम' विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी संपन्न।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 11:31 AM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 11:31 AM (IST)
राष्ट्रप्रेम से अछूता नहीं आदिवासी साहित्य
राष्ट्रप्रेम से अछूता नहीं आदिवासी साहित्य

जागरण संवाददाता, रांची : लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल संग्रहालय, नई दिल्ली के निदेशक एके दास ने राष्ट्र और राष्ट्रप्रेम विषय पर बोलते हुए कहा कि आदिवासियों में भी राष्ट्र चेतना रही है। उनकी कला, संस्कृति, समाज में यह अभिव्यक्त होती रही है। म्यूजियम में इसे देख सकते हैं। हमें अपने देश की संस्कृति, समाज, कला, वाद्य, संगीत आदि से रूबरू होना है, तो म्यूजियम बेहतर जगह है। भोपाल में जनजातीय म्यूजियम है। यहां बहुत कुछ आप देख, सुन और समझ सकते हैं। रांची में भी जनजातीय संग्रहालय बना है। उन्होंने कहा कि आदिवासी साहित्य राष्ट्रप्रेम से अछूता नहीं। यहां भी इस तत्व को देख समझ सकते हैं। इनके साहित्य पर काम होना चाहिए।

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दास आड्रे हाउस में बुधवार को पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं कल्याण विभाग एवं रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के तत्वावधान में राष्ट्र एवं राष्ट्रप्रेम विषय पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के अंतिम दिन बोल रहे थे।

वैश्विक हो रही आदिवासी कला

दास ने कहा कि आदिवासियों की दुनिया एक मिनी व‌र्ल्ड है। उनकी कला धीरे-धीरे वैश्विक होती जा रही है। गोंड पेंटिंग अमेरिका में करोड़ों में नीलाम होती है। इसी तरह वर्ली आर्ट भी देश-दुनिया में छा रही है। झारखंड की कला को भी मंच की जरूरत है ताकि इसकी पहचान भी वैश्विक हो सके।

आदिवासियों की थाती अनमोल :

राष्ट्रीय संग्रहालय के पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष संजीव कुमार सिंह ने प्रदर्शनी पर जोर दिया। कहा, जो चीजें हैं, उनका प्रदर्शन होना चाहिए। इससे दूसरे लोग भी उस संस्कृति से परिचित होते हैं। आदिवासियों की मौलिकता को अंतरराष्ट्रीय फलक पर ले जाने का सबसे अच्छा माध्यम प्रदर्शनी है। उनकी कला का, जीवन का, संस्कृति का, समाज का। उनकी थाती अनमोल है। संजीव ने जोर दिया कि आदिवासी कला में आधुनिकता का समावेश होना चाहिए, लेकिन उसका मूल भाव खत्म नहीं होना चाहिए। हमारे यहां कहा गया है, आत्मवत सर्वभुतेषू। हम ही नहीं, दूसरे लोग भी हैं। उन्हें भी जानना चाहिए। एक दूसरे को जानेंगे तो विविधता का भाव बोध जगेगा। हम एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं। पूरक के प्रति प्रेम ही राष्ट्रप्रेम को दर्शाता है।

इन्होंने भी रखे विचार :

कुरमाली से भूतनाथ प्रमाणिक, प्रमेश्वरी प्रसाद महतो, वृंदावन महतो, हो से प्रेा लूथरा आल्डा, घनश्याम बोदरा, खड़िया से बासिल किड़ो, सुशील केरकेट्टा आदि ने अपने विचार रखे।

पुस्तकों का लोकार्पण

मौके पर अतिथियों ने दमयंती सिंकू की हो भाषा के साहित्य एवं साहित्यकार, खड़िया में प्रो फ्रांसिस की, पंचपरगनिया में दीनबंधु महतो का झूमर संगीत, बीरेंद्र कुमार सेाय का मुंडारी में मुंडारी जगर सहिति रे आ: उबर, खोरठा में प्यारे हुसैर की दादुर खेदा खोरठा गीत कविता का विमोचन किया गया।

नाटक का मंचन :

इस अवसर पर नाट्य संस्था एक्सपोजर की ओर से 'एक शहीद की पुकार' नाटक का मंचन किया गया। नाटक की परिकल्पना एवं संजय लाल का था। राष्ट्रप्रेम पर आधारित नाटक देश को आजाद कराने में 1857 के वीर सेनानी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के योगदान को दिखाया गया था। क्रूर डाल्टन के अत्याचार से प्रतिशोध लेने के लिए गणपत राय, जयमंगल सिंह, माधो सिंह, कुंवर सिंह ने अपनी जान की कुर्बानी दी। उस क्षण को जीवंत किया गया। 20 कलाकारों ने अभिनय किया था। वेशभूषा डिजाइन सुनीता लाल ने की थी। प्रकाश व्यवस्था सुदीप एवं बजरंग, रूप सज्जा सालवी एवं नितेश, संगीत अवनीश व मुक्ता तथा सेट डिजाइन निर्देशक संजय लाल का था।

इनकी रही उपस्थिति :

विभाग के सचिव मनीष रंजन, रणेंद्र, निदेशक एके सिंह, विजय पासवान, अमिताभ कुमार, डॉ.गिरिधारी राम गौंझू, राजाराम महतो, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष त्रिवेणी साहू, डॉ.हरि उरांव सहित विभाग के छात्र-छात्राएं एवं प्राध्यापक मौजूद थे। कार्यक्रम में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगी थी।


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