राज्यकर्मियों की प्रोन्नति का रास्ता साफ
हाई कोर्ट ने प्रोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक हटाई -सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट ने
हाई कोर्ट ने प्रोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक हटाई -सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट ने संशोधित किया पूर्व का आदेश
-हालांकि प्रोन्नतियां, लंबित मामले में आने वाले आदेश से होंगी प्रभावित राज्य ब्यूरो, रांची : राज्य के सरकारी कर्मचारियों की प्रोन्नति का रास्ता अब साफ हो गया है। झारखंड हाई कोर्ट ने बुधवार को सरकार की ओर से दाखिल हस्तक्षेप याचिका (आइए) पर सुनवाई करते हुए प्रोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक को वापस ले लिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस एके गुप्ता की कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश को संशोधित करते हुए आरक्षित श्रेणी से आरक्षित, गैर आरक्षित से गैर आरक्षित और मेरिट के अनुसार सरकार को प्रोन्नति देने का निर्देश दिया है। हालांकि सभी प्रोन्नतियां हाई कोर्ट में लंबित मामले के अंतिम आदेश से प्रभावित होंगी।
हाई कोर्ट में बुधवार को सरकार की हस्तक्षेप याचिका पर लगभग तीन घंटे तक सुनवाई चली। महाधिवक्ता अजीत कुमार ने इस संबंध में इंद्रा साहनी, एम चेन्नईया के मामले का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि एम नागराज के न्याय निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नईया के मामले में अपने पूर्व के आदेश को ध्यान में नहीं रखने के कारण इन मामलों को संविधान पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया है, जहां सभी मामले लंबित हैं। एम नागराज के आदेश के अनुसार यह मान लेना कि झारखंड में बनाई गई नियमावली गैरवाजिब है, नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत केंद्र सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था जारी रखने की छूट दी है और केंद्र सरकार द्वारा उक्त आदेश के बाद सर्कुलर भी जारी कर दिया गया है।
महाधिवक्ता ने कहा कि क्रीमी लेयर का प्रावधान एससी-एसटी पर लागू नहीं किया जा सकता है, ऐसी व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नईया, इंद्रा साहनी व अन्य मामलों में दी है। झारखंड के वर्तमान परिस्थितियों में एससी-एसटी को समूचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है इसलिए प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। राज्य सरकार यहां रहने वाले एससी-एसटी एवं पिछड़े वर्गो का समग्र विकास चाहती है।
वहीं, वादी की ओर से कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने एम नागराज के मामले में दी गई व्यवस्था को लागू किया है और न ही सरकार के पास कोई डाटा उपलब्ध है जिसके आधार पर कहा जा सके कि सरकार की सेवाओं में एससी-एसटी के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व मिला है। ऐसे में हाई कोर्ट द्वारा लगाए गई रोक को हटाना उचित नहीं होगा।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार संशोधित करते हुए आदेश दिया है कि उक्त मामले के लंबित रहने के बाद भी सरकार आरक्षित वर्ग से आरक्षित, गैर आरक्षित से गैर आरक्षित और मेरिट के आधार पर प्रोन्नति दे सकेगी, लेकिन सभी प्रोन्नतियां कोर्ट के आदेश से प्रभावित होगी।
यह है मामला
फॉरेस्ट ऑफिसर अमरेंद्र कुमार सिंह ने याचिका दाखिल कर अपने से कनीय अधिकारियों को प्रोन्नति दिए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने वर्ष 2016 में प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने पर रोक लगा दी थी।